मुस्लिमों ने कर्नाटक में भाजपा का विरोध किया मगर उत्तर प्रदेश में उसको वोट दिया, ऐसा क्यों?
चुनाव परिणाम आये तो कर्नाटक ने खूब चौंकाया क्योंकि मुस्लिमों के 82 प्रतिशत से ज्यादा मत अकेले कांग्रेस को चले गये। इसलिए यह सवाल उठा है कि क्या बजरंग दल को प्रतिबंधित करने के वादे का मकसद मुस्लिम मतों को अपने पक्ष में लामबंद करना था?
देश में एक ओर कर्नाटक विधानसभा के चुनाव हुए तो ठीक उसी समय देश में संसदीय और विधानसभा सीटों के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव कराये गये। चुनाव से पहले तक कर्नाटक में भाजपा सरकार थी और उत्तर प्रदेश में तो भाजपा की सरकार है ही। इसलिए यह देखना महत्वपूर्ण हो जाता है कि दोनों राज्यों में मुस्लिमों ने किधर मतदान किया? देखा जाये तो दोनों राज्यों में चुनावों से ठीक पहले कुछ संबंधित घटनाएं भी हुईं। कर्नाटक में भाजपा सरकार ने मुस्लिमों का चार प्रतिशत आरक्षण खत्म कर दिया तो कांग्रेस ने वादा किया कि हम सत्ता में आते ही यह आरक्षण बहाल करेंगे। इसके अलावा कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में बजरंग दल को प्रतिबंधित करने का वादा कर दिया जिसे भाजपा ने बजरंग बली का अपमान बताते हुए चुनावी मुद्दा बना लिया। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गैंगस्टर अतीक अहमद, उसके भाई और उसके बेटे के मिट्टी में मिल जाने की घटना को विपक्ष खासकर समाजवादी पार्टी ने ऐसे प्रस्तुत किया कि योगी सरकार अल्पसंख्यकों के खिलाफ है। इसके अलावा, यह दोनों चुनाव इस बात की परख भी हो गये थे कि प्रधानमंत्री मोदी के 'सबका साथ, सबका विकास' के मूलमंत्र पर उनकी राज्य सरकारों के कामकाज को मुस्लिम मतदाता कैसे आंकते हैं?
कर्नाटक ने क्यों चौंकाया?
चुनाव परिणाम आये तो कर्नाटक ने खूब चौंकाया क्योंकि मुस्लिमों के 82 प्रतिशत से ज्यादा मत अकेले कांग्रेस को चले गये। इसलिए यह सवाल उठा है कि क्या बजरंग दल को प्रतिबंधित करने के वादे का मकसद मुस्लिम मतों को अपने पक्ष में लामबंद करना था? वैसे कांग्रेस घोषणापत्र समिति में शामिल नेताओं ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि इस मुद्दे को आखिरी मिनट पर घोषणापत्र में डाला गया, ताकि भाजपा इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बना सके। कांग्रेस की घोषणापत्र समिति के सदस्य रहे एक नेता का कहना है कि बजरंग दल वाली बात जानबूझकर डाली गई, जिसका बाद में चुनावी लाभ मिला। कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘‘हमने घोषणापत्र का दो सेट तैयार किया था। एक को कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को अप्रैल के पहले सप्ताह में दिया गया और दूसरे को पहले घोषणापत्र के एक सप्ताह बाद तैयार किया गया।’’
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कर्नाटक में मुस्लिमों ने किसको क्या दिया?
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में नौ मुस्लिम उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की और ये सभी कांग्रेस से हैं। चुनाव परिणामों से ऐसा लगता है कि मुस्लिम वोट कांग्रेस के पक्ष में एकजुट हुआ। कर्नाटक के कुल मतदाताओं में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 13 प्रतिशत है। कांग्रेस पार्टी ने मुसलमानों के लिए चार प्रतिशत आरक्षण बहाल करने का वादा किया था, जिसे पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने खत्म कर दिया था। उल्लेखनीय है कि हिजाब को लेकर हुए विवाद और केंद्र सरकार द्वारा इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर पांच साल का प्रतिबंध लगाए जाने के बाद राज्य में यह पहला विधानसभा चुनाव था। कांग्रेस ने 15 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया और उनमें से नौ विजयी हुए। जद (एस) ने 23 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, लेकिन कोई भी जीत हासिल नहीं कर सका। असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने दो सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे कुल पड़े मतों का केवल 0.02 प्रतिशत हासिल हुआ था। पीएफआई के राजनीतिक संगठन एसडीपीआई का भी कुछ ऐसा ही हश्र हुआ क्योंकि उसके 16 उम्मीदवारों में से कोई भी खाता नहीं खोल सका।
उत्तर प्रदेश ने दिखाई नई राह
दूसरी ओर बात उत्तर प्रदेश की करें तो दिल्ली की राजनीति के लिहाज से यह राज्य काफी महत्वपूर्ण है। यहां मुस्लिम वोटों की बंदरबांट समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच होती रही है। पहले मुस्लिमों को कांग्रेस का वोटबैंक माना जाता था लेकिन वोट बैंक बने रहने के चलते यह समुदाय कभी आर्थिक और सामाजिक रूप से उठ नहीं पाया। भाजपा कभी भी मुस्लिमों को टिकट नहीं देती थी इसलिए भी मुस्लिम मतदाता भगवा पार्टी से दूर रहते थे लेकिन केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से जब मुस्लिमों को सभी सरकारी योजनाओं का लाभ पारदर्शी रूप से मिलना शुरू हुआ और समाज की आर्थिक व सामाजिक स्थिति सुधरी तो दशकों पुराने वोट बैंक भी टूटने लगे। पहले भाजपा को मुस्लिम बहुल आजमगढ़ और रामपुर संसदीय सीटों के उपचुनावों में विजय मिली, उसके बाद रामपुर और स्वार विधानसभा सीटों के उपचुनाव में भी विजय मिली। यह दोनों ही सीटें मुस्लिम बहुल हैं। रामपुर में जहां भाजपा उम्मीदवार ने जीत का परचम लहराया था तो वहीं स्वार में भाजपा की सहयोगी पार्टी अपना दल (सोनेलाल) के उम्मीदवार को जीत मिली।
यूपी ने किया कमाल
मुस्लिम भाजपा के करीब आये तो भाजपा ने भी अपनी 'मुस्लिम विरोधी' छवि को तोड़ने की कोशिश के तहत उत्तर प्रदेश के नगरीय निकाय चुनावों में 395 मुसलमानों को टिकट दे डाले और इनमें से करीब 45 उम्मीदवारों ने जीत भी हासिल कर ली है। अब भाजपा इसे लेकर उत्साहित है और उसका मानना है कि पार्टी के प्रति मुसलमानों के बदलते रुझान का असर आगामी लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा। हालांकि मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस ने भाजपा के दावों को गलत बताते हुए पूछा है कि क्या भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव में भी मुसलमानों को टिकट देगी। देखा जाये तो अगर मुसलमान बहुल सीटों पर भी भाजपा शानदार जीत दर्ज कर रही है तो यह दिखाता है कि अल्पसंख्यकों के मन में भाजपा को लेकर तमाम आशंकाएं समाप्त हो गई हैं। अब वे अपने विकास के लिए भाजपा को वोट दे रहे हैं और भाजपा के प्रति मुस्लिमों के मन में अफवाह फैलाने वालों की राजनीतिक दुकानें बंद हो गई हैं। देखा जाये तो जिन मुस्लिम बहुल इलाकों में भाजपा के उम्मीदवार नहीं जीते पर वहां वह दूसरे स्थान पर रहे हैं, जबकि समाजवादी पार्टी तीसरे या चौथे स्थान पर पहुंच गई है। इससे जाहिर होता है कि मुसलमानों का वोट धीरे-धीरे भाजपा की तरफ जा रहा है।
अयोध्या की मिसाल
इसके अलावा जो लोग इस तरह की अफवाहें उड़ाते हैं कि उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक सौहार्द्र अच्छा नहीं है उन्हें जरा अयोध्या के परिणाम देखने चाहिए। अयोध्या में महापौर पद पर फिर से भाजपा की जीत के बीच नगर निगम के हिंदू बहुल वार्ड में मुस्लिम युवक सुलतान अंसारी ने पार्षद के पद पर जीत दर्ज की है। राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन के नायक-महंत राम अभिराम दास के नाम पर रखे गए वार्ड से सुलतान अंसारी ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीत कर सबको चौंका दिया। वोट प्रतिशत के हिसाब से इस वार्ड में हिंदू समुदाय के 3844 मतदाताओं के मुकाबले सिर्फ़ 440 मुस्लिम वोटर हैं। यहां 10 उम्मीदवार मैदान में थे। कुल पड़े 2388 मतों में अंसारी को 996 मत मिले जो करीब 42 फीसद है। अंसारी ने पहली बार चुनाव में किस्मत आजमायी। उन्होंने राम जन्मभूमि के पास के हिंदू बहुल वार्ड में एक अन्य निर्दलीय उम्मीदवार नागेंद्र मांझी को 442 मतों के अंतर से हराया। भाजपा इस सीट पर तीसरे नंबर पर रही। देखा जाये तो अयोध्या को बाहर से देखने वाले भले सोचते हैं कि अयोध्या में कोई मुसलमान कैसे जीत सकता है, लेकिन अब वे देख सकते हैं कि अयोध्या में लोग कितना मिलजुलकर रहते हैं।
ध्यान रखना होगा
बहरहाल, सिर्फ कर्नाटक चुनाव परिणाम का विश्लेषण कर जो लोग पूरे देश के मुसलमानों के 'मन की बात' को प्रस्तुत करने का दावा कर रहे हैं जरा उन्हें उत्तर प्रदेश के मुस्लिम मतदाताओं का मन भी देख लेना चाहिए। इसके अलावा यह भी ध्यान रखना चाहिए कि विधानसभा और लोकसभा चुनावों के मुद्दे और नेतृत्व भी अलग होते हैं इसलिए किसी एक राज्य के चुनाव के आधार पर पूरे देश की संभावित राजनीतिक परिस्थिति का विश्लेषण करना गलत है। साथ ही कर्नाटक का चुनाव प्रचार और चुनाव परिणाम यह भी दर्शाते हैं कि वहां भाजपा कांग्रेस की ओर से फैलाये गये ध्रुवीकरण के जाल में फँस गयी थी और उससे पहले बोम्मई सरकार मुस्लिम समाज तक सरकार की उपलब्धियों को भी नहीं पहुँचा पाई थी।
-नीरज कुमार दुबे
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