NDA 25 साल का होने जा रहा है, भारतीय राजनीतिक इतिहास का यह बहुत बड़ा घटनाक्रम है

Narendra Modi
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1998 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को टक्कर देने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने उत्तर-दक्षिण-पूरब-पश्चिम के कई दलों का ऐसा संगम बनाया कि कांग्रेस और तीसरे मोर्चे का सफाया हो गया और तेलुगू देशम पार्टी के बाहरी समर्थन से केंद्र में अटलजी की सरकार बन गयी।

केंद्र में मोदी सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) अपनी स्थापना के 25 वर्ष पूरे करने जा रहा है जोकि बड़ी उपलब्धि है। देश के राजनीतिक इतिहास में आज तक बहुत से गठबंधन बने और टूटे लेकिन एनडीए 25 वर्षों से अपने अस्तित्व में बना हुआ है और वर्तमान में केंद्र की सरकार के अलावा 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इसकी सरकारें हैं। दरअसल, 90 के दशक में जब भाजपा को राजनीतिक रूप से अछूत माना जाता था और कोई भी दल मुस्लिम मतों को गंवाने के डर से भाजपा के साथ गठबंधन करने से परहेज करता था, उस समय 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी ने क्षेत्रीय दलों को शामिल कर जो गठबंधन बनाया था उसे एनडीए नाम दिया गया। हम आपको याद दिला दें कि 1996 के लोकसभा चुनावों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी को सबसे बड़े दल का नेता होने के नाते पहले सरकार बनाने का अवसर भी दिया लेकिन भाजपा के पास शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल के अलावा किसी अन्य दल का समर्थन नहीं था जिसके चलते अटलजी की सरकार मात्र 13 दिनों में ही गिर गयी थी।

कैसे बना NDA ?

1996 के इस अनुभव को देखते हुए भाजपा ने क्षेत्रीय दलों के साथ संवाद का काम शुरू किया और अपने मूल मुद्दों को किनारे रखते हुए एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन बनाने की कवायद शुरू की। जल्द ही यह कवायद रंग लाई और 1998 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को टक्कर देने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने उत्तर-दक्षिण-पूरब-पश्चिम के कई दलों का ऐसा संगम बनाया कि कांग्रेस और तीसरे मोर्चे का सफाया हो गया और तेलुगू देशम पार्टी के बाहरी समर्थन से केंद्र में अटलजी की सरकार बन गयी। हालांकि एनडीए सहयोगी अन्नाद्रमुक की नेता जयललिता की ओर से समर्थन वापस लिये जाने के कारण अटलजी की सरकार 13 महीने में ही गिर गयी लेकिन 1999 में हुए लोकसभा चुनावों में एनडीए एक बार फिर सत्ता में पहले से ज्यादा ताकत के साथ लौटा। हालांकि निर्धारित अवधि से छह महीने पहले कराये गये लोकसभा चुनावों में एनडीए की हार हुई और कांग्रेस के नेतृत्व वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सत्ता में आया। यूपीए ने 2004 से 2014 तक राज किया। उसके बाद मई 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए एक बार फिर सत्ता में लौटा और तबसे केंद्र तथा विभिन्न राज्यों में इसकी सरकार चल रही है।

एनडीए ने बड़ा मिथक तोड़ा

दरअसल एनडीए 25 साल पूरे कर रहा है सिर्फ यही इसकी उपलब्धि नहीं है। एनडीए की उपलब्धि यह भी है कि इसने सबसे पहले भारत में उस मिथक को तोड़ा था कि गठबंधन सरकारें अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकतीं। एनडीए की सफलता देख कर ही कांग्रेस का भी अहंकार टूटा था। देवेगौड़ा और गुजराल की सरकार से समर्थन वापस लेकर उन्हें गिराने वाली कांग्रेस कभी क्षेत्रीय दलों को अपने साथ नहीं बिठाती थी लेकिन 2004 के लोकसभा चुनावों से पहले शिमला में हुई कांग्रेस की बैठक में यूपीए के गठन का निर्णय लिया गया और वामदलों से लेकर अन्य कई दलों को इसमें शामिल किया गया।

एनडीए के उतार-चढ़ावों की बात करें तो इसमें सबसे पहले शामिल होने वाली शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल ने 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद अलग-अलग कारणों से इस गठबंधन को छोड़ दिया। हालांकि शिवसेना जबसे एकनाथ शिंदे के हाथ में आई है तबसे इसकी वापसी एनडीए में हो गयी है। एनडीए की शुरुआत से ही घटक रही समता पार्टी जोकि बाद में जनता दल युनाइटेड कहलाई, वह भी एनडीए में आती जाती रहती है। फिलहाल वह इस गठबंधन से बाहर है। 

एनडीए का स्वरूप और इसके कार्य

एनडीए के स्वरूप की बात करें तो इसके तहत गठबंधन नेताओं की जो समिति बनी थी वह सीटों और पदों के बंटवारे से लेकर संसद में उठाये जाने वाले मुद्दों और विरोधियों के हमलों से बचाव की रणनीति बनाती है। अतीत में कई बार कुछ निर्णयों में विचारधाराएं आड़े आईं तो बहुमत के आधार पर फैसले भी लिये गये। एनडीए के संयोजकों की बात करें तो अटल बिहारी वाजपेयी इसके संस्थापक संयोजक थे। एनडीए की कमान भाजपा में अटलजी के अलावा लालकृष्ण आडवाणी के पास वर्किंग चेयरमैन के नाते रही तो कुछ समय तक भाजपा नेता जसवंत सिंह ने भी इसका नेतृत्व किया। 2014 से एनडीए के चेयरमैन अमित शाह हैं जबकि इसके शीर्ष नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस ने भी 2008 तक एनडीए का इसके संयोजक के नाते नेतृत्व किया, इसके बाद जदयू के तत्कालीन अध्यक्ष शरद यादव के हाथ में एनडीए संयोजक पद की कमान आई। लेकिन जून 2013 में जब जदयू ने एनडीए गठबंधन छोड़ा तो शरद यादव ने भी संयोजक पद छोड़ दिया। तब आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री और टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू को एनडीए का संयोजक बनाया गया। 2018 में चंद्रबाबू ने भी एनडीए छोड़ा और तबसे इसके संयोजक का पद खाली पड़ा हुआ है। एनडीए के कुछ घटक कई बार यह मांग कर चुके हैं कि सहयोगी दलों के बीच बेहतर सामंजस्य बनाये रखने के लिए एनडीए संयोजक की नियुक्ति की जानी चाहिए। 

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एनडीए में शामिल दल

केंद्रीय स्तर पर एनडीए में शामिल दलों की बात करें तो इसमें भाजपा के अलावा शिवसेना, आरएलजेपी, अपना दल (सोनेलाल), एनपीपी, एनडीपीपी, आजसू, एसकेएम, एमएनएफ, एनपीएफ, अन्नाद्रमुक, आरपीआई (ए), एजीपी, पीएमके, टीएमसी (मूपनार) और यूपीपीएल शामिल हैं। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में निषाद राज पार्टी और कुछ अन्य क्षेत्रीय दलों का भाजपा को समर्थन हासिल है। इसी तरह की स्थिति कुछ अन्य राज्यों में भी है। इसके अलावा 2016 में पूर्वोत्तर में एनडीए के तहत बनाये गये नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस (NEDA) में भाजपा के अलावा कई क्षेत्रीय दल शामिल हैं। यह गठबंधन पूर्वोत्तर के अधिकांश राज्यों में सरकार चला रहा है।

एनडीए की सफलताएं

एनडीए की सफलताओं की बात करें तो इसने 1998, 1999, 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव जीतकर अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सिर्फ सरकार ही नहीं दी है बल्कि तीन बार उसके राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार- डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, रामनाथ कोविंद और द्रौपदी मुर्मू जीती हैं तो इसके अलावा तीन बार ही एनडीए के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार- भैरों सिंह शेखावत, एम. वेंकैया नायडू और जगदीप धनखड़ की जीत हुई। एनडीए ने लालकृष्ण आडवाणी के रूप में देश को एक उपप्रधानमंत्री भी दिया है। अटलजी और मोदी के नेतृत्व में केंद्र में एनडीए की जीत में फर्क यह रहा कि अटलजी को जहां दोनों बार गठबंधन की सरकार चलानी पड़ी वहीं मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने अपने दम पर बहुमत हासिल किया लेकिन गठबंधन धर्म निभाते हुए सहयोगी दलों को भी मंत्रिमंडल में स्थान दिया।

एनडीए की सरकारें

भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बात करें तो अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू, असम में हिमंत बिस्व सरमा, गोवा में प्रमोद सावंत, गुजरात में भूपेंद्र पटेल, हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे, मणिपुर में एन. बिरेन सिंह, मेघालय में कोनराड संगमा, नगालैंड में नेफियू रियो, पुडुचेरी में एन. रंगासामी, सिक्किम में प्रेम सिंह तमांग, त्रिपुरा में माणिक साहा, उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ और उत्तराखण्ड में पुष्कर सिंह धामी शामिल हैं। इसके अलावा देश के विभिन्न राज्यों के नगर निकायों में भी एनडीए शासन कर रहा है। देखा जाये तो भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए देश में केंद्र की सत्ता के अलावा अब तक सिर्फ तीन राज्यों- केरल, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल को छोड़कर बाकी सभी राज्यों में सरकार बना चुका है।

बहरहाल, साल 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए एनडीए अपने आप को एक बार फिर तैयार करने में जुटा है। माना जा सकता है कि अपनी स्थापना की रजत जयंती मनाने जा रहे एनडीए में कुछ और दल भी शामिल हो सकते हैं। आने वाले दिनों में इस गठबंधन की अधिक बैठकें भी देखने को मिल सकती हैं क्योंकि एनडीए की अपेक्षा 19 दलों को साथ लेकर कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए ने संसद के बजट सत्र में मोदी सरकार को काम नहीं करने दिया, संसद के नये भवन के उद्घाटन कार्यक्रम का बहिष्कार किया और अब पटना में 12 जून को सभी विपक्षी दलों की एक बैठक कर आगे की कार्ययोजना बनाई जायेगी। ऐसे में सिर्फ भाजपा को ही नहीं एनडीए को भी पूरी तरह से सक्रिय होने की जरूरत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उपमुख्यमंत्रियों की बैठक में निर्देश दिये भी हैं कि राज्य सरकारें क्षेत्रीय आकांक्षाओं को पूरा करने की दिशा में तेजी से कदम उठायें।

-नीरज कुमार दुबे

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