ई-वाणिज्य नीति के मसौदे में आंकड़ों के साझा करने पर और अधिक स्पष्टता की जरूरत

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[email protected] । Apr 2 2019 5:54PM

अपने सुझाव में सीआईआई ने कहा कि किसी ई-वाणिज्य मंच का काम एक मध्यस्थ की तरह है। ऐसे में इंटरनेट प्रोटोकॉल (आईपी) उल्लंघन को रोकने की जिम्मेदारी बहुत सीमित है।

नयी दिल्ली। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) का कहना है कि प्रस्तावित राष्ट्रीय ई-वाणिज्य नीति में डाटा साझा करने से जुड़े प्रावधानों को और अधिक स्पष्ट करने की जरूरत है, क्योंकि जबरन जानकारियों को सार्वजनिक करने के नियम से निजता से जुड़े सवाल उठ सकते हैं। उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (डीपीआईआईटी) ने फरवरी में ई-वाणिज्य नीति का मसौदा जारी किया था। इस पर अपनी टिप्पणी देते हुए सीआईआई ने कहा कि विनियमों को ई-वाणिज्य क्षेत्र की कंपनियों के ‘सूक्ष्म प्रबंधन’ के तौर पर काम नहीं करना चाहिए, बल्कि इसे नवोन्मेष को बढ़ावा देने वाला होना चाहिए।

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मसौदे में डीपीआईआईटी ने सीमापार आंकड़ों एवं सूचनाओं की आवाजाही को प्रतिबंधित करने के लिए एक वैधानिक और तकनीकी ढांचा गठित करने का प्रस्ताव किया है। साथ ही संवदेनशील आंकड़ों के स्थानीय स्तर पर संग्रह या विश्लेषण करने और विदेशों में भंडार करने के संबंध में व्यापारों के लिए कई शर्तें भी लगायी हैं। अपने सुझाव में सीआईआई ने कहा कि किसी ई-वाणिज्य मंच का काम एक मध्यस्थ की तरह है। ऐसे में इंटरनेट प्रोटोकॉल (आईपी) उल्लंघन को रोकने की जिम्मेदारी बहुत सीमित है।

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सीआईआई ने कहा, ‘‘सूचनाओं को सार्वजनिक करने का दबाव डालने और डाटा साझा करने से जुड़े मुद्दे निजता संबंधी चिंताओं को उभार सकते हैं। ऐसे में इस संबंध में प्रक्रिया और उम्मीदों को लेकर और अधिक स्पष्टता की जरूरत है।’’ मसौदे के मुताबिक यदि व्यापार इकाइयां देश में जुटाए संवेदनशील आंकड़ों का संग्रहण या विश्लेषण करती है और उन्हें विदेशों में रखती हैं तो उन्हें कई शर्तों का पालन करना होगा। इसके तहत कंपनियां विदेश में रखे अपने आंकड़ों और सूचनाओं को देश के बाहर किसी अन्य कंपनी को किसी भी तरह के काम के लिए उपलब्ध नहीं करा सकतीं, भले ही इसके लिए ग्राहक की ओर से रजामंदी क्यों न हो।

इसके अलावा ये आंकड़े किसी भी तीसरे पक्ष को किसी भी काम के लिए उपलब्ध नहीं कराए जा सकते। न ही इन्हें भारत सरकार की अनुमति के बिना किसी विदेशी सरकार को दिया जा सकता है। सीआईआई ने कहा कि ई-वाणिज्य नीति का लक्ष्य एक ही लाठी से सबको हांकने वाला नहीं होना चाहिए। बल्कि इसे क्षेत्र के उद्योगों एवं संगठनों की विविधता को ध्यान में रखकर बनाया जाना चाहिए।सीआईआई की ई-वाणिज्य पर राष्ट्रीय समिति के चेयरमैन रितेश अग्रवाल ने कहा कि पिछले एक दशक में ई-वाणिज्य ने हर किसी के जीवन को छुआ है और यह बहुत तेजी से वृद्धि करने वाला क्षेत्र है। इसलिए डीपीआईआईटी को हमारे इन सुझावों से आर्थिक अवसरों को बढ़ाने और कारोबारों को सशक्त बनाने का रास्ता तलाशने में मदद मिलेगी। 

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