कोरोना वायरस से निबटने के लिए भारत सरकार की मुस्तैदी काबिले तारीफ
कोरोना वायरस के कारण चीनी अर्थ-व्यवस्था पैंदे में बैठ गई है। उसका असर संपूर्ण विश्व-अर्थव्यवस्था पर भी हो रहा है। चीन के साथ भारत का व्यापार सबसे ज्यादा है। वह ठप्प होने के कगार पर है। भारत चीन का पड़ौसी है और कई दृष्टियों से चीन-जैसा ही है।
कोरोना वायरस का मुकाबला करने में भारत का स्वास्थ्य मंत्रालय और दिल्ली सरकार ने जो मुस्तैदी दिखाई है, वह काबिले-तारीफ है। हजारों लोगों की जांच हवाई अड्डों और अन्य स्थानों पर हो रही है। यदि चीन से निकली यह बीमारी अमेरिका-जैसे हजारों मील दूर स्थित देश तक फैल सकती है तो चीन तो हमारा एक दम पड़ौसी देश है। यदि केंद्रीय स्वाथ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्द्धन और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तत्काल मुस्तैदी नहीं दिखाई होती तो अब तक चीन की तरह हजारों लोग भारत में भी काल के गाल में समा जाते।
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सरकार द्वारा टीवी चैनलों और अखबारों के जरिए जो चेतावनियां जारी की जा रही हैं, उन पर लोग बराबर ध्यान दे रहे हैं और फिर गर्मियों का मौसम शुरू हो रहा है, इसीलिए देश के लोगों को बदहवास होने की जरूरत नहीं है। यों तो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने इस बार होली के उत्सव से बचने की घोषणा की है और कई अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन भी स्थगित किए जा रहे हैं। लेकिन हमें यह सोचना चाहिए कि 70-80 देशों में फैला यह वायरस चीन में ही क्यों उत्पन्न हुआ ? यदि इसका ठीक-ठीक पता चल सके तो भारत और दुनिया के अन्य देश भी इससे बच सकेंगे।
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अभी कुछ सामरिक विशेषज्ञों का यह मत प्रकट हुआ है कि चीन के वैज्ञानिकों ने इस वायरस को खुद पैदा किया है ताकि चीन के दुश्मन राष्ट्रों के विरुद्ध एक हथियार के रूप में इसका प्रयोग कर सकें। कुछ दिन पहले इसके दूसरे कारण के तौर पर चीनियों की मांसाहारी प्रवृत्ति को बताया गया था। वे किसी भी पशु या पक्षी के मांस से परहेज नहीं करते। चमगादड़ का मांस कोरोना का खास कारण माना गया है। इसका तीसरा कारण चीन के औद्योगीकरण में साफ-सफाई के प्रति लापरवाही को भी माना गया है। कारण जो भी हो, इस बीमारी के कारण चीनी अर्थ-व्यवस्था पैंदे में बैठ गई है। उसका असर संपूर्ण विश्व-अर्थव्यवस्था पर भी हो रहा है। चीन के साथ भारत का व्यापार सबसे ज्यादा है। वह ठप्प होने के कगार पर है। भारत चीन का पड़ौसी है और कई दृष्टियों से चीन-जैसा ही है। यह बिल्कुल सही मौका है, जबकि भारत को चीन से सबक लेना चाहिए।
-डॉ. वेदप्रताप वैदिक
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