नया आर्थिक गलियारा सिर्फ चीन को सबक नहीं सिखायेगा बल्कि दुनिया का भला भी करेगा
भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा पश्चिम में भारत की जमीनी कनेक्टिविटी को आसान बनाएगा और पाकिस्तान की रोक को बेअसर करेगा। साल 1990 में ही पाकिस्तान ने भारत की जमीनी कनेक्टिविटी के जरिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच देने से मना कर दिया था।
जी-20 शिखर सम्मेलन के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत, मध्य पूर्व और यूरोप के एक मेगा इकोनॉमिक कॉरिडोर की घोषणा की। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बता दिया कि कूटनीति और कारोबार की दुनिया में आने वाला समय भारत का है और चीन के लिए आगे की राह अब आसान नहीं होने वाली है। पीएम मोदी ने कहा कि आने वाले समय में भारत, पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच आर्थिक एकीकरण का प्रभावी माध्यम होगा। यह पूरे विश्व में कनेक्टिविटी और विकास को सस्टेनेबल दिशा प्रदान करेगा। मुंबई से शुरू होने वाला यह नया कॉरिडोर चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव यानी बीआरआई का विकल्प होगा। यह कॉरिडोर 6 हजार किमी लंबा होगा। इसमें 3500 किमी समुद्र मार्ग शामिल है। कॉरिडोर के बनने के बाद भारत से यूरोप तक सामान पहुंचाने में करीब 40 प्रतिशत समय की बचत होगी।
इस कॉरिडोर का नाम इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर है। इस प्रोजेक्ट में भारत, यू.ए.ई, सऊदी अरब, यूरोपीय यूनियन, फ्रांस, इटली, जर्मनी और अमेरिका शामिल होंगे। इस गलियारे की स्थापना सबसे अहम इसलिए भी है क्योंकि इसके निर्माण के साथ ही दुनिया के व्यापार का भूगोल बदल जाएगा। प्रस्तावित गलियारा भारत से संयुक्त अरब अमीरात तक अरब सागर में फैला होगा, फिर यूरोप से जुड़ने से पहले सऊदी अरब, जॉर्डन और इजराइल पार करेगा।
इसे भी पढ़ें: भारत-मध्यपूर्व-यूरोप इकॉनमी कॉरिडोर के आर्थिक, राजनीतिक और सामरिक मायने को ऐसे समझिए
इस परियोजना के तहत समुद्र के नीचे केबल और ऊर्जा परिवहन बुनियादी ढांचा भी शामिल होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे ऐतिहासिक सांझेदारी बताते हुए कहा कि आने वाले समय में भारत पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच आर्थिक सहयोग का एक बड़ा माध्यम होगा। इस कोरिडोर से दुनिया की कनेक्टीविटी को एक नई दिशा मिलेगी। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि गलियारे में शामिल देशों के लिए यह परियोजना अनंत अवसर प्रदान करेगी। इससे व्यापार करना तथा स्वच्छ ऊर्जा निर्यात करना आसान बन जाएगा। यह किसी ऐतिहासिक क्षण से कम नहीं है।
भारत-मिडल ईस्ट-यूरोप शिपिंग और रेलवे कनैक्टिीविटी कोरिडोर की योजना को एक बड़ी बात करार देते हुए अमरीकी राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा कि अगले दशक में भागीदार देश निम्न-मध्यम आय वाले देशों में बुनियादी ढांचे की कमी को दूर करेंगे। इस योजना में शामिल सभी 9 देशों के प्रमुखों तथा प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद कहते हुए बाइडेन ने कहा कि एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य यही इस जी-20 शिखर सम्मेलन का फोकस है। क्षेत्र में चीन के आर्थिक दबदबे को चुनौती देते हुए अमरीका और यूरोपीय संघ ने भारत को मध्य पूर्व और भू-मध्य सागर से जोडने वाले एक नए जहाज और रेल गलियारे के विकास का समर्थन किया है। निश्चित तौर पर इस प्रोजेक्ट को महाद्वीपों और सभ्यताओं के बीच एक ग्रीन और डिजिटल पुल माना जा रहा है।
ऐसे में अहम प्रश्न यह है कि इस गलियारे से भारत को क्या लाभ होगा। जानकारों के अनुसार भारत को पहला लाभ यह होगा कि मिडल ईस्ट और यूरोप के बाजारों में भारत की पहुंच और पकड़ मजबूत हो सकती है। दूसरा लाभ होगा कि शिप और रेल कनेक्टिविटी होने से कम से कम लागत में तेल और गैस की सप्लाई होगी। तीसरा लाभ यह होगा कि मिडल ईस्ट और यूरोप में चीन पर भारत को कूटनीतिक और कारोबारी बढ़त मिलेगी। अब सवाल ये है कि अमेरिका इस प्रोजेक्ट में बढ़-चढ़कर क्यों हिस्सा ले रहा है। इसकी वजह चीन का बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट है, जिसके जरिए ड्रैगन मिडल ईस्ट से यूरोप के बाजारों पर कब्जा जमाना चाहता है। अमेरिका की कोशिश चीन के प्रभाव को रोकने की है, इसलिए उसने भारत की मदद ली और सऊदी अरब-यूएई को नए कॉरिडोर के लिए तैयार किया। इसकी घोषणा से पहले अमेरिकी अधिकारी फाइनर ने कहा था कि अमेरिका की नजर में ये समझौता पूरे क्षेत्र में तनाव कम करेगा और हमें ऐसा लगता है कि इससे टकराव से निपटने में मदद मिलेगी।
इस कॉरिडोर की अगुवाई भारत और अमेरिका साथ मिलकर करेंगे। इस समझौते के तहत कनेक्टिविटी और इंफ्रास्ट्रक्चर पर बड़े पैमाने पर काम होगा। यह ट्रेड रूट भारत को यूरोप से जोड़ते हुए पश्चिम एशिया से होकर गुजरेगा। भारत और अमेरिका के अलावा पश्चिम एशिया से संयुक्त अरब अमीरात व सऊदी अरब और यूरोप से यूरोपीय संघ, फ्रांस, इटली व जर्मनी भी इसका हिस्सा होंगे।
यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेन ने परियोजना के शुभारंभ पर कहा, ‘‘यह महाद्वीपों और सभ्यताओं के बीच एक हरित और डिजिटल सेतु है।’’ रेल से भारत और यूरोप के बीच व्यापार 40 प्रतिशत तेज हो जाएगा। भारत मिडल ईस्ट-यूरोप आर्थिक गलियारे का उद्देश्य मध्य पूर्व के देशों को रेलवे से जोड़ना और उन्हें बंदरगाह के माध्यम से भारत से जोड़ना है जिससे शिपिंग समय, लागत और ईंधन के इस्तेमाल में कटौती करके खाड़ी से यूरोप तक ऊर्जा और ट्रेड में मदद मिलेगी। इस प्रोजैक्ट में 2 अलग-अलग कोरिडोर शामिल होंगे। जहां एक ओर पूर्वी कोरिडोर भारत को खाड़ी देशों से जोड़ेगा वहीं उत्तरी कोरिडोर खाड़ी क्षेत्र को यूरोप से जोड़ेगा। चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशेएटिव यानी बी.आर.आई. प्रोजेक्ट की तर्ज पर ही इसे एक महत्वाकांक्षी योजना माना जा रहा है। महत्वाकांक्षी आर्थिक गलियारे की घोषणा को इस्राइल के लिए ‘बड़ी खबर’ बताते हुए प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि ‘हमारे इतिहास की सबसे बड़ी सहयोग परियोजना’ पश्चिम एशिया का चेहरा बदल देगी। यह इजराइल और पूरी दुनिया को लाभान्वित करेगा।
जहां तक भारत का सवाल है तो ये क्षेत्रीय सीमाओं को नहीं मापता। सभी क्षेत्रों के साथ-साथ कनेक्टिीविटी भारत की मुख्य प्राथमिकता है। कनेक्टिीविटी विभिन्न देशों के बीच आपसी व्यापार नहीं बल्कि आपसी विश्वास भी बढ़ाने का स्रोत है। आज जब हम कनेक्टिविटी की इतनी बड़ी पहल कर रहे हैं तब हम आने वाली पीढ़ियों के सपनों के विस्तार के बीज बो रहे हैं। यह घटनाक्रम एक महत्वपूर्ण समय पर हुआ है क्योंकि जी-20 साझेदारी में शामिल विकासशील देशों के लिए वाशिंगटन को एक वैकल्पिक साझेदार और निवेशक के रूप में पेश किया जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन वैश्विक बुनियादी ढांचे को लेकर चीन की बेल्ट एंड रोड पहल का मुकाबला करना चाहते हैं। अमेरिका की नजर में यह समझौता पूरे क्षेत्र में व्याप्त तनाव के तापमान को कम करेगा और टकराव से निपटने में मदद मिलेगी।
भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा पश्चिम में भारत की जमीनी कनेक्टिविटी को आसान बनाएगा और पाकिस्तान की रोक को बेअसर करेगा। साल 1990 में ही पाकिस्तान ने भारत की जमीनी कनेक्टिविटी के जरिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच देने से मना कर दिया था। इसके अलावा यह गलियारा अरब प्रायद्वीप के साथ भारत की राजनीतिक भागीदारी को गहरा करेगा। पिछले कुछ सालों में मोदी सरकार ने संयुक्त अरब अमिरात और साउदी अरब के साथ तेजी से राजनीतिक और रणनीतिक संबंध बनाए हैं। अमेरिकी अखबार के अनुसार इस परियोजना से अंतर-क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा मिलेगा। जिससे अरब प्रायद्वीप में राजनीतिक गहमागहमी में भी कमी आएगी और क्षेत्र में शांति और स्थिरता भी आएगी।
अगर भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा बनता है तो दक्षिण पूर्व एशिया से खाड़ी, पश्चिम एशिया और यूरोप तक व्यापार प्रवाह के मार्ग पर मजबूती से आगे बढ़ेगा। ये गलियारा आपूर्ति श्रृंखलाओं को भी सुरक्षित करेगा। रोजगार पैदा करेगा और व्यापार सुविधा और पहुंच में सुधार करेगा। इस गलियारे को कई लोग चीन की विवादास्पद बेल्ट एंड रोड पहल के विकल्प के रूप में देखते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह कॉरिडोर भारत की शक्ति और सामर्थ्य बढ़ाने में सहायक होने के साथ ही पड़ोसी चीन की चमक भी फीकी कर सकता है।
-डॉ. आशीष वशिष्ठ
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
अन्य न्यूज़