उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों के सात चरणों का चक्रव्यूह पार करना नहीं होगा आसान
2024 का चुनाव संग्राम भी फिर पश्चिम यूपी से शुरू होगा। शुरुआत में पश्चिमी यूपी की 8 लोकसभा सीटों पर चुनाव होंगे। पिछले लोकसभा चुनाव के बाद से यहां के राजनीतिक हालात में काफी बदलाव आया है, जिसका असर चुनाव में दिख रहा है।
उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों को लेकर पूरे देश मे कौतुहल दिखाई दे रहा है। लोकसभा सीटों के हिसाब से सबसे बड़े राज्य यूपी में मुकाबला त्रिकोणीय होता नजर आ रहा है। त्रिकोणीय मुकाबले में एक तरफ एनडीए के तले मोदी की ‘सेना’ जीत की हुंकार भर रही है तो दूसरी ओर राहुल गांधी के अगुवाई में ‘इंडी’ गठबंधन ताल ठोक रहा है। दोनों गठबंधनों में बस फर्क इतना है कि जहां एनडीए की ओर से मोदी पुनः प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं, वहीं इंडी गठबंधन ने कौन होगा पीएम पर पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन लगता यही है कि यदि इंडी गठबंधन के लिये सत्ता की राह बनी तो राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार होंगे। खैर, अभी किसी निष्कर्ष पर पहुंचना सही नहीं है। कौन होगा अगल प्रधानमंत्री ? यह सात चरणों के मतदान के बाद 04 जून को पता चलेगा, जब वोटों की काउंटिंग होगी। इसी लिये फिलहाल तो सात चरणों के चक्रव्यूह को भेदने के लिये ही सभी पार्टियो मैदान में ताल ठोंक रही हैं। 19 और 26 अप्रैल को प्रथम चरण एवं द्वितीय चरण का मतदान होगा। इन दोनों चरणो में पश्चिमी यूपी की 16 सीटों पर वोटिंग होगी। प्रथम चरण और दूसरे चरण के मतदान में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की क्रमशः आठ-आठ सीटों के उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला होगा। 07 मई को भी तीसरे चरण में दस सीटों पर मतदान होगा इसमें भी दस में से पश्चिमी यूपी की चार सीटें शामिल होंगी। इसके बाद 13 मई को चौथे, 20 मई को पांचवें, 25 मई को छठे और 01 जून को सातवें चरण का मतदान होना होगा। शुरू के तीन चरणों में जो राजनैतिक जंग पश्चिमी यूपी से शुरू होगी वह चौथे और पांचवे चरण में रूहेलखंड, अवध की सीटों पर तो छठे और सातवें चरण में पूर्वांचल में पहुंच कर समाप्त हो जायेगी। चार जून को नतीजे आयेंगे।
2024 लोकसभा चुनावों की शुरुआत पश्चिमी यूपी की आठ लोकसभा सीटों पर से होगा। पहले चरण में चुनाव के लिए आठ सीटों में से, भाजपा ने 2014 के चुनावों में सभी सीटें जीती थीं। 2014 में पार्टी ने अकेले प्रदेश भर में 71 सीटें जीतीं थीं। जबकि एनडीए गठबंधन के पास कुल 73 सीटें थीं। 2019 के चुनाव में इन सीटों पर सपा-रालोद और बसपा गठबंधन के खिलाफ लड़ाई में बीजेपी का प्रदर्शन खराब रहा। उन्होंने 8 में से केवल तीन सीटें जीतीं। ऐसे में सपा और बसपा को पूर्वांचल में कई सीटें मिलीं, जबकि बीजेपी को पूरे प्रदेश में सिर्फ 62 सीटें मिलीं थीं।
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2024 का चुनाव संग्राम भी फिर पश्चिम यूपी से शुरू होगा। शुरुआत में पश्चिमी यूपी की 8 लोकसभा सीटों पर चुनाव होंगे। पिछले लोकसभा चुनाव के बाद से यहां के राजनीतिक हालात में काफी बदलाव आया है, जिसका असर चुनाव में दिख रहा है। यह चुनाव क्षेत्र में एक प्रमुख व्यक्ति रालोद नेता जयंत चौधरी की स्थिति भी तय करेगा। केंद्रीय मंत्री संजय बालियान की हैट्रिक कोशिशों की परीक्षा होगी। यह चुनाव तय करेगा कि बीजेपी नेता वरुण गांधी का राजनीतिक भविष्य क्या होगा। यह चुनाव यह भी तय करेगा कि नखतौर विधायक ओम कुमार संसद में जा सकेंगे या नहीं। यह क्षेत्र किसान और जाट नेता अजीत सिंह के प्रभाव वाला माना जाता है। चाहे आप जीतें या हारें, जीतने वाला पक्ष हमेशा सोचता है कि उसका पलड़ा भारी है। अजीत को अपनी बदनामी की भारी राजनीतिक कीमत भी चुकानी पड़ी। यह चुनाव अजीत सिंह के बिना होगा। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की ओर से जयंत चौधरी को अजीत का उत्तराधिकारी बनाने की कोशिशें अंत तक जारी रहीं। आखि़रकार पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की सत्ताधारी पार्टी की चाल सफल रही। पिछले चुनाव में जयंत जाट दलित मुस्लिम गठबंधन छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे। यह चुनाव तय करेगा कि जयंत का फैसला कितना सही है।
2019 का लोकसभा चुनाव में जो सपा,बसपा और रालोद एक गठबंधन का हिस्सा थे,वह बिखर चुके हैं। बसपा अकेली चुनाव लड़ रही है तो रालोद ने बीजेपी का दामन थाम लिया है। इस बार पहले चरण की आठ सीटों में से चार पर सपा, तीन पर बसपा और एक पर रालोद को संघर्ष करना पड़ा। बसपा ने अपने हिस्से की तीनों सीटें (सहारनपुर, बिजनौर और नगीना) जीत लीं। सपा ने चार में से दो सीटें (मुरादाबाद और रामपुर) जीतीं। आरएलडी का खाता नहीं खुल सका। बीजेपी ने कैराना, मुजफ्फरनगर और पीलीभीत में सीटें जीती थीं।
बात आजम की चर्चा के बिना पूरी नहीं हो सकती है। प्रथम चरण में ही रामपुर की संसदीय सीट के लिये मुकाबला होना है। 2019 और उसके पहले के चुनाव में कभी समाजवादी पार्टी का मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले आजम खान की रामपुर समेत कई सीटों पर जीत तय रहती थी। पिछले पांच वर्षों में कई उतार-चढ़ाव से गुजरने के बाद, आजम खान को जेल हुई, दोषी पाया गया और विधायक के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया। उपचुनाव हुआ जिसमें बीजेपी के घनश्याम लोधी सांसद बने। इस बार भी रामपुर में जेल में बंद आजम के कहने पर ही सपा चल रही है, अब नतीजे बतायेंगे क्या आजम अभी भी यहां ताकतवर हैं या फिर आजम को वोटर साइड लाइन कर चुके हैं। पहले चरण में ही बिजनौर में भी चुनाव होगा। एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन में 2019 में बिजनौर की एक सीट बीएसपी के खाते में थी और उसके उम्मीदवार मुल्क नागर ने चुनाव जीता था। इस बार अपने चुनाव प्रचार को तेज करने के लिए रालोद ने चंदन चौहान और सपा ने यशवीर सिंह को मैदान में उतारा है। इस बार 2019 में तीनों मित्र दलों के उम्मीदवार अलग-अलग एक-दूसरे से मुकाबला करेंगे।
पश्चिमी यूपी की एक और चर्चित सीट मुजफ्फरनगर भी सुखियों में है।यहां भी 19 अप्रैल को मतदान होगा। 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान और आरएलडी प्रमुख अजीत सिंह एक-दूसरे पर नजरें गड़ाए हुए थे। बालियान लगातार दूसरी बार जीते। अजीत सिंह अब नहीं रहे और बदली हुई परिस्थितियों में आरएलडी और बीजेपी एक साथ हैं। ऐसे में रालोद भी इस बार बलियान में अपनी ताकत लगाएगी। सपा ने पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक को अपना उम्मीदवार बनाया है।
पिछले चुनाव में बसपा ने महागठबंधन के जरिए सहारनपुर सीट जीती थी। बसपा के हाजी फजलुर्रहमान ने भाजपा के राघव लखनपाल को हराकर चुनाव जीता। इस बार सपा-कांग्रेस गठबंधन में यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गई हैं। इसी प्रकार से कैराना की सीट भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। यहां से कभी बीजेपी के दिग्गज नेता हुकुम सिंह चुनाव लड़ा करते थे। उनकी मौत के बाद 2019 के चुनाव में बीजेपी के प्रदीप कुमार चौधरी ने एसपी की तबस्सुम बेगम को हराकर जीत हासिल की। इस चुनाव में सपा ने पूर्व सांसद मनूर हसन की बेटी इकरा हसन और तबसेम बेगम को अपना उम्मीदवार बनाया है। इकरा के छोटे भाई नाहिद हसन विधायक हैं। इसी तरह से नगीना संसदीय सीट पर पिछले चुनाव में बसपा के गिरीश चंद्र ने महागठबंधन से जीत हासिल की और सांसद बने। इस बार एसपी ने रिटायर जज मनोज कुमार को मैदान में उतारा है, जबकि बीजेपी ने नहटूर से विधायक ओम कुमार को मैदान में उतारा है। इस बार दोनों पार्टियों के नए उम्मीदवार एक दूसरे को टक्कर दे रहे हैं। पीतलनगरी मुरादाबाद में सपा के हसन ने बीजेपी के कंवर सोरौश कुमार को हराकर चुनाव जीता। एसपी-कांग्रेस गठबंधन में यह सीट एसपी के हिस्से में है और बीजेपी-आरएलडी गठबंधन में यह सीट बीजेपी के हिस्से में है। यहां समाजवादी पार्टी को हराना बीजेपी के लिये आसान नहीं होगा। प्रथम चरण की एक और पीलीभीत लोकसभा सीट से पिछला चुनाव बीजेपी के वरुण गांधी ने जीता था, लेकिन कुछ दिनों बाद उनका रवैया बदल गया। अक्सर देखा गया कि वे सरकार को खुद को कटघरे में खड़ा करके सवाल उठाते थे। अबकी से यहां लड़ाई काफी रोचक होती दिख रही है।
-अजय कुमार
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