कांग्रेस को कोई समझाये कि राहुल गांधी को सजा मोदी सरकार ने नहीं अदालत ने सुनाई है
दशकों तक राज करने वाले गांधी परिवार के राजनीतिक वारिस राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि के मामले में अदालत ने सजा सुनाई तो कांग्रेस देशभर में सड़कों पर हंगामा कर रही है। कांग्रेस को समझ क्यों नहीं आ रहा है कि सजा मोदी सरकार ने नहीं सूरत की एक कोर्ट ने सुनाई है।
क्या आपने कभी देखा है कि अदालत अगर किसी व्यक्ति को किसी मामले में दोषी पाते हुए उसे सजा सुना दे तो दोषी व्यक्ति या उसका समुदाय सड़कों पर हंगामा करने लगे, क्या आपने कभी देखा है कि यदि कोई जाँच एजेंसी या पुलिस किसी व्यक्ति को पूछताछ के लिए बुलाये या जाँच एजेंसी किसी के पास पूछताछ के लिए जाये तो वह व्यक्ति या उसका परिवार सड़क पर हंगामा करने लगता है? नहीं ना। जब देश का आम व्यक्ति कानून का पालन करता है। नोटिस मिलने पर जांच एजेंसी के समक्ष हाजिर होता है। सजा सुनाये जाने पर जेल जाता है या उस फैसले को चुनौती देता है तो वीआईपी व्यक्ति ऐसा क्यों नहीं करता?
देश में दशकों तक राज करने वाले गांधी परिवार के राजनीतिक वारिस राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि के मामले में अदालत ने सजा सुनाई तो कांग्रेस देशभर में सड़कों पर हंगामा कर रही है। कांग्रेस को समझ क्यों नहीं आ रहा है कि सजा मोदी सरकार ने नहीं सूरत की एक कोर्ट ने सुनाई है। यही नहीं, जब नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी को पटियाला हाउस कोर्ट जाना पड़ा था तब भी कांग्रेस ने ड्रामा कर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह समेत पार्टी के आला नेताओं का सड़कों पर मार्च करा दिया था। सोनिया गांधी और राहुल गांधी को ईडी ने पूछताछ के लिए बुलाया तो कांग्रेसियों ने सड़कों पर जमकर हंगामा काटा।
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आज जिस तरह से कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दलों के नेता मार्च निकालते हुए विजय चौक तक पहुँचे और राष्ट्रपति से मुलाकात तथा आगामी विरोध प्रदर्शन कार्यक्रमों का ऐलान करते हुए मोदी सरकार को कोसा उससे सवाल उठता है कि क्यों कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को देश के कानून से ऊपर मानते हैं। जब दो साल की सजा सुनाये जाने पर कई अन्य सांसदों और विधायकों को संबंधित सदनों की सदस्यता गंवानी पड़ी तो राहुल गांधी को क्यों छूट मिलनी चाहिए?
दूसरी ओर, मोदी उपनाम के खिलाफ अमर्यादित टिप्पणी मामले में राहुल गांधी को अदालत ने सजा सुनाई तो कांग्रेस ने कह दिया कि हमें पहले से पता था यही होगा। कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया है कि राहुल गांधी की आवाज दबाने की साजिश हो रही है। क्या कांग्रेस को पता नहीं है कि अदालतों में साजिश नहीं होती बल्कि सुबूतों के आधार पर फैसला सुनाया जाता है। अभी दो दिन पहले कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने अडाणी मामले में जो जांच कमेटी बनाई है वह क्लीन चिट कमेटी है। क्या कांग्रेस को सुप्रीम कोर्ट पर भी विश्वास नहीं है?
कांग्रेस नेता जिस तरह भारत के लोकतंत्र, भारत की संसद, जांच एजेंसियों, न्यायपालिका, संवैधानिक संस्थानों और मीडिया पर सवाल उठा कर उन्हें संदेह के घेरे में लाना चाह रहे हैं वह गांधी परिवार की सत्ता लोलुपता को दर्शाता है। लोकसभा चुनाव महज एक साल दूर है इसलिए विपक्ष की बेसब्री बढ़ती जा रही है। कुछ विदेशी एजेंसियों की भारत विरोधी रिपोर्टों को हवा देकर भारत में भुखमरी या हालात खराब होने की बात को प्रचारित किया जा रहा है, विदेशी मीडिया में भारत विरोधी खबरें छपवाई जा रही हैं, विदेशी मंचों पर भारत विरोधी बातें की जा रही हैं।
यही नहीं, अब तो विपक्ष एक बार फिर ईवीएम के खिलाफ आवाज बुलंद करने जा रहा है। इस क्रम में शरद पवार के घर पर विपक्ष की बैठक में आगे की रणनीति बनी। देखा जाये तो देश में एक चलन-सा बनता जा रहा है कि चुनाव हार जाओ तो ईवीएम पर ठीकरा फोड़ दो जबकि जो भी दल ईवीएम पर सवाल उठाते हैं वह ईवीएम के जरिये ही चुनाव जीतते रहे हैं। विपक्ष को चाहिए कि अपनी नाकामियों के लिए वह देश के तंत्र को दोषी ठहराने की बजाय अपनी कमियों को ईमानदारी से ढूँढ़े और आगे बढ़े। कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष को यह भी समझना होगा कि सत्ता के लिए शॉर्टकट रास्ता सफलता नहीं दिलायेगा बल्कि सत्ता से और दूर ले जायेगा।
-नीरज कुमार दुबे
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