कांवड़ यात्रा निकले या ना निकले, योगी वोटरों को जो संदेश देना चाहते थे वह उन्होंने दे दिया
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को ओडिशा की नवीन पटनायक सरकार से सबक लेना चाहिए जिन्होंने जब पुरी में भगवान जगन्नाथ की वार्षिक रथयात्रा निकाली गई तो शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया ताकि भक्तों की भीड़ को रोका जा सके।
कांवड़ यात्रा को लेकर योगी सरकार पर सुप्रीम कोर्ट सख्त रवैया अख्तियार किए हुए है तो लिबरल गैंग भी सवाल खड़े कर रहा है कि कोरोना की तीसरी लहर आने वाली है, ऐसे में यूपी सरकार कांवड़ यात्रा निकाले जाने की अनुमति कैसे दे सकती है। हालांकि योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा के लिए कुछ प्रोटोकॉल भी तय कर दिए हैं, लेकिन ऐसे प्रोटोकॉल का कितना पालन होता है, यह सब जानते हैं। फिर जब कोरोना महामारी के चलते कुंभ को बीच में खत्म किया गया था तो उससे सबक लेते हुए भी योगी सरकार को ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए था, जिससे वह कोर्ट और विरोधियों के निशाने पर आ जाये। कोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान का भी उल्लेख किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता है। कांवड़ यात्रा निकाले जाने की छूट उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड दोनों सरकारों ने दी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुँचते ही उत्तरखंड सरकार ने तो आदेश वापस ले लिया, लेकिन योगी सरकार ने ऐसा नहीं किया। राज्य सरकार ने हालांकि प्रतीकात्मक कांवड यात्रा निकालने की बात कही तो अदालत ने इस पर भी उसे पुनर्विचार के लिए कह दिया।
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बहरहाल, कोर्ट का इस मुद्दे पर अंतिम फैसला जो भी हो, लेकिन इतना तो है ही कि योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा की इजाजत देकर राजनैतिक फायदा तो ले ही लिया है। कांवड़ यात्रा निकाले जाने की योगी सरकार द्वारा छूट दिए जाने से बीजेपी के वोटरों में यह संदेश पहुँच चुका है कि योगी सरकार तो कांवड़ यात्रा निकलवाना चाहती है, लेकिन कोर्ट की वजह से ऐसा नहीं हो पा रहा है। बात सुप्रीम कोर्ट की कि जाए तो जिस तरह से कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर योगी सरकार के साथ केंद्र सरकार को भी नोटिस जारी किया, उस पर किसी को हैरानी नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी जब हिल स्टेशनों पर जुट रही सैलानियों की भीड़ को गंभीरता से लेते हुए यहां तक कह रहे हैं कि हम तीसरी लहर को स्वयं बुलादा दे रहे हैं तब तो योगी सरकार को बिल्कुल भी ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए था, जिससे उनकी(योगी) और केन्द्र दोनों सरकारों की साख पर आंच आए। जब कोरोना महामारी के चलते पूरे देश में विभिन्न धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजन या तो स्थगित किए जा रहे हैं या फिर उन्हें प्रतीकात्मक रूप से आयोजित किया जा रहा है। यहां तक कि वैवाहिक कार्यक्रमों और शव यात्रा में कितने लोग जा सकते हैं इस तक की संख्या तय कर दी गई हो, तब योगी सरकार कांवड़ यात्रा निकालने की इजाजत कैसे दे सकती है।
योगी सरकार को ओडिशा की नवीन पटनायक सरकार से सबक लेना चाहिए जिन्होंने जब पुरी में भगवान जगन्नाथ की वार्षिक रथयात्रा निकाली गई तो शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया ताकि भक्तों की भीड़ को रोका जा सके। जगन्नाथ यात्रा को लेकर कुछ इसी तरह का फैसला गुजरात सरकार ने भी लिया गया। ऐसा कोरोना संक्रमण के कारण किया गया। अच्छा होगा योगी सरकार कांवड़ यात्रा पर अपना आदेश वापस ले। इसके साथ ही उसे त्योहारी सीजन में बाजारों में बढ़ रही भीड़ को भी नियंत्रित करने के लिए कुछ कदम उठाना चाहिए, जिस प्रकार से बाजारों में प्रोटोकॉल ताक पर रखकर लोग खरीददारी के लिए जुट रहे हैं, वह कोरोना के प्रसार में खतरे की घंटी साबित हो सकता है। इतना ही नहीं धार्मिक स्थलों पर भी कोरोना प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, इस ओर भी सरकार को ध्यान देना होगा। मंदिर हो चाहे मस्जिद, अपवाद को छोड़कर कहीं भी प्रोटोकॉल का पालन नहीं हो रहा है। इसी तरह से बकरीद पर पशुओं की बाजार में भी बेतहाशा भीड़ जुट रही है। आने वाले दिनों में जन्माष्टमी, रक्षाबंधन और अन्य कई त्योहारों के कारण भी बाजारों से लेकर बस और रेलवे स्टेशनों पर भी भीड़ का मंजर देखने को नहीं मिले इसके लिए अभी से सरकार को तैयारी और सख्त फरमान जारी कर लेना चाहिए।
धार्मिक स्थलों, बाजारों, हिल स्टेशनों, रेलवे और बस स्टेशनों पर जिस तरह की भीड़ दिखाई उससे इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) भी परेशान है। कोरोना महामारी जब फैलती है तो सबसे अधिक नुकसान और परेशानी मेडिकल क्षेत्र के लोगों की होती है। कोरोना के चलते हजारों डॉक्टरों और हेल्थ वर्करों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। आईएमए लगातार सरकार से गुजारिश कर रहा है कि तीर्थ यात्राओं और पर्यटन पर रोक लगाने की जरूरत है। बीते दिनों प्रधानमंत्री ने भी इस पर चिंता व्यक्त की कि पर्यटन स्थलों में भारी भीड़ कोरोना प्रोटोकॉल का उल्लंघन करती हुई दिख रही है। उनकी इस चिंता का आशय यही था कि राज्य सरकारें सार्वजनिक स्थलों में भीड़ को इस तरह जमा होने से रोकें।
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ऐसे समय जब कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर की आशंका गहराती जा रही है और कुछ राज्यों में कोरोना मरीजों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही, तब ऐसे किसी आयोजन से बचने में ही आम जनता की भलाई है, यह बात सरकार तो बता ही रही है, आम जनता को भी समझना चाहिए। पिछले डेढ़ साल में दुनिया के तमाम देशों के लोग इस हकीकत के गवाह हैं कि कोरोना न किसी का धर्म देखता है, न जात और न ही उम्र का तकाजा उसके लिए मायने रखता है। वह सबको समान रूप से चपेट में लेता है, लेकिन देश का दुर्भाग्य यह है कि इस महामारी पर भी धर्म की आस्था ‘जान है तो जहान है’ पर भारी पड़ रही है। कोरोना की दूसरी लहर के बीच हमने हरिद्वार के कुंभ में जुटी लाखों लोगों की भीड़ के दृश्य देखे और फिर उसका नतीजा भी भुगता और अब जबकि देश के तमाम डॉक्टर-विशेषज्ञ तीसरी लहर आने के लिए आगाह कर रहे हैं, तब उत्तर प्रदेश की सरकार ने कांवड़ यात्रा निकालने की इजाजत दे दी है। सिर्फ डॉक्टर ही नहीं बल्कि कोई भी समझदार इंसान इस फैसले को उचित नहीं कहेगा, जहां लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ इस संक्रमण को फैलाने में मददगार बने।
हमारे देश का संविधान हर नागरिक को अपने धर्म-मज़हब में आस्था रखने व उसके प्रदर्शन करने का अधिकार देता है, लेकिन वो ये हक़ कतई नहीं देता कि आस्था का वह प्रदर्शन किसी दूसरे इंसान की जिंदगी के लिये ख़तरा बन जाये। देश के हर राज्य के हर शहर के गली-मुहल्ले में शिवालय मंदिर हैं। जहां जल अर्पित करके श्रद्धालु अपनी आस्था पूरी कर सकते हैं। उसके लिए भारी-भरकम म्यूजिक के साथ भीड़ का सड़कों पर आना कोई अनिवार्य बाध्यता नहीं है कि उसके बगैर भोले भंडारी प्रसन्न नहीं हो सकते। सवाल यह भी उठता है कि हरिद्वार कुम्भ के कड़वे अनुभव से सबक लेकर जब उत्तराखंड सरकार कांवड़ यात्रा को रोकने का समझदारी भरा निर्णय ले सकती है तब यूपी सरकार ही यात्रा कराने के लिए क्यों अड़ी हुई है? जबकि दोनों ही राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की डबल इंजन वाली सरकारें हैं।
बात कावंड़ यात्रा की इजाजत के पीछे के राजनैतिक कारणो पर की जाए तो यह सच है कि दोनों प्रदेशों में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं। इसलिए तमाम नेतागण जनता को लुभाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते हैं। बीजेपी सत्ता में है इसलिए उसके पास जनता को खुश करने के ज्यादा विकल्प भी हैं। अगर यह मान भी लें कि इस यात्रा के जरिये हिंदुत्व-शक्ति का प्रदर्शन करने से बीजेपी को विधानसभा चुनाव में कुछ अधिक सियासी फायदा मिल सकता है, तो फिर उत्तराखंड को इसे रद्द करने पर मजबूर क्यों होना पड़ा? अच्छी बात ये है कि कोरोना काल के दौर में देश की सर्वोच्च अदालत को लोगों की जिंदगी की भी ज्यादा परवाह है, इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के इस फैसले पर स्वतः ही संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी किया है।
हालांकि, यूपी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह ने दलील दी है कि “यह राज्य की जिम्मेदारी है और हम सुनिश्चित करेंगे कि श्रद्धालुओं की आरटीपीसीआर टेस्टिंग हो।'' स्वास्थ्य मंत्री ने ये भी कहा कि यह आस्था का विषय है और हर साल की तरह यह यात्रा होगी। लेकिन यहां यह याद दिलाना जरुरी है कि कुंभ के दौरान उत्तराखंड सरकार ने भी ऐसी ही दलील दी थी लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बता रही थी। लोगों ने कोरोना नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाई थीं।
चूंकि कांवड़ यात्रा में लाखों शिवभक्त भाग लेते हैं इसलिए संक्रमण फैलने की आशंका तो है ही। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं के लिए आरटीपीसीआर की निगेटिव रिपोर्ट अनिवार्य करने की बात कही है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि जरा-सी नादानी बड़ी समस्या को जन्म दे सकती है। इसीलिए यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने कांवड़ यात्रा को इजाजत देने के उत्तर प्रदेश सरकार के निर्णय का संज्ञान क्यों लिया है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि योगी सरकार ने कावंड़ यात्रा की इजाजत देकर विरोधियों के ऊपर सियासी बढ़त बनाने की कोशिश की है। सुप्रीम कोर्ट की दखलंदाजी और सख्त रवैये के बाद यूपी में कावंड़ यात्रा निकले, इस बात की संभावना नहीं के बराबर रह गई है। हाँ, योगी सरकार ने अपने वोटरों को जरूर खुश कर दिया और अपनी हिन्दुत्व वाली छवि भी ‘बड़ी’ कर ली क्योंकि योगी के प्रशंसक और समर्थक उनसे ऐसे ही फैसलों की उम्मीद रखते हैं।
-अजय कुमार
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