सवा दो महीने की चुनाव यात्रा में हमने देश को प्रभावित करने वाले असल मुद्दों पर जनता की राय जानी
प्रभासाक्षी ने अपनी चुनाव यात्रा के दौरान दस ऐसे बड़े मुद्दों को पहचाना जिसका पूरे भारत में असर रहा। हमने यह भी जाना कि ऐसे कौन-से दस बड़े मुद्दे रहे जिनके इर्दगिर्द पूरा चुनाव प्रचार केंद्रित रहा।
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए लगभग दो महीने तक चले प्रचार अभियान के दौरान तमाम तरह के मुद्दे उभर कर आये और देखा जाये तो हर चरण के मुद्दे अलग-अलग रहे। प्रभासाक्षी ने अपनी चुनाव यात्रा के दौरान दस ऐसे बड़े मुद्दों को पहचाना जिसका पूरे भारत में असर रहा। हमने यह भी जाना कि ऐसे कौन-से दस बड़े मुद्दे रहे जिनके इर्दगिर्द पूरा चुनाव प्रचार केंद्रित रहा। नेता चाहे किसी भी दल के रहे हों उनके भाषणों और वादों में इन मुद्दों का कहीं ना कहीं जिक्र जरूर रहा। आइये नजर डालते हैं इन मुद्दों पर-
मुफ्त रेवड़ी- मुफ्त रेवड़ियां ऐसा विषय रहा जो सभी पार्टियों के वादों में किसी ना किसी रूप से शुमार रहा। भाजपा ने मुफ्त राशन अगले पांच साल तक देते रहने का वादा किया हालांकि पार्टी का कहना है कि यह मुफ्त रेवड़ी की श्रेणी में नहीं आता। इसके अलावा विभिन्न राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों ने अपने घोषणापत्रों और जनता से किये गये वादों में तमाम चीजें मुफ्त में देने का वादा किया है। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि यह पैसा कहां से आयेगा। तुलनात्मक रूप से अध्ययन करें तो यह देखने को मिलता है कि मुफ्त सौगातों के वादे सबसे कम भाजपा ने ही किये हैं। इन मुफ्त सौगातों को लेकर देश की जनता भी बंटी हुई नजर आई है। अधिकांश लोगों का कहना था कि हमें मुफ्तखोर बनाने की बजाय सरकार को चाहिए कि हमें आत्मनिर्भर बनाये। कई लोगों का कहना था कि मुफ्त की चीजें सबसे ज्यादा जरूरतमंद व्यक्ति को ही मिलनी चाहिए क्योंकि यह एक तरह से करदाताओं के पैसे की बर्बादी है। कुछ लोगों का कहना था कि सिर्फ शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं मुफ्त होनी चाहिए बाकी कुछ भी मुफ्त नहीं होना चाहिए। वहीं कुछ लोगों का कहना था कि मुफ्त चीजें बांटने की जगह महंगाई को कम कर देना चाहिए।
इसे भी पढ़ें: Chandigarh Loksabha Seat पर क्या हैं चुनावी मुद्दे? आमने सामने की लड़ाई में Sanjay Tandon जीतेंगे या Manish Tewari?
विकसित भारत- लोकसभा चुनावों के ऐलान से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर देश भर में निकाली गयी विकसित भारत संकल्प यात्रा के जरिये देश का यह महत्वाकांक्षी मिशन पूरे भारत के कोने-कोने तक पहुँच चुका था। प्रधानमंत्री ने गत वर्ष लाल किले की प्राचीर से दिये अपने भाषण में भी विकसित भारत के संकल्प को आगे बढ़ाने की बात कही थी इसलिए जनता इसको लेकर पूरी तरह जागरूक थी। जब हमने देशव्यापी यात्रा की तो पाया कि इस संकल्प के सिद्ध होने में किसी को कोई शक नहीं था बल्कि लोग इस संकल्प को सिद्ध करने के लिए अपने तमाम तरह के सुझाव देते दिखे। लोगों का कहना था कि हमने पिछले दस सालों में यह महसूस कर लिया है कि हम कुछ भी कर सकते हैं। हम 11वीं से अगर पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकते हैं, हम चंद्रमा के दक्षिणी पोल पर पहुँचने वाला पहला देश बन सकते हैं, हम महामारी के समय कुशलता के साथ उसका सामना कर सकते हैं, हम महामारी के समय नेगेटिव में चली गयी विकास दर को चंद महीनों में दुनिया की सबसे तेज गति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था बना सकते हैं तो हम विकसित भारत भी बन सकते हैं।
संविधान और लोकतंत्र को खतरा- विपक्ष ने चुनाव की शुरुआत से लेकर अंत तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जिस बात को लेकर सबसे ज्यादा हमले किये वह थे संविधान और लोकतंत्र को खतरे में बताना। विपक्ष की ओर से यह बात फैलाई गयी कि यदि भाजपा फिर से सत्ता में आ गयी और मोदी फिर से प्रधानमंत्री बन गये तो यह आखिरी चुनाव होगा और भारत में भी रूस और उत्तर कोरिया जैसा शासन हो जायेगा। जब हमने ग्रामीण क्षेत्रों के बीच जनता का मन टटोला तो खासतौर पर पिछड़े वर्ग के लोगों ने कहा कि हमें सड़क और बिजली नहीं चाहिए पर संविधान में हमें जो अधिकार दिये गये हैं वह नहीं खत्म होने चाहिए। हमने पाया कि विपक्ष ने जो भ्रम फैलाया था कि यदि भाजपा फिर सत्ता में आई तो गरीबों और पिछड़ों के अधिकार छीन लेगी उसका निचले स्तर पर काफी असर हो रहा था। इस भ्रम को दूर करने के लिए सत्ता पक्ष की ओर से कोई प्रयास भी नहीं किये जा रहे थे जिससे भाजपा को नुकसान की संभावना हमें दिखाई दी। हालांकि इस मुद्दे को लेकर अधिकांश लोगों का कहना था कि संविधान और लोकतंत्र को कोई खत्म नहीं कर सकता और यदि किसी ने ऐसे प्रयास किये तो जनता सड़कों पर उतर आयेगी। लोगों ने कहा कि कृषि कानूनों को वापस लेने वाली मोदी सरकार जनता की ताकत जान गयी है और उसे पता है कि संसद में बहुमत के दम पर तानाशाही या मनमानी नहीं की जा सकती।
भ्रष्टाचार विरोधी अभियान- देश भर में भ्रष्टाचार विरोधी अभियानों को लेकर विपक्ष का आरोप था कि उसे परेशान किया जा रहा है और सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। विपक्ष ने ईडी-सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए जनता से समर्थन भी मांगा लेकिन जब हमने जनता से बात की तो सभी का यह कहना था कि यह बहुत अच्छा काम हो रहा है। जनता ने कहा कि हमने मोदी सरकार को जनादेश इसी बात का दिया था कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाये। लोगों ने कहा कि पहले हम नेताओं के करोड़ों रुपए के घोटालों की खबरें जब पढ़ते थे तो उसमें घोटाला की गयी रकम के शून्य गिनते रह जाते थे लेकिन अब टीवी पर दिखाई भी देता है कि कितनी रकम पकड़ी गयी है और कैसे नोट गिनने वाली मशीनें नोट गिनते गिनते गर्म होकर बंद हो जा रही हैं। लोगों ने कहा कि यह भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई का ही नतीजा है कि काला धन कम हुआ है। लोगों ने कहा कि ईडी-सीबीआई का डर नेताओं के मन में बैठना देश के लिए अच्छा है।
परिवारवाद- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत परिवारवादी नेताओं पर प्रहार के साथ की थी जिसके बाद आरोप लगाया गया कि मोदी परिवार का महत्व क्या जानें क्योंकि उनका कोई परिवार ही नहीं है। इसके बाद भाजपा ने 'मैं हूँ मोदी का परिवार' अभियान चला दिया और देखते ही देखते राष्ट्रव्यापी मोदी का परिवार खड़ा हो गया। भाजपा नेताओं ने परिवारवाद पर जिस प्रकार हमले किये उसके चलते जनता के बीच यह बड़ा मुद्दा तो बना ही साथ ही परिवारवादी दलों के भीतर भी इसको लेकर घमासान मचा। जब भी परिवार आधारित दलों के उम्मीदवारों की सूची आई तो उसमें परिवार के कई लोगों का नाम रहने के चलते पार्टी के कई नेता और कार्यकर्ता नाराज होकर दूसरे दलों में चले गये। इन लोगों का कहना था काम करने के लिए जिन लोगों की सूची आती है उनमें हमारा नाम शीर्ष पर होता है लेकिन जब चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की सूची आती है तो हम उसमें नहीं होते। हमने यह भी पाया कि परिवार आधारित दलों के पारिवारिक गढ़ के रूप में विख्यात संसदीय क्षेत्रों में अब परिवार के प्रति मोह कम होता जा रहा है।
महंगाई- महंगाई इस चुनाव में एक बड़े मुद्दे के रूप में उभरी। देखा जाये तो इसको लेकर भाजपा को कहीं-कहीं रक्षात्मक मुद्रा भी अपनानी पड़ी। हालांकि भाजपा को जो कोर वोट बैंक है उसको इससे ज्यादा फर्क नहीं दिखा और उसका कहना था कि जब आमदनी बढ़ी है तो महंगाई भी बढ़ी है। भाजपा समर्थकों का कहना था कि वैश्विक चुनौतियों के बीच दुनिया भर में सबसे कम महंगाई भारत में ही है। उनका कहना था कि हमारे पड़ोसी देश दिवालिया हो रहे हैं और हम तेजी से तरक्की कर रहे हैं जिसका सीधा अर्थ यही है कि मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां बहुत अच्छी हैं। हालांकि आम जनता रोजमर्रा के सामान की बढ़ती कीमतों, शिक्षा और स्वास्थ्य पर बढ़ते खर्च, तमाम वस्तुओं पर जीएसटी की ज्यादा दरों को लेकर नाराज नजर आई और सरकार से मांग की कि उसे इस ओर ध्यान देना चाहिए। हालांकि महंगाई को लेकर कहीं ऐसा नहीं दिखा कि जनता सरकार बदलने के मूड़ में है।
बेरोजगारी- बेरोजगारी का विषय भी इस चुनाव में काफी छाया रहा। इस विषय के साथ पेपर लीक जैसी विकराल होती समस्या और कौशल की कमी जैसे मुद्दे भी जुड़े रहे। कांग्रेस ने 'पहली नौकरी पक्की' जैसा बड़ा वादा किया था लेकिन इसका कोई खास असर होता नहीं दिखा। युवाओं का कहना था कि हमें ऐसा अस्थायी अवसर नहीं बल्कि जीवन में स्थायित्व चाहिए। युवाओं का कहना था कि हमें दस हजार की नौकरी नहीं बल्कि बेहतर अवसर चाहिए। युवाओं का यह भी कहना था कि पिछले दस सालों में नौकरियों में भ्रष्टाचार कम हुआ है और अब नौकरी हासिल करने के लिए रिश्वत नहीं देनी पड़ती। युवाओं का कहना था कि सरकारी नौकरियों में भर्तियां नहीं निकल रही हैं और राजनीति के चक्कर में निजी निवेश प्रभावित हो रहा है जिससे अवसर कम हो रहे हैं। युवाओं का कहना था कि सरकार को चाहिए कि उद्योग स्थापित होने के प्रोत्साहित करे क्योंकि निजी क्षेत्र ही बेरोजगारी की समस्या दूर कर सकता है। कुछ क्षेत्रों में हमें ऐसे युवा भी मिले जोकि स्थानीय लोगों के लिए उस क्षेत्र के उद्योगों में आरक्षण के समर्थक दिखे। युवाओं ने यह भी माना कि देश की बढ़ती आबादी भी बेरोजगारी की समस्या का एक बड़ा कारण है।
शिक्षा और स्वास्थ्य- सरकारी स्कूलों में शिक्षा का खराब स्तर, सुविधाओं की कमी, शहरी क्षेत्रों में स्कूलों में दाखिले की समस्या, निजी ट्यूशन केंद्रों की फीस पर भारी भरकम जीएसटी, ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पतालों की कमी, चिकित्सा जांच केंद्रों की कमी, सरकारी अस्पतालों में दवाइयों की कमी, बाजार की महंगी दवाएं और डॉक्टरों की कमी जैसे मुद्दे बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित करते दिखे। नई सरकार को प्राथमिकता के आधार पर इस पर ध्यान देना होगा।
हिंदुत्व- अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद से देश भर में जो माहौल बना उसका फायदा भाजपा को होता दिख रहा है। मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद 'विकास और विरासत' को जिस तरह तवज्जो दी उसका काफी असर देखने को मिला है। धर्म स्थलों के बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने का ऐसा असर हुआ है कि पर्यटन स्थलों से ज्यादा लोग धर्म स्थलों पर जाने लगे हैं। पर्यटन और आध्यात्म के समावेश ने स्थानीय अर्थव्यवस्था को बड़ा बल प्रदान किया है। धर्म स्थलों तक वंदे भारत जैसी आधुनिक ट्रेनें देकर मोदी सरकार ने उस क्षेत्र का कायाकल्प कर दिया है। खासतौर पर सनातन संस्कृति के प्रति युवाओं का प्रेम ऐसा बढ़ा है जोकि देखते ही बनता है। हालांकि कुछ लोग हिंदुत्व की तमाम तरह की परिभाषा देकर या विवादित बयान देकर विवाद खड़ा करते रहते हैं लेकिन आमतौर पर हिंदू शांत ही रहता है। हालांकि एक बदलाव जरूर आया है कि अब अपने को सेकुलर दिखाने की चाहत किसी में नहीं है और सब खुलकर अपने धर्म और संस्कृति पर गर्व करते हैं।
नेतृत्व- पूरे चुनाव में यह एक ऐसा मुद्दा रहा जोकि सबसे ज्यादा प्रभाव लिये रहा। एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व है तो दूसरी ओर विपक्ष से कौन नेतृत्व करेगा यह सवाल पूरे चुनाव में बना ही रहा। प्रधानमंत्री ने अपनी रैलियों में कहा कि विपक्ष ने पांच साल में पांच प्रधानमंत्री देने की योजना बनाई है जिसका जनता के बीच काफी असर देखने को मिला। देश ने पिछले दस साल में स्पष्ट बहुमत वाली सरकार के कामकाज को देखा है और उससे पहले गठबंधन सरकार की मजबूरियों में पिसते देश को देखा है इसलिए एक बात तो स्पष्ट रही कि देश में स्पष्ट बहुमत वाली सरकार ही बनती जा रही है। कई बार ऐसा भी लगा कि विपक्ष ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं देकर बड़ी गलती की है क्योंकि जनता देख रही है कि एक ओर मोदी हैं और दूसरी ओर के उम्मीदवार का पता ही नहीं है। जनता का कहना था कि हम नहीं चाहते कि नई सरकार देश के लिए काम करने की बजाय प्रधानमंत्री पद की कुर्सी पाने की लड़ाई में ही फँस कर रह जाये।
-नीरज कुमार दुबे
अन्य न्यूज़