तीन साल में योगी आदित्यनाथ कितने बदल पायेंगे हालात

Yogi Adityanath
Prabhasakshi
अजय कुमार । Jul 15 2024 3:10PM

आम चुनाव में इंडी गठबंधन के कुछ दमदार और असरदार साबित हुए मुद्दों की धार को मोदी सरकार कम करने में लगी है तो दूसरी ओर गठबंधन के कुछ मुद्दों की हवा निकालने के लिये योगी सरकार ने अपने कंधों पर जिम्मेदारी ले रखी है।

लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में काफी नुकसान उठाना पड़ा। यूपी की वजह से केंद्र में मोदी की पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं बन पाई, जो बीजेपी यूपी में 80 सीटें जीतने का सपना पाले हुए थी, वह 33 सीटों पर सिमट गई। बीजेपी का ग्राफ इतनी तेजी से गिरा की अब तो विपक्षी नेता खासकर राहुल गांधी और अखिलेश यादव तो दिल्ली में मोदी को सबक सिखाने के पश्चात तीन साल बाद 2027 में योगी को भी धूल चटाने की बात करने लगे हैं। 2027 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव होने हैं और तब योगी की प्रतिष्ठा दांव पर होगी। 2027 के चुनाव में जहां राहुल गांधी और अखिलेश यादव बढ़े हुए मनोबल के साथ मैदान में उतरेंगे, वहीं बीजेपी को 2024 के नतीजे कचोटते रहेंगे, जबकि भारतीय जनता पार्टी 2024 जैसे चुनावी नतीजे 2027 विधानसभा चुनाव में नहीं देखना चाहती है। इसीलिये बीजेपी आलाकमान के साथ-साथ सीएम योगी आत्यिनाथ उन मुद्दों की धार कुंद करने में लग गये हैं जिसके सहारे कांग्रेस-सपा गठबंधन ने बीजेपी को आईना दिखाया था।

लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन ने संविधान, दलित ओबीसी आरक्षण, बेरोजगारी, महंगाई को बीजेपी के खिलाफ सबसे मजबूत चुनावी हथियार बनाया था। अबकी से राहुल के मुंह से अडानी-अंबानी, नोटबंदी, राफेल विमान खरीद भ्रष्टाचार, चौकीदार चोर है, जैसे तमाम जुमले सुनने को नहीं मिले थे। राहुल गांधी के साथ-साथ अखिलेश यादव भी अपनी जनसभाओं में दो ही बातें दोहराते रहे, पहला मोदी को 400 सीटें मिली तो वह संविधान बदल देंगे, दूसरा दलितों और ओबीसी को मिलने वाला आरक्षण खत्म कर दिया जायेगा। इसके अलावा राहुल की महिलाओं को 8500 रूपये प्रति माह देने की गांरटी ने भी बीजेपी का खेल बिगाड़ दिया। चुनाव बाद भी जिस तरह से राहुल गांधी संविधान की किताब लिये घूम रहे हैं उसकी काट के लिये अब मोदी सरकार ने इमरजेंसी के 50 वर्ष पूरे होने के मौके पर कांग्रेस को घेरना शुरू कर दिया है। मोदी के मंत्री से लेकर छोटे-बड़े सभी नेता लगातार बता रहे हैं कि 1975 में किस तरह से तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार ने इमरजेंसी लगाकर संविधान की आत्मा को तार-तार कर दिया था। सदन में तो इमरजेंसी के खिलाफ निंदा प्रस्ताव तक पास हो गया। सबसे खास बात यह रही कि मोदी सरकार जब इमरजेंसी के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाई तो इसके खिलाफ कांग्रेस सदन में अकेले ही खड़ी नजर आई। राहुल के सबसे मजबूत साथी समझे जाने वाले सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी इमरजेंसी मुद्दे पर कांग्रेस के साथ नहीं गये।

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बहरहाल, आम चुनाव में इंडी गठबंधन के कुछ दमदार और असरदार साबित हुए मुद्दों की धार को मोदी सरकार कम करने में लगी है तो दूसरी ओर गठबंधन के कुछ मुद्दों की हवा निकालने के लिये योगी सरकार ने अपने कंधों पर जिम्मेदारी ले रखी है। योगी ने इसके लिये अभी से सरकार के पेंच कसना शुरू कर दिये हैं। संगठन स्तर पर भी काम चल रहा है। यूपी विधानसभा चुनाव 2027 के शुरुआती तीन-चार महीनों में सम्पन्न होना है। इस हिसाब से सरकार के पास तीन साल से भी कम का समय बचा है। यह तय माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से सबक लेते हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी खराब छवि वाले विधायकों का टिकट काटने में भी आलाकमान परहेज नहीं करेगा। गौरतलब हो, हाल में सम्पन्न लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उम्मीद से काफी कम सीटें मिली थीं। चुनाव आयोग ने जो आकड़े जारी किये हैं उसके अनुसार यूपी में 80 लोकसभा सीटें जिसके अंतर्गत 403 विधान सभाएं आती हैं,वहां अबकी से बीजेपी 162 विधान सभा क्षेत्रों में समाजवादी और कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी से पिछड़ गई थी। इन 162 विधान सभा क्षेत्र के विधायकों पर भी गाज गिर सकती है।

वहीं 2027 में विपक्ष एक बार फिर से बेरोजगारी को मुद्दा नहीं बना पाये इसके लिये योगी ने सभी खाली पड़े रिक्त पदों को भरने के लिये बम्पर नौकरियां निकाली हैं। अभी एक लाख नौकरियां निकाले जाने की बात कही जा रही है जिसका आंकड़ा 2027 के विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक आने तक पांच लाख तक पहुंच सकता हे। इसी के साथ पेपर लीक की घटनाओं पर अंकुश लगाने और इसमें लिप्त अपराधियों पर शिकंजा कसने के लिये भी एसटीएफ तेजी से काम कर रही है। बेरोगारी और पेपर लीक की घटनाओं के चलते युवा वर्ग केन्द्र और राज्य सरकारों के खिलाफ काफी आक्रोशित है। उधर, इन युवाओं को गुस्से को विपक्ष हवा-पानी देने का काम कर रहा है। ऐसी ही एक मोदी सरकार की एक और योजना अग्निवीर भी सरकार के लिये बढ़ा मुद्दा बना हुआ है। विपक्ष लगातार इसे खत्म करने की मांग कर रहा है। इस योजना का दुष्प्रभाव मोदी सरकार लोकसभा चुनाव में देख भी चुकी है। कुल मिलाकर योगी सरकार बम्बर नौकरियां निकाल कर विपक्ष को उसकी बेरोजगारी वाली सियासत से ‘बेरोजगार’ करना चाहती है।  

बात सरकार से हटकर संगठन स्तर की कि जाये तो लोकसभा चुनाव में यूपी से मिली चोट भाजपा को बेचैन किए हुए हैं। योगी की छवि पर भी प्रश्न चिन्ह लगा है। केंद्र में तीसरी बार मोदी सरकार के गठन के बाद भाजपा के जिम्मेदार अब यूपी में पार्टी के ग्राफ गिरने के कारणों की पड़ताल पर लगा है। पार्टी स्तर पर  प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चैधरी और महामंत्री संगठन धर्मपाल ने वोट में आई गिरावट को लेकर चर्चा की। तय किया गया है कि भाजपा के पक्ष में कम मतदान की जांच होगी। दरअसल, यूपी के चुनाव परिणाम से भाजपा के स्थानीय से लेकर शीर्ष नेतृत्व में हड़कंप मचा हुआ है। पिछले चुनाव की तुलना में इस बार करीब नौ फीसदी कम वोट मिले हैं। अब इन्हीं वोट का पता लगाने को लेकर माथापच्ची शुरू हो गई है कि आखिर यह वोट भाजपा से छिटक कर कहां गया। इसका पता करने के लिए टास्क फोर्स का गठन किया गया है। इसमें संगठन के पदाधिकारियों के अलावा स्थानीय जनप्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा। फोर्स के सदस्य गांव-गांव जाकर यह पता लगाएंगे कि भाजपा के कोर वोटर माने जाने वाले ओबीसी और दलितों में सेंध किस दल ने लगाया है।

यह भी पता लगाया जाएगा कि गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों को भाजपा से बिदकाने में किन-किन लोगों का हाथ है। साथ ही भितरघात करने वाले पार्टी नेताओं का भी पता किया जाएगा। केंद्र में भले ही लगातार तीसरी बार भाजपा की सरकार बन गई है लेकिन पार्टी के लिए सबसे मजबूत सियासी जमीन यूपी में खिसकने की टीस सभी नेताओं को हो रही है। इसलिए अब पार्टी ने नुकसान पहुंचाने वालों के साथ उन मतदाताओं के बारे में भी पता लगाने का फैसला किया गया है कि जो इस बार भाजपा के बजाए विपक्ष की तरफ खिसक गए हैं। यूपी में बीजेपी का ग्राफ गिरने की पूरी समीक्षा के बाद यूपी बीजेपी में संगठन स्तर पर भी कई बदलाव हो सकते हैं। यूपी बीजेपी को नया प्रदेश अध्यक्ष मिल सकता है और यह दलित अथवा पिछड़ा समाज को हो तो कोई आश्चर्य नहीं है। वैसे कयास यह भी लगाये जा रहे हैं कि योगी सरकार में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य एक बार फिर संगठन में आना चाह रहे हैं। मौर्य के यूपी बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष रहते 2014 में पार्टी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया था।

भाजपा इस बात को लेकर बेहद चिंतित है कि वर्ष 2017 में रिकॉर्ड 312 विधानसभा सीटों और 2022 के विधान सभा चुनाव में भी भगवा परचम लहराकर बहुमत की सरकार बनाने वाली भाजपा अबकी लोकसभा चुनाव में 162 सीटों पर ही कैसे पिछड़ गई। वहीं 2017 में कांग्रेस से हाथ मिलाने पर भी 47 सीटों पर सिमटकर सत्ता गंवाने वाली सपा इस चुनाव में सर्वाधिक 183 सीटों पर आगे रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में सिर्फ दो विधायक वाली पार्टी बनी कांग्रेस, लोकसभा चुनाव में सपा से गठबंधन कर 40 विधानसभा सीटों पर अव्वल आई। वैसे सच्चाई यह भी है कि 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद से यूपी में एनडीए का ग्राफ लगातार गिर रहा था, लेकिन इस ओर किसी ने विशेष ध्यान नहीं दिया। एनडीए के सहयोगी अपना दल (एस) व सुभासपा संग सरकार बनाने वाली भाजपा को पहला झटका 2019 के लोकसभा चुनाव में लगा। तब सपा-बसपा-रालोद के मिलने पर भाजपा के सांसद जहां 71 से घटकर 62 रह गए। वहीं पार्टी 274 विधानसभा सीटों पर ही बढ़त बना सकी थी। 2019 में सपा के पांच सांसद जीते और पार्टी 44 विधानसभा सीटों पर आगे रही थी, जबकि 10 सांसद वाली बसपा 66 विधानसभा सीटों पर आगे रही थी। सिर्फ रायबरेली लोकसभा सीट जीतने वाली कांग्रेस मात्र नौ सीटों पर ही औरों से आगे निकली थी। इसी तरह 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा यूपी में फिर सरकार बनाने में तो कामयाब रही, लेकिन उसकी सीटों और घट गई। भाजपा इस चुनाव में सिर्फ 255 सीटें ही हासिल कर सकी थी। रालोद व सुभासपा को साथ लेने से भी सपा पांच वर्ष बाद सरकार में वापसी तो नहीं कर सकी, लेकिन उसकी सीटें जरूर 47 से 111 हो गईं। सपा से हाथ मिलाने पर रालोद के आठ व सुभासपा के छह विधायक भी जीते। इसी तरह भाजपा के साथ रहने पर अपना दल (एस) के 12 विधान सभा उम्मीदवार जीते। अकेले चुनाव लड़ी कांग्रेस दो और बसपा एक ही सीट जीत सकी थी। यहां तक तो ‘भगवा दल’ के लिए किसी तरह के बड़े सियासी खतरे के संकेत नहीं थे, लेकिन इस लोकसभा चुनाव के आए नतीजे हर लिहाज से सत्ताधारी भाजपा के लिए खतरे की घंटी साबित हुए।

2024 लोकसभा चुनाव में घटते जनाधार के कारण भाजपा के जहां मात्र 33 सांसद रह गए है। वहीं विधानसभा सीटों पर भी दबदबा घट गया है। पिछले विधानसभा चुनाव में 255 सीटें जीतने वाली भाजपा को इस बार सिर्फ 162 सीटों पर ही बढ़त मिली है। सपा के साथ छोड़ फिर एनडीए के साथ आया रोलाद तो दो सांसदों के साथ आठ विधानसभा सीटों पर आगे रहा लेकिन एक सीट गंवाने वाला अपना दल (एस) सिर्फ चार विधानसभा क्षेत्रों में ही आगे है। सपा के अबकी कांग्रेस से हाथ मिलाने पर 37 सांसद तो जीते ही, उसे सर्वाधिक 183 विधानसभा सीटों पर बढ़त भी मिली है। यही वजह है कि दोनों ही पार्टियों के नेता न केवल उपचुनाव बल्कि अगला विधानसभा चुनाव भी साथ-साथ लड़ने की बात कहे रहे है।

कुल मिलाकर लोकसभा चुनाव में भाजपा के एनडीए और कांग्रेस-सपा के आइएनडीआइए के बीच हुई लड़ाई को अगर विधानसभावार देखा जाए तो विपक्षी गठबंधन, सत्ताधारी एनडीए पर बहुत भारी दिखता है। एनडीए को जहां 174 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली वहीं विपक्षी गठबंधन 224 सीटों पर आगे रहा है। 50 सीटों पर आगे रहना वाला विपक्षी गठबंधन, राज्य में सरकार बनाने के लिए जरूरी 202 सीटों के जादुई आंकड़े से कहीं अधिक है। इसी चिंता से मोदी-योगी और बीजेपी मुक्ति चाहते हैं।

योगी लगातार भाजपा के कार्यकर्ता और पदाधिकारियों में जोश भरने का काम कर रहे योगी अपने कार्यकर्ताओं को समझा रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में विरोधियों के दुष्प्रचार और भ्रम जाल में फंसकर कई वोटर भाजपा से दूर चले गये थे, जिनको वापस अपने पाले में लाना होगा। मुख्यमंत्री ने बूथ स्तरीय पदाधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपते हुए कहा कि रूठे लोगों के मनाएं और उन्हें दोबारा भाजपा के साथ मजबूतों से जोड़ें। मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि बूथ प्रभारी अपने-अपने बूथ पर मिले वोटों की समीक्षा करें। 2017 और 2022 के विधानसभा और 2019 और 2024 के लोकसभा चुनाव में मिले वोटों के आधार पर नए सिरे से रणनीति बनाकर 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में अभी से जुट जाएं। स्वयं समीक्षा करें कि वोटों का अंतर क्यों कम हुआ है। जो कारण मिले उसे दूर करने की दिशा में काम करें।

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