प्याज, टमाटर और आलू की कीमत में आ सकती है गिरावट, सरकार ने दिया बड़ा बयान

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वहीं चालू खरीफ सीजन में किसानों ने टमाटर की खेती का क्षेत्रफल 272,000 हेक्टेयर बढ़ाने का लक्ष्य रखा है, जबकि पिछले वर्ष यह रकबा 267,000 हेक्टेयर था। चित्तूर, आंध्र प्रदेश और कोलार, कर्नाटक जैसे प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में फसल की स्थिति अच्छी बनी हुई है।

भारत सरकार का कहना है कि जल्द ही जरुरी सब्जियों की कीमतों में कुछ राहत मिलने की उम्मीद है। समय पर मानसून की बारिश होने से प्याज, टमाटर और आलू जैसी मुख्य फसलों की कीमतों में राहत मिल सकती है। ये जानकारी आधिकारिक बयान में सामने आई है।

 

प्याज की कीमत पर होगा असर

अधिकारियों का मानना ​​है कि पिछले साल की तुलना में 2024 रबी सीजन के दौरान प्याज उत्पादन में मामूली गिरावट के बावजूद घरेलू बाजारों में फसल की आपूर्ति आरामदायक स्तर पर बनी हुई है। आधिकारिक बयान में बताया गया कि कृषि मंत्रालय द्वारा मिली जानकारी के मुताबिक इस वर्ष खरीफ प्याज के अंतर्गत लक्षित क्षेत्र एक वर्ष पहले की तुलना में 27 प्रतिशत बढ़कर 361,000 हेक्टेयर हो गया है। बयान के मुताबिक प्याज की कीमतें स्थिर हो रही हैं क्योंकि किसानों द्वारा बाजार में जारी रबी प्याज की मात्रा बढ़ रही है, मंडी की कीमतें बढ़ रही हैं और मानसून की बारिश शुरू हो रही है, जिससे उच्च वायुमंडलीय नमी के कारण भंडारण की संभावना बढ़ जाती है।"

वहीं चालू खरीफ सीजन में किसानों ने टमाटर की खेती का क्षेत्रफल 272,000 हेक्टेयर बढ़ाने का लक्ष्य रखा है, जबकि पिछले वर्ष यह रकबा 267,000 हेक्टेयर था। चित्तूर, आंध्र प्रदेश और कोलार, कर्नाटक जैसे प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में फसल की स्थिति अच्छी बनी हुई है। इसमें कहा गया है, "कोलार में टमाटर की तुड़ाई शुरू हो गई है और कुछ ही दिनों में यह बाजार में आ जाएगा।" अधिकारियों ने कहा कि उपज में इस सुधार से फसल की कीमतों को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, रिपोर्ट में पाया गया कि मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में इस उत्पाद की खेती के क्षेत्र में वृद्धि देखी गई है।

आलू के मामले में बयान में कहा गया है कि खरीफ आलू के तहत खेती के रकबे में पिछले साल के मुकाबले 12 फीसदी की बढ़ोतरी का लक्ष्य रखा गया है। मांग को पूरा करने के लिए इस साल 27.32 मिलियन टन आलू को कोल्ड स्टोरेज में रखा गया है। अधिकारियों ने कहा कि आलू की कीमतें इस बात पर निर्भर करती हैं कि मार्च से दिसंबर की अवधि के दौरान कोल्ड स्टोरेज से फसल किस दर पर निकलती है। गौरतलब है कि खरीफ आलू की कटाई सितंबर से नवंबर तक की जाती है और इससे फसल की स्थानीय उपलब्धता बढ़ाने में मदद मिलती है। 

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