मोदी सरकार ईमानदार, पर भाजपा शासित राज्यों में भ्रष्टाचार
इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी केन्द्र सरकार में पूरी ईमानदारी से कार्य करवा रहे हैं, मगर राज्य सरकारों में भ्रष्टाचार आज भी बदस्तूर जारी है विशेषकर भाजपा शासित राज्यों में।
'सबका साथ सबका विकास' के नारे के सहारे तीन वर्ष पूर्व भारी बहुमत से केन्द्र में सरकार बनाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने तीन साल बिना किसी घोटाले या भ्रष्टाचार के सफलतापूर्वक पूरे कर लिये हैं। मोदी सरकार से पूर्व केन्द्र की कांग्रेस नीत गठबंधन की सरकार आये दिन बड़े-बड़े घोटालों, भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी हुयी थी। उस वक्त सरकार की बदनामी से आम जन में यह धारणा व्याप्त हो गयी थी कि कांग्रेस नीत केन्द्र सरकार को हटाये बिना देश में व्याप्त भ्रष्टाचार मिटने वाला नहीं हैं। उसी के विकल्प के रूप में जनता ने पूर्ण बहुमत से भाजपा को केन्द्र की सत्ता सौंपी थी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केन्द्र में सरकार बनाते ही इस बात का पूरा ख्याल रखा कि उनकी सरकार पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की तरह बदनाम ना होने पाये। मोदी ने अपनी सरकार में शामिल मंत्रियों की कार्य प्रणाली पर पूरी नजर रखी व कुछ गलत लगा तो समय रहते ही उसे सावधान कर दिया। मोदी की सतर्कता व ईमानदार कार्य प्रणाली के चलते तीन साल के कार्यकाल में विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा आज तक उनकी सरकार पर अंगुली नहीं उठायी जा सकी है।
मोदी ने केन्द्र सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने की दिशा में कई ऐतिहासिक कदम उठाये जिनकी बदौलत भ्रष्टाचार पर काफी लगाम लगी। उन्होंने पारदर्शी कार्यप्रणाली पर जोर दिया। छोटी नौकरियों में साक्षात्कार प्रणाली को समाप्त करना भ्रष्टाचार रोकने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हुआ। उन्होंने केन्द्रीय मंत्रियों के स्टाफ में परिवारजनों की नियुक्ति पर रोक लगायी। घरेलू गैस अनुदान को आधार कार्ड से जोड़कर उपभोक्ता के अनुदान की राशि सीधे उसके बैंक खाते में भिजवाना प्रारम्भ करवाया जिससे भ्रष्टाचार पर रोक लग पायी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी केन्द्र सरकार में पूरी ईमानदारी से कार्य करवा रहे हैं, मगर राज्य सरकारों में भ्रष्टाचार आज भी बदस्तूर जारी है विशेषकर भाजपा शासित राज्यों में। देश के ऐसे राज्य जहां भाजपा की सरकार हैं वहां भ्रष्टाचार नहीं रूकना भाजपा की बदनामी का एक बड़ा कारण साबित होगा। भाजपा शासित राज्यों की सरकारें अपनी पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों की तरह ही चल रही हैं। उन्हें शायद प्रधानमंत्री का खौफ नजर नहीं आ रहा है। राजस्थान में भाजपा की सरकार है मगर यहां के मंत्री व विधायक बेखौफ नजर आते हैं।
केन्द्र सरकार ने लालबत्ती व वीआईपी कल्चर समाप्त कर दिया मगर राजस्थान में आज भी यह जारी है। राजस्थान में सरकार द्वारा कई बोर्ड, निगमों, आयोगों के अध्यक्ष व सदस्यों को मंत्री स्तर का दर्जा दिया गया है। सरकार द्वारा बनाये गये अध्यक्ष, सदस्य को इस बात का पता है कि उन्हें मात्र मंत्री स्तर का दर्जा दिया गया है ताकि उन्हें उस स्तर के वेतन भत्ते व सुविधा मिल सकें। मगर राजस्थान में ऐसे दर्जा प्राप्त नेताओं ने स्वयं को केबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री लिखना शुरू कर दिया है। ऐसा राजस्थान में पहली बार देखने को मिल रहा है। कानूनन राजस्थान में 30 मंत्री ही बन सकते हैं मगर आज यहां कई दर्जन अवैध मंत्री बने घूम रहे हैं। ऐसे फर्जी मंत्रियों पर मुख्यमंत्री कोई कार्यवाही नहीं कर रही हैं जिससे ऐसे फर्जीवाड़े पर रोक लग सके। राजस्थान सरकार का जनसम्पर्क विभाग भी दर्जा प्राप्त नेताओं को सरकारी प्रेस विज्ञप्तियों में मंत्री ही लिख रहा है। दिल्ली में संसदीय सचिवों का ऐसा ही प्रकरण चुनाव आयोग के समक्ष लम्बित पड़ा है जिसमें विधायकों की सदस्यता जा सकती है जिसका कभी भी फैसला आ सकता है।
विवादों के कारण सरकार में मंत्री किरण महेश्वरी, हेमसिंह भडाना, राजकुमार रिणवा, राजेन्द्र राठौड़ का विभाग बदलना पड़ा। इससे राज्य सरकार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। झुंझुंनू सांसद संतोष अहलावत खुद सांसद बनी हैं मगर उनका पूरा परिवार राजनीति कर रहा है। उनके पति भाजपा के वरिष्ठ नेता बन उद्घाटन करते घूम रहे हैं तो पुत्र तन्मय अहलावत जिला भाजपा युवा मोर्चा का महामंत्री है। भतीजा सुदेश अहलावत को झुंझुंनू नगर परिषद का अध्यक्ष बनवा दिया गया और सुदेश अहलावत की पत्नी कृष्णा अहलावत को जिला बाल कल्याण समिति का सदस्य बना दिया। चूरू के पूर्व सांसद रामसिंह कस्वां का पुत्र राहुल कस्वां सांसद हैं तो उनकी पत्नी कमला कस्वां पूर्व विधायक व वर्तमान में राजस्थान समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष हैं जिन्हें राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त है। अलवर के सांसद महंत चांदनाथ ज्यादातर समय अपने हरियाणा स्थित आश्रम में रहते हैं। अलवर के मतदाता उन्हें ढ़ूंढते फिर रहे हैं। इस तरह के आचरण व परिवारवाद से जनता की नजर में पार्टी व सरकार की छवी नकारात्मक बनती जा रही है। सरकार में मंत्री, अधिकारी आज भी कांग्रेस सरकार की तरह पूरे रईसी ठाठ से रहते हैं। पार्टी के विधायक सांसद ही नहीं कई छुटभैया टाईप नेता भी सरकार बनने के बाद महंगी गाड़ियों में घूमने लगे हैं।
मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार पर व्यापमं घोटाले के आरोप लगे हुये हैं। उनकी सरकार के कई मंत्री व अन्य मंत्री स्तर का दर्जा प्राप्त नेताओं पर कई बार आरोप लगे हैं मगर मुख्यमंत्री उनको लगातार नजरअंदाज करते जा रहे हैं। प्रदेश में अधिकारी हावी हैं जमीन से जुड़े नेताओं को किनारे किया जा रहा है। प्रदेश में खनन माफियाओं पर रोक लगाने में सरकार पूर्णतया नाकाम रही है। शिक्षा घोटाले बदस्तूर जारी हैं। हाल ही में मन्दसौर में किसानों पर हुयी गोलाबारी की घटना से सरकार की छवि खराब हुयी है।
छत्तीसगढ़ में रमण सिंह को मुख्यमंत्री बने साढ़े तेरह साल हो चुके हैं। मुख्यमंत्री के रूप में वो लगातार अपना तीसरा कार्यकाल पूरा करने जा रहे हैं। इतने लम्बे शासनकाल में भी प्रदेश को नक्सल समस्या से मुक्त नहीं करवा पाना उनकी नाकामी दर्शाती है। नक्सलियों द्वारा आये दिन सुरक्षा बलों के जवानों पर हमला कर उनकी जान लेना आम बात हो गयी है। नक्सल समस्या के कारण प्रदेश के सुदूर देहाती क्षेत्र आज भी विकास से कोसों दूर खड़ा है। गरीबी की मार झेल रहे आदिवासियों पर नक्सली बर्बरता बताती है कि प्रदेश में सरकार का नहीं नक्सलियों का राज चल रहा है जो किसी भी सरकार के लिये बड़े शर्म की बात है। उत्तराखंड में सरकार बनी नहीं कि मंत्रियों की नराजगी की खबरें आने लगीं जो शुभ संकेत नहीं है। वहां कई विधायक अपनी उपेक्षा से नाराज हैं। उत्तर प्रदेश में नवेले बने मंत्री व विधायकों ने योगी सरकार को कई बार नीचा दिखाया है। युवा हिन्दु वाहिनी के क्रियाकलापों ने कई बार सरकार को परेशानी में डाला है। प्रदेश में नये बने विधायकों को काबू में रख पाना मुख्यमंत्री योगी के लिये भी टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। झारखण्ड में मुख्यमंत्री का अपने मंत्रियों व विधायकों पर पूरा नियंत्रण नहीं हो पाया है। वहां आज भी आदिवासी व गैर आदिवासी का मुद्दा मुंह बाये खड़ा है। मुख्यमंत्री की जनहितकारी योजनाओं को उनके ही नेता पलीता लगा रहे हैं।
महाराष्ट्र में भाजपा के कई मत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। भूमि घोटाला और अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के फोन कॉल मामले को लेकर विवादों में घिरे महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री एकनाथ खड़से को मंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के रिश्तेदार की शादी में बीजेपी मंत्री, विधायक और पुलिसवालों के पहुंचने से विवाद छिड़ गया है। नासिक में दाऊद के रिश्तेदार की शादी में मुख्यमंत्री के करीबी माने जाने वाले मेडिकल एजुकेशन मिनिस्टर गिरीश महाजन, बीजेपी विधायक देवयानी फरांडे, बालासाहेब सनप और सीमा हिरे भी शामिल हुये थे। मंत्री के साथ नासिक की मेयर रंजना भंसी, डेप्युटी मेयर प्रथमेश गीते व कई पार्षद भी शादी में पहुंचे थे।
महाराष्ट्र की महिला एवं बाल कल्याण मंत्री पंकजा मुंडे भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर लगातार विवादों में बनी हुयी हैं। हाल ही में उनके विभाग से जुड़े नए आरोप सामने आए हैं। आम आदमी पार्टी की सदस्य प्रीति शर्मा-मेनन ने आरोप लगाया है कि पंकजा ने नियम तोड़ कर एकात्मिक बाल विकास योजना के तहत पोषण आहार बनाने के ठेके फर्जी स्व सहायता समूहों को दिए हैं।
उधर, मणिपुर में जोड़तोड़ से बनी सरकार गठन के एक महीने बाद ही भाजपा नीत गठबंधन सरकार के मंत्री एल. जयंतकुमार ने अपने अधिकार क्षेत्र में मुख्यमंत्री एन. वीरेन सिंह के दखल को लेकर अपने पद से इस्तीफा दे दिया था जिसे आलाकमान ने हस्तक्षेप कर वापिस करवाया था। मंत्री एल. जयंतकुमार ने आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री उनके कार्यों में अनावश्यक हस्तक्षेप करते हैं।
गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनन्दी बेन की पुत्री पर भी उनके मुख्यमंत्री के कार्यकाल के दौरान राजकाज में अनावश्यक हस्तक्षेप करने व भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। हरियाणा में मुख्यमंत्री व कई विधायकों में कई दिनों से अनबन चल रही है। वहां के मुख्यमंत्री तो ईमानदार हैं मगर उनका व्यक्तित्व प्रभावशाली नहीं होने के कारण वह अपनी छाप नहीं छोड़ पा रहे हैं। हरियाणा में असली झगड़ा मलाईदार पदों के बंटवारे को लेकर चल रहा है। यदि समय रहते भाजपा आलाकमान ने बेकाबू होते अपने प्रादेशिक नेताओं को काबू में नहीं किया व उनकी मनमानी पर रोक नहीं लगायी तो आने वाले समय में भाजपा के लिये यह एक बड़ी समस्या बन जायेगी जो प्रधानमंत्री मोदी के स्वच्छ भारत, विकसित भारत व ईमानदार भारत के सपने को पलीता लगा देगी।
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