देश को संदेश देने में नाकाम रही विपक्ष की रांची रैली
सात चरणों में पूरे होने वाले लोकसभा चुनाव का पहला चरण पूरा हो गया। मतदाताओं ने प्रत्याशियों निर्णय इवीएम को सौंप दिया। दूसर चरण का मतदान 26 अप्रैल को होना है। इतना सब होने पर भी विपक्षी 28 दलों का गठबंधन अब तक न कोई अपना कॉमन प्रोग्राम प्रस्तुत कर सका।
विपक्षी दलों की झारखंड की राजधानी रांची में हुई महारैली देश को कोई स्पष्ट संदेश नहीं दे सकी। हांलाकि इससे बड़ी उम्मीद थी। उम्मीद थीं कि राजनैतिक दल अपने चुनाव घोषणा पत्र अब तक प्रस्तुत कर चुके हैं। इस रैली में वे काँमन मिनीमम कार्यक्रम जारी कर सकतें हैं किंतु ऐसा कुछ नही हुआ। हर बार की तरह सिर्फ भाषण तक ही सीमित रही रैली।
झारखंड की राजधानी रांची में विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' ने 'उलगुलान न्याय महारैली' का नाम दिया गया है। इस दौरान मंच में बड़े-बड़े दिग्गज नेता मौजूद रहे। इसके साथ ही मंच पर दो खाली कुर्सियां रखी गईं। एक जेल में बंद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए और दूसरी झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए। उनकी जगह केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने मंच साझा किया। भारी संख्या में लोग रैली में पहुंचे
रैली के दौरान भीड़ ने 'जेल का ताले टूटेंगे, हेमंत सोरेन छूटेंगे' और 'झारखंड झुकेगा नहीं' जैसे नारे लगाए। झारखंड की राजधानी का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के आसपास होने के बावजूद भारी संख्या में लोग रैली में शामिल हुए। चिलचिलाती गर्मी के बीच सभी रैली के समर्थन जुटे रहे। 'उलगुलान' शब्द, जिसका अर्थ क्रांति है। इसे आदिवासियों के अधिकारों के लिए अंग्रेजों के खिलाफ बिरसा मुंडा की लड़ाई के दौरान गढ़ा गया था।
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हेमंत सोरेन को कथित भूमि धोखाधड़ी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 31 जनवरी की रात को गिरफ्तार किया था। इसी केंद्रीय एजेंसी ने 21 मार्च को अरविंद केजरीवाल को शराब नीति घोटाले से जुड़े मामले में गिरफ्तार भी किया था। हालांकि, झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष और आप सुप्रीमो के लिए कुर्सियां खाली रखी गई थीं, लेकिन उनकी पत्नियां कल्पना सोरेन और सुनीता केजरीवाल मंच पर बैठी थीं। कल्पना सोरेन और सुनीता केजरीवाल का भाषण मुख्यतः अपने पतियों की गिरफ्तारी के विरोध में था। दोनों का दावा था कि उनके पतियों को केंद्र की मोदी सरकार ने गलत ढंग से गिरफ्तार कराया हुआ है। केंद्र की मोदी सरकार विपक्ष की आवाज दबा देना चाहती है। इसके लिए सबको एकजुट होना होगा। रैली में नेताओं का यह भी आरोप था कि केंद्र में भाजपा फिर लौटी तो देश से लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। रैली में शामिल नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगातार झूठ बोलने, गारंटी के नाम पर लोगों को ठगने, लोकतंत्र को कमज़ोर करने और जुमलों के सहारे राजनीति करने के आरोप लगाए। नेताओं ने कहा कि देश में बेरोज़गारी चरम पर है और प्रधानमंत्री मोदी का हर साल दो करोड़ नौकरियों का वादा हवा में घूम रहा है।
देश में पहले चरण के मतदान के ठीक अगले दिन आयोजित उलगुलान न्याय महारैली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि पहले चरण के चुनाव में बीजेपी की हवा निकल गई है। उन्होंने कहा कि वे 400 पार की बात करते हैं लेकिन 180-190 सीटों से आगे नहीं जाने वाले। इसलिए, वोट देना ज़रूरी है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा, ''पहले चरण में ही उत्तर प्रदेश में इनकी हालत ख़राब हो गई है और जब यूपी इन्हें हटा सकता है, तो आप क्यों नहीं। यह देश मोदी की नहीं, संविधान की गारंटी चाहता है।'' जबकि झारखंड में मुख्य विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इस रैली को पूरी तरह फ्लॉप करार दिया है।
बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल नाथ शाहदेव ने कहा, ''इनके मंच पर भ्रष्टाचार में शामिल नेताओं का जमावड़ा हुआ और ये भ्रष्टाचार उन्मूलन की बात करते हैं. यह हास्यास्पद है।'' प्रतुल नाथ शाहदेव ने कहा, “इनका दावा था कि रैली में पांच लाख लोग शामिल होंगे लेकिन आए बमुश्किल 10-15 हज़ार लोग। उनमें आपस में मारपीट हुई। ये लोग सिर्फ़ सत्ता में आने के लिए एक मंच पर आए थे। रैली में सिर्फ़ परिवारवादियों और भ्रष्टाचारियों की भागीदारी थी, इसलिए इसे सुपर फ़्लॉप कहा जाना चाहिए।” हालांकि उलगुलान न्याय महारैली में लोगों की खासी भागीदारी देखी गई। झारखंड के सुदूर इलाक़ों से लोग बसों, गाड़ियों और ट्रेनों से रांची पहुंचे। ऐसे लोगों को लाने के विशेष इंतज़ाम किए गए थे। रैली स्थल पर लोगों की भीड़ देर शाम तक जमी रही।
उलगुलान रैली में शामिल होने आई कार्यकर्ताओं की भीड़ में दो गुटों के बीच झड़प हो गयी। कुर्सियां भी तोड़ी गई। ये मारपीट, ये हुडदंग कोई अच्छा संदेश नही दे सकें। उलगुलान रैली में शिबू सोरेन, बसंत सोरेन, कल्पना सोरेन, यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव, बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव, अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल, पंजाब के सीएम भगवंत मान, आप सांसद संजय सिंह, शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी, नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख फारूक अब्दुल्ला और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल हुए। रैली में शामिल नहीं हुए राहुल गांधी। जानकारी के मुताबिक, कांग्रेस नेता राहुल गांधी की तबीयत अचानक खराब हो गई है। इस वजह से वे रैली में शामिल नहीं हुए।
सात चरणों में पूरे होने वाले लोकसभा चुनाव का पहला चरण पूरा हो गया। मतदाताओं ने प्रत्याशियों निर्णय इवीएम को सौंप दिया। दूसर चरण का मतदान 26 अप्रैल को होना है। इतना सब होने पर भी विपक्षी 28 दलों का गठबंधन अब तक न कोई अपना कॉमन प्रोग्राम प्रस्तुत कर सका। न नहीं सभी दलों द्वारा सर्व सम्मत नेता ही चुना गया।
दरअसल विपक्षी दलों का यह गठबंधन, उन दलों का भी गठबंधन कहां जा सकता है, जो दल भाजपा के साथ नहीं जा सके। अवसर नहीं मिला। इस विपक्षी दलों के आई.एन.डी.आई.ए. गठबंधन को खड़ा करने में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बड़ा योगदान रहा। ये सब उन्ही की मेहनत से खड़ा ह़ुआ। किंतु मौके की तलाश में बैठे नीतीश कुमार अवसर मिलते ही इस गठबंधन से किनारा करके बिहार में भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया। भाजपा के साथ मिलकर अपनी सरकार बना ली। इसी तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी ने किया। भाजपा से बात पक्की होने तक वे सपा के अखिलेश यादव और कांग्रेस के नेताओं के साथ थे। बात पक्की होते ही उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया। 28 दलों वाले इस एलायंस में प्रायः वह ही दल हैं जिनकी अपने प्रदेश में सरकार है। प्रदेश में सरकार होने के कारण वह भाजपा से गठबधंन नही कर पा रही।
चुनाव का एक चरण बीत गया। दूसरा 26 को है। इसके बाद पांच चरण शेष हैं। लगता है कि ये भी जल्द ही हो जांएगे, विपक्ष के 28 दलों के 'एलाइंस इंडिया' का मिनिमम कार्यक्रम तय हुआ। ये बैठकर कोई ऐसा एजेंडा भी नही बना पाए कि बहुमत में आने पर किस कार्यक्रम पर वे सरकार चलांएगे। दूसरा उनका संयुक्त प्रधानमंत्री कौन होगाॽ क्या कुछ प्रदेशों की तरह तीन या छह−छह माह में अब प्रधानमंत्री भी बदले जांएगे। जो भी हो विपक्षी गठबंधन इंडिया का जैसे अच्छा नाम मिली था, वैसा कुछ आगे नही हुआ। उसने निराश ही किया। देश का प्रतिनिधित्व करने वाले 28 दलों के गठबंधन से उम्मीद काफी ज्यादा थीं, किंतु वह एक पर भी खरा नही उतर सका। ये सारे दल अलग−अलग विचार और सिद्धांतों के मानने वाले हैं। ऐसे में एकजुट होने के लिए इनका काँमन एजेंडा भी होना चाहिए। ऐसा न होने पर इनकी एकजुटता छलावा है। धोखा है। अब तो इनका का उददेश्य केंद्र की मोदी सरकार की आलोचना करना रह गया। आलोचनाएं भी सकारात्मक नही। नकारात्मक।
- अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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