आंदोलन पर उतारू किसानों ने की है इस बार भरपूर तैयारी, ऐसा लगता है जैसे युद्ध की है बारी
आपको जहां-तहां ट्रैफिक जाम में एंबुलेसों के फंसे होने के दृश्य दिख जायेंगे। आपको जहां-तहां ट्रैफिक जाम में फंसे लोग फोटो लेकर अपने ऑफिस में भेजते दिख जाएंगे। सवाल उठता है कि दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में रहने वाली आम जनता की क्या गलती है?
किसानों के दिल्ली चलो मार्च के चलते भारी सुरक्षा बंदोबस्त किये गये हैं। पुलिस ने किसानों को रोकने के लिए और किसानों ने पुलिस के अवरोधकों को तोड़ने के लिए जिस तरह की तैयारियां कर रखी हैं उसके चलते फिलहाल यह तय कर पाना मुश्किल लग रहा है कि किसने ज्यादा अच्छे बंदोबस्त कर रखे हैं। किसान इस बार जिस तरह आंसू गैस के गोलों के प्रभाव से बचाने वाले मास्क, पोकलेन, जेसीबी मशीनों और एम्बुलेंसों से सुसज्जित भीड़ लेकर दिल्ली में घुसने को आतुर नजर आ रहे हैं वह ऐसा दृश्य पैदा कर रहा है जैसे कोई युद्ध छेड़ा जाने वाला है। सरकार बार-बार अपील कर रही है बातचीत से मसला सुलझा लो, सरकार बार-बार वर्तमान आर्थिक परिदृश्यों में सबसे बेहतर प्रस्ताव दे रही है लेकिन किसान मानने को तैयार नहीं हैं। रिपोर्टें तो इस तरह की भी हैं कि चौथे दौर की वार्ता में सरकार ने किसानों के समक्ष जो प्रस्ताव रखा था उसे बातचीत में शामिल लोग मानने के लिए तैयार थे लेकिन उन पर शायद कुछ बाहरी दबाव थे जिसके चलते उन्होंने प्रस्ताव ठुकरा कर दिल्ली कूच की तैयारी कर दी।
यह दिल्ली कूच पूरे एनसीआर के लिए कितना भारी पड़ रहा है शायद इस बात का अंदाजा आंदोलन पर उतारू लोगों को नहीं है। बताया जा रहा है कि कुछ जगहों पर इंटरनेट पर पाबंदियां लगाई गयी हैं सोचिये आज के इस डिजिटल इंडिया में यदि इंटरनेट पर पाबंदी लग जाये तो कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस समय सीबीएसई की बोर्ड परीक्षाएं भी चल रही हैं। इंटरनेट पर पाबंदी लगने से बच्चों को पढ़ाई में तो दिक्कतें होंगी ही साथ ही ट्रैफिक जाम के चलते परीक्षा केंद्र पर समय से नहीं पहुँचने का भय भी है। रिपोर्टें तो इस तरह की भी हैं कि तमाम अभिभावकों ने अपने बच्चों को परीक्षा केंद्र के निकट रहने वाले किसी रिश्तेदार, मित्र या परिचित के यहां शिफ्ट कर दिया है ताकि उसे कोई दिक्कत नहीं हो। देखा जाये तो अपने जीवन की पहली बड़ी परीक्षा देने जा रहा 10वीं कक्षा का छात्र पूरी तैयारी होने के बावजूद कुछ घबराया-सा होता है उस पर यदि उसके मन में यह भय रहे कि पता नहीं वह समय पर परीक्षा केंद्र पर पहुँच पायेगा या नहीं तो सोचिये उसके मन पर क्या असर पड़ता होगा?
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बात सिर्फ परीक्षार्थियों की ही नहीं है। आपको जहां-तहां ट्रैफिक जाम में एंबुलेसों के फंसे होने के दृश्य दिख जायेंगे। आपको जहां-तहां ट्रैफिक जाम में फंसे लोग फोटो लेकर अपने ऑफिस में भेजते दिख जाएंगे। सवाल उठता है कि दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में रहने वाली आम जनता की क्या गलती है? पहले ही इस भागमभाग वाली जिंदगी में लोगों के पास अपने लिये ही समय नहीं है उस पर जब देखो तब एक नई टेंशन मिल जाती है। जब तब दिल्ली को घेरने का ऐलान होते ही एनसीआर के लोगों को आफिस समय पर पहुँचने के लिए और पहले घर से निकलना पड़ता है, रेलवे स्टेशन या हवाई अड्डा जाना हो तो और पहले निकलना पड़ता है। हो सकता है किसानों की सभी मांगें पूरी हो जायें और वह नाचते गाते अपने घरों को चले जाएं लेकिन इस क्षेत्र के आम आदमी के समय और संसाधन का जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई कौन करेगा? सवाल यह भी है कि प्रतिबंधों के चलते जिन लोगों का व्यापार या आजीविका प्रभावित हो रही है या बंद हो गयी है उसकी भरपाई कौन करेगा?
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