भारत-मध्यपूर्व-यूरोप इकॉनमी कॉरिडोर के आर्थिक, राजनीतिक और सामरिक मायने को ऐसे समझिए
जानकारों की राय में, इस नए गलियारे के फैसले से भू-राजनीतिक रूप से न केवल एशिया और यूरोप के देश एक दूसरे के बेहद करीब आएंगे, बल्कि अशांत मध्यपूर्व में स्थायी शांति स्थापित करने के लिए सामूहिक प्रयत्न भी करेंगे।
वसुधैव कुटुम्बकम से लेकर पूंजीवाद तक के लिए मुफीद ग्लोबल विलेज की अवधारणा के दृष्टिगत तेजी से बदलती दुनियादारी के बीच जी 20 देशों के नई दिल्ली घोषणा पत्र के अलावा प्रस्तावित भारत-मध्यपूर्व-यूरोप इकॉनमी कॉरिडोर की जो घोषणा हुई है, उसके वैश्विक व क्षेत्रीय आर्थिक और सामरिक मायने अहम हैं। निकट भविष्य में इनके आकार लेते ही राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मायने भी प्रभावित होने लगें तो कोई हैरत की बात नहीं होगी।
सच कहूं तो आरएसएस और भाजपा की जो नई रीति-नीति स्थापित हो रही है, उसके दृष्टिगत भी यह एक बेहद अहम फैसला है। जिससे चाहे अखंड भारत का स्वप्न हो या फिर वसुधैव कुटुम्बकम का, इस प्रस्तावित वैश्विक आर्थिक गलियारे से दोनों बखूबी सधेंगे, बशर्ते कि 2024 में मोदी थ्री सरकार पुनः सत्ता हासिल कर ले। बताया गया है कि भारत से यूरोप तक प्रस्तावित भारत-मध्यपूर्व-यूरोप इकॉनमी कॉरिडोर को दुनिया के आठ देश मिलकर बनाएंगे, जो भारत से इजरायल होते हुए यूरोप तक जाएगा।
मसलन, इस कॉरिडोर के निर्माण में भारत, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ, फ्रांस, इटली, जर्मनी की भागीदारी होगी। ये वो देश हैं, जो चीन के मुकाबले भारत को अपने ज्यादा करीब मानते आए हैं-लोकतांत्रिक और आर्थिक दोनों नजरिए से। इसलिए प्रस्तावित भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा जी-20 शिखर सम्मेलन, नई दिल्ली का वह ऐतिहासिक फैसला है, जिसे आने वाली पीढ़ियां सदियों तक याद रखेंगी।
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जानकारों की राय में, इस नए गलियारे के फैसले से भू-राजनीतिक रूप से न केवल एशिया और यूरोप के देश एक दूसरे के बेहद करीब आएंगे, बल्कि अशांत मध्यपूर्व में स्थायी शांति स्थापित करने के लिए सामूहिक प्रयत्न भी करेंगे। इस नजरिए से देखा जाए तो यह एक बेहतर, अधिक समृद्ध और सामंजस्यपूर्ण भविष्य के लिए एक साथ काम करने के लिए संकल्प लेने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान के बेजोड़ नमूनों में से एक है।
नया गलियारा भारत के प्रतिद्वंद्वी देश चीन के 'वन बेल्ट, वन रोड' परियोजना के लिए एक प्रतिस्पर्धात्मक भारतीय विकल्प के रूप में भी आंका जाने लगा है। इससे चीन व उसके समर्थक देशों को मिर्ची भी लगी होगी, लेकिन 'मोदी डिप्लोमेसी' के सामने न तो किसी की चलती है और न ही कुछ चलने देने के लिए कोई कमी अपनी नीति में वो छोड़ते हैं, जो भारत के बढ़ते वैश्विक सामर्थ्य का प्रतीक बन चुके हैं।
बता दें कि बीआरआई की परिकल्पना 2013 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने की थी, जो वर्ष 2016 से वन बेल्ट वन रोड परियोजना को बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के नाम से जाना जाता है। यह एशिया, यूरोप व अफ्रीका के बीच भूमि और समुद्र में कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए चीन की परियोजनाओं का एक समूह है। जिसे अब भारत की बदलती सशक्त कूटनीति व रणनीति से कड़ी टक्कर मिल रही है।
भारत से यूरोप तक प्रस्तावित भारत-मध्यपूर्व-यूरोप इकॉनमी कॉरिडोर को चीन की बेल्ट एंड रोड पहल के विकल्प के रूप में पेश किया जा रहा है, जिसे दक्षिण एशिया, मध्यपूर्व और अफ्रीका के कई देशों ने अपनाया है। इसलिए अब बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि नया प्रस्तावित आर्थिक गलियारा किस गति से लागू किया जाता है और इसके सामूहिक ध्येय की प्रतिपूर्ति में कितनी ईमानदारी बरती जाती है।
भारत से मध्यपूर्व और यूरोप को जोड़ने वाले भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे का ऐलान करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक ही कहा है कि "इससे वैश्विक बुनियादी ढांचे, निवेश के लिए साझेदारी, आवाजाही और सतत विकास को एक नई दिशा मिलेगी। इतने बड़े कदम के साथ हम भविष्य के विकास के लिए बीज बो रहे हैं। जो आपसी विश्वास मजबूत करने में बड़ी भूमिका निभायेगा।" उन्होंने आगे कहा कि "वैश्विक ढांचे और निवेश के लिए साझेदारी (पीजीआईआई) के जरिए ग्लोबल साउथ देशों में बुनियादी ढांचे का अंतर भरने में हम बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।"
विशेषज्ञ बताते हैं कि भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में एक साथ काम करने के इच्छुक थे, किंतु मध्य-पूर्व में दोनों को मिलकर काम करने की बहुत कम सम्भावना थी। लिहाजा भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा पर दोनों देशों ने हाथ मिला लिया है, जिसके अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे। वहीं, अमेरिकी अधिकारी भी यह मानते हैं कि इस मेगा कनेक्टिविटी परियोजना से अंतर-क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा मिलेगा, जिससे अरब प्रायद्वीप में राजनीतिक गहमागहमी में कमी आएगी। इससे इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता भी आएगी।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह गलियारा अरब प्रायद्वीप के साथ भारत की रणनीतिक भागीदारी को और गहरा करेगा। क्योंकि मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के साथ तेजी से राजनीतिक और रणनीतिक सम्बन्ध बढ़ाए हैं। वहीं, इस गलियारा से पश्चिम से भारत की जमीनी कनेक्टिविटी और आसान हो जाएगी, जो पाकिस्तान की जमीनी आवाजाही के अड़ंगे को बेअसर कर देगा। वहीं, चूंकि तेहरान (ईरान) के साथ भारत के सम्बन्ध अच्छे हैं, लेकिन पश्चिमी देशों के साथ उसका टकराव जगजाहिर है। ऐसे में ईरान से यूरेशिया तक बनने जा रहे इस आर्थिक गलियारे से भारत की व्यवसायिक गतिविधियों पर सकारात्मक असर पड़ने की सम्भावना है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है कि भारत से यूरोप तक प्रस्तावित भारत-मध्यपूर्व-यूरोप इकॉनमी कॉरिडोर यूरोप की सक्रियता का प्रतीक है। क्योंकि यूरोपीय संघ ने 2021-27 में दुनिया में बुनियादी ढांचे के विकास पर खर्च के लिए 300 मिलियन यूरो निर्धारित किये थे, जिसका समर्थन यूरोपीय संघ को, भारत, अरब व यूरोप को प्रमुख हितधारक बना देगा। यही वजह है कि दुनिया के अन्य देशों ने भी भारत के इस सपने को साकार करने में न केवल अहम भूमिका निभाई है, बल्कि सार्वजनिक रूप से उसकी सराहना भी की है।
एक तरफ अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि "प्रस्तावित आर्थिक कॉरिडोर को दुनिया के 8 देश मिलकर बनाएंगे। यह भारत से इजरायल और यूरोप तक जाएगा। आने वाली पीढ़ियां इस ऐतिहासिक फैसले को याद रखेंगी।" उन्होंने आगे कहा कि, "आर्थिक गलियारे के प्रमुख हिस्से के रूप में हम जहाजों और रेलगाड़ियों में निवेश कर रहे हैं। इससे व्यापार आसान होगा।" तो दूसरी ओर, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि, "यह पहल वैश्विक हरित व्यापार मार्ग से सम्बंधित है।"
वहीं, यूरोपीय संघ के अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने इस प्रस्तावित कॉरिडोर को ऐतिहासिक बताते हुए कहा है कि "इससे व्यापार में मजबूती आएगी और इसके साथ ही यात्रा के समय में कमी आएगी।" वहीं, सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने कहा कि "मैं उन लोगों को धन्यवाद देना चाहता हूं, जिन्होंने आर्थिक कॉरिडोर की स्थापना के लिए यहां तक पहुंचने में अहम योगदान दिया है।"
इसलिए समझा जा रहा है कि भारत से यूरोप तक प्रस्तावित भारत-मध्यपूर्व-यूरोप इकॉनमी कॉरिडोर दुनिया के लिए तरक्की की नई राह खोलेगा। इससे विभिन्न देशों के बीच न केवल पारस्परिक संपर्क बढ़ेगा, बल्कि व्यापार और रोजगार भी अप्रत्याशित रूप से बढ़ेगा। स्वाभाविक है कि इससे महाद्वीपीय संस्कृति भी एक-दूसरे से प्रभावित होगी जो परस्पर आत्मसात की जाएगी। चूंकि भारतीय सभ्यता व संस्कृति की आत्मसात करने की क्षमता दूसरों से अधिक है, इसलिए नया गलियारा उसकी लोकप्रियता वृद्धि में भी सहायक हो सकता है।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार
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