मंदिरों की आय पर निगाह रखने की बजाय राजस्व बढ़ाने के अन्य उपाय ढूँढ़े कर्नाटक सरकार
ख़िलजी और मुग़लों का वो जज़िया कर ही रूपांतरित होकर अब फिर भारत में लौट आया है। इस बार औरंगज़ेब का रूप धरा है कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने! अब वह जज़िया वसूलेगी!! कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने यह तुगलकी फ़रमान जारी किया है।
अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि के भव्य निर्माण से आनंदित हिंदुओं के उत्साह, उल्लास, उमंग को समाप्त करने के प्रयास हो रहे हैं। राममंदिर के हर्ष से निर्मित देश के प्रसन्नचित्त मानस को खत्म करने का प्रयास हो रहा है। ऐसा लग रहा है कि अब इटली-रोम संचालित कांग्रेस को हिंदू होने का जज़िया कर दो और देश में दोयम दर्जे का नागरिक कहलाओ।
भारत में जज़िया कभी ग्यारहवीं शताब्दी में अलाउद्दीन ख़िलजी ने लगाया था। यह कर केवल हिंदुओं से उनके धर्म निर्वहन हेतु वसूला जाता था। वसूली भी निर्ममता से होती थी। मुग़लकाल के जज़िया कर वसूलने के निर्दयी, रक्तरंजित व दिल दहला देने वाले अंतहीन क़िस्से अब भी हमारे इतिहास में यहां-वहां बिखरे हुए पड़े हैं। मुस्लिम आक्रमणकारियों के शासनकाल में हिंदू व्यक्ति, संस्थान, परंपराओं पर कर लगाये जाते थे और इसका मुख्य उद्देश्य यह होता था कि व्यक्ति स्वयं को देश में दोयम दर्जे का महसूस करके अपमानित हो। मानसिक व आर्थिक प्रताड़ना इसका उद्देश्य होता था ताकि तंग होकर व्यक्ति या संस्थान अपना धर्म छोड़ दे, धर्मांतरण कर ले या कम से कम अपनी रीति-नीति-पद्धति-परंपरा को तो छोड़ ही दे। यही दुष्कृत्य अब कांग्रेस सरकार कर रही है। एक ओर उसका तत्कालिक लक्ष्य है कि मंदिरों की आय सरकारी ख़ज़ाने में चली जाये और दूसरी ओर उसका दीर्घकालीन लक्ष्य है कि श्रद्धालु मंदिरों को दान देना ही बंद कर दें। मंदिरों में दान नहीं आएगा तो धर्म का विस्तार नहीं होगा, हिंदुत्व दुर्बल होगा और तब कांग्रेस अपना रोम का मिशनरी एजेंडा चला पाएगी। यह सब आपको राजनीतिक शब्दावली लग सकती है, किंतु सत्य यही है। वस्तुतः यह सब कांग्रेस के डेढ़ सौ वर्षीय हिंदुत्व विरोधी जेनेटिकल स्ट्रक्चर का परिणाम है। रह-रहकर कांग्रेस की यह मुग़ल व एडविना माउंटबैटन की आनुवंशिकी बाहर आती है और हिंदुत्व विरोधी कारनामे करती रहती है। मान लो, कर्नाटक कांग्रेस सरकार के ख़ज़ाने भरने को विवश ये बेबस मंदिर यदि आज ही चर्च या मस्जिद में बदल जाएं तो वो इनसे टैक्स नहीं वसूलेगी। यही तो मुग़लों का भी लक्ष्य था।
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ख़िलजी और मुग़लों का वो जज़िया कर ही रूपांतरित होकर अब फिर भारत में लौट आया है। इस बार औरंगज़ेब का रूप धरा है कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने! अब वह जज़िया वसूलेगी!! कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने यह तुगलकी फ़रमान जारी किया है। कांग्रेस ने गत सप्ताह कर्नाटक विधान परिषद में “हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती (संशोधन) विधेयक” पेश किया। विधान परिषद में अल्पमत के कारण कांग्रेस इसे पारित नहीं करा पाई है। इस संशोधन विधेयक में प्रस्ताव है कि 10 लाख से अधिक और एक करोड़ रुपये से कम की वार्षिक आय वाले मंदिरों को पांच फीसदी और एक करोड़ रुपये से अधिक की आय वाले मंदिरों को अपनी वार्षिक आय का दस प्रतिशत कर के रूप में राज्य सरकार को देना होगा।
मंदिर के श्रद्धालुओं द्वारा दिया जाने वाला चंदा मंदिरों के पुनर्निर्माण और श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं बढ़ाने में इस्तेमाल होना चाहिए, लेकिन अगर ये किसी अन्य उद्देश्य से आवंटित किया जाता है तो ये लोगों की आस्था के साथ धोखा होगा। और, यही होने भी वाला है। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार अपनी निर्धनता को ढाँकने के लिए हिंदू मंदिरों के चढ़ावे की राशि का उपयोग करना चाह रही है। सबसे बड़ी तानाशाही की बात यह है कि कर्नाटक सरकार केवल हिंदू मंदिरों से टैक्स वसूलने हेतु यह विधयेक लाई है। मस्जिदों और चर्चों को इससे ठीक वैसे ही छूट दी हुई है जैसे मुग़ल औरंगज़ेब और अन्य तुग़लक़ व ख़िलजी जैसे विदेशी आक्रांताओं के समय दी जाती थी। अब कर्नाटक में हिंदू मंदिर जज़िया कर से सरकारी खजाना भरेंगे और मुस्लिम मस्जिदें इस ख़ज़ाने का आनंद लेंगी!
कर्नाटक में दो सौ पाँच मंदिरों की आय पच्चीस लाख रुपए प्रतिवर्ष से अधिक है, ये मंदिर ए समूह में रहेंगे और कर्नाटक की कांग्रेस सरकार को दस प्रतिशत कर देंगे। एक सौ तिरानवे मंदिर की आय पांच से पच्चीस लाख के रुपए के मध्य है; ये मंदिर अपनी आय में से पांच प्रतिशत का हिस्सा कर्नाटक की कांग्रेस सरकार को देंगे। कांग्रेस सरकार केवल यहीं नहीं रुकने वाली है! उसका यह कुचक्र और आगे बढ़ते हुए प्रदेश के शेष चौंतीस हज़ार मंदिरों को कर देने की श्रेणी में लाने की है। अपनी आय पांच लाख से कम बताने वाले इन मंदिरों का सख़्त शासकीय ऑडिट करके अब इनसे भी आय का पांच प्रतिशत भाग जज़िया कर के रूप में वसूलने की दुरभिसंधि का प्रारंभिक चरण है यह। षड्यंत्र तो अभी प्रारंभ है। आवश्यकता है कि इस विधेयक को तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाए।
-प्रवीण गुगनानी
(सलाहकार, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार, राजभाषा)
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