एमएसएमई फेडरेशन ने महामारी से देश को बचाने पर मोदी सरकार को सराहा, लोगों से नियमों के पालन की अपील की
जब कोरोना की इतनी गंभीर महामारी पैदा हुई और तब देश की सभी राज्य सरकारें और केंद्र सरकार प्रभावी कदम उठा रही थीं, तब तामसी और राक्षसी प्रवृत्ति वाले कुछ लोग ऐसी स्थिति का विरोध करने के लिए सक्रिय हो गए जो एक वास्तविक शर्म की बात थी।
ऑल इंडिया एमएसएमइ फेडरेशन के अध्यक्ष मगनभाई पटेल ने केंद्र सरकार के आरोग्य एव परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मांडविया को पत्र लिखकर कहा है कि पिछले 2 साल से देश-विदेश में फैली हुई कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को बंधक बना दिया है। खास करके हमारे देश के कई राज्यों में लोगों को कोरोना के संकट से बचाने के लिए जिस तरह से हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रणनीतिक प्रबंधन के जरिये इस महामारी पर काबू किया है वह अत्यंत प्रशंसनीय है। हमारे देश के कोरोना योद्धा जैसे डॉक्टर, पैरा-मेडिकल स्टाफ, विभिन्न सामाजिक और धार्मिक संगठनों, विभिन्न सरकारी संगठनों, पुलिस और होमगार्ड कर्मियों ने आज देश और राज्यों में प्रधानमंत्री के आदेश का पालन करते हुए कोरोना पर नियंत्रण पाने में सफलता प्राप्त की है।
आज से दो साल पूर्व साल 2020 में मार्च माह में कोरोना महामारी की शुरुआत हुई और सितम्बर 2020 में कोरोना की पहली लहर और मार्च 2021 में दूसरी लहर ने भारी हड़कंप मचाया। इन दो सालों में कोरोना के कहर ने हमारे देश के साथ-साथ विदेशों में भी काफी खौफ और भय का माहौल खड़ा कर दिया। अत्यंत गंभीर परिस्थिति को देखते हुए और लोगों की जान बचाने के लिए भारत सरकार को पूरे देश में लॉकडाउन लगाना पड़ा। इस स्थिति से निपटने के लिए और देश के नागरिकों को बचाने के लिए रेमडेसिविर इंजेक्शन के प्रावधान के बावजूद डॉक्टरों के पर्चे पर यह इंजेक्शन लेने के लिए मेडिकल स्टोर पर लंबी लाइन लग गईं। इस इंजेक्शन की कीमत जोकि लगभग 1500 रुपये थी, वह 20 हजार से 35 हजार रुपये के बीच बिका। इस बीच कुछ लोगों ने तो कोरोना के मरीज को अस्पताल पहुंचाने के लिए रिश्वत की भी मांग की। श्मशान गृह में भी कोरोना के मरीज के अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी की व्यवस्था के लिए भी पैसे की मांग की गई। इसके अलावा कई लोगों ने कोरोना में इस्तेमाल होने वाले ऑक्सीमीटर जैसे उपकरण जिनकी कीमत 700 रुपये से 800 रुपये है, वह 7000 रुपये तक बेचकर भारी मुनाफा कमाया। ऐसे कई निजी अस्पतालों ने कोरोना मरीजों के इलाज के लिए प्रतिदिन 5000 रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक का चार्ज वसूला। ऐसे निजी अस्पतालों में भर्ती होने वालों को इलाज के लिए 10 से 15 लाख रुपए देने पड़ते थे जो एक तरह की लूट थी।
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जब कोरोना की इतनी गंभीर महामारी पैदा हुई और तब देश की सभी राज्य सरकारें और केंद्र सरकार प्रभावी कदम उठा रही थीं, तब तामसी और राक्षसी प्रवृत्ति वाले कुछ लोग ऐसी स्थिति का विरोध करने के लिए सक्रिय हो गए जो एक वास्तविक शर्म की बात थी। ऐसे लोग सजा के पात्र हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना महामारी के खिलाफ सतर्क और जाग्रत रहने के लिए थाली बजाना और ताली बजाना जैसी कई तरह की गतिविधियों में जनता को सम्मिलित करते हुए कोरोना के खिलाफ लड़ाई को एक राष्ट्रव्यापी अभियान का रूप प्रदान किया।
इसी तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जन-जागरूकता अभियान के रूप में लोगों से अपील की। उस अपील के फलस्वरूप लोगों ने अपने घर की बालकनी में या घर की छत पर दीपक या मोमबत्ती जलाकर, मोबाइल की टॉर्च चालू करके रौशनी फैला कर इस कोरोना महामारी के अंधकार से मुकाबला किया। प्रधानमंत्री की रौशनी फैलाने की इस अपील को देश की जनता ने सहर्ष स्वीकारा और इस अभियान में एकजुट होकर इस लड़ाई को लड़ा। इस ऐलान का उद्देश्य कोरोना से प्रभावित लोगों को जीवन जीने के लिए प्रेरित करना था।
देश की जनता को कोरोना महामारी से बचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वदेशी वैक्सीन विकसित करवाने के लिए पूरा जोर लगाया और चिकित्सा विज्ञानियों को हर तरह के संसाधन उपलब्ध करावये। कोविशील्ड वैक्सीन को देने की शुरुआत राज्य सरकार की एजेंसियों द्वारा की गई तब देश के कुछ राक्षसी और जनविरोधी मानस वाले लोगों ने विरोध किया। देश की जनता को यह बताकर गुमराह करने का प्रयास किया गया कि इस वैक्सीन मे बीफ और सूअर का मांस है। इस प्रकार के निम्न स्तर के बयान देकर वैक्सीन नहीं लगाने के लिए गुमराह किया गया। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के सामने इतनी गंभीर स्थिति के बावजूद, इन सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कुशल टीम द्वारा किए गए सराहनीय कार्य के कारण इस कोरोना को नियंत्रण में किया गया और अनेक लोगों की जान बचाई गई और देश के कई राज्यों में यह महामारी थम गई।
इस दौरान कई लोगों ने झूठी अफवाहें फैला कर देश के लोगों का मानसिक संतुलन बिगाड़ने का प्रयास किया था। ऐसे समय में कोरोना की गाइडलाइन का 20 प्रतिशत लोगों ने भी पालन नहीं किया था। सड़कों, गलियों, सोसायटी में लोगों की भीड़ जमा होने लगी और सरकारी अधिकारियों की मदद करने की बजाय उन्हें हैरान-परेशान करना शुरू कर दिया था। दुनिया के अनेक देशों ने लोगों को डराने का और भय फ़ैलाने का प्रयास किया था। दो साल से शिक्षा बुरी तरह प्रभावित हुई। स्कूल-कॉलेजों में शैक्षणिक कार्य बंद होने से बच्चे, छात्र, युवा पीढ़ी मोबाइल और सोशल मीडिया का उपयोग करके यू-ट्यूब पर खराब चीजें देखने लगी जिससे इस युवा पीढ़ी में एक तरह की विकृतियां पैदा हो गईं। कोरोना की इस गंभीर महामारी से लोगों को बचाने के लिए अच्छे लोग, डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ, एनजीओ, सरकारी अधिकारी, कोरोना वॉरियर्स लड़ रहे थे तब ऐसे लोगों की हम सराहना भी नहीं कर सके।
इस स्थिति से बाहर निकलते हुए अगस्त 2021 से स्थिति धीरे-धीरे सामान्य होने लगी। कोरोना नियंत्रण में आने लगा और फिर समग्र उद्योग, शिक्षा, परिवहन और अन्य प्रणालियाँ पहले की तरह शुरू हो गई। देश के लोगों के जीवन की आवश्यकताएं जैसे अनाज, किराना, दूध, फल, सब्जियां, दवाएं आदि बाजार में हमेशा की तरह मिलने लगीं। सभी रुके हुए कार्यों के साथ-साथ नागरिकों का जीवन भी बहाल हो गया। सड़कें, बिजली आदि के काम होने लगे। आज देश की अर्थव्यवस्था फिर से सामान्य हो रही है, दो साल से कोरोना से मानसिक एव शारीरिक से पीड़ित लोग अब ठीक होकर अपने जीवन को फिर से संवार रहे हैं। भारत सरकार का जीएसटी राजस्व पिछले एक महीने में एक लाख पच्चीस हजार करोड़ रुपये से अधिक होने लगा है। सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक शादी, धार्मिक आयोजन आदि होने लगे हैं, पिछले कई दिनों से आयोजित ऐसे ही एक धार्मिक कार्यक्रम में लाखों लोग शामिल हुए थे और कई राजनीतिक और सामाजिक कार्यक्रमों में हजारों लोग शामिल हुए थे। इस तरह के आयोजनों में लोग किसी भी प्रकार की परवाह किये बगैर शामिल हुए जिस के फलस्वरूप आज कोरोना ने फिर से सिर उठाया है।
गुजरात और देश में 6.5 करोड़ MSME हैं जिनमें पार्टनर, डायरेक्टर आदि, अगर हम कम से कम 2 की गिनती करें, तो लगभग 13 करोड़ MSME पार्टनर या डायरेक्टर हैं, इस तरह लेबर और अन्य स्टाफ को देखते हुए करीब 35 से 40 करोड़ लोग एमएसएमई से जुड़े हुए हैं।
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अब जबकि सरकार के अथक प्रयासों के बाद देश में उद्योग, व्यवसाय-रोजगार, परिवहन, इत्यादि संरचना के कार्य, जो जनता की जरूरतों के लिए रोजगारोन्मुखी कार्यक्रम बनते जा रहे हैं, वे जोर-शोर से चल रहे हैं, लोगों के घाव भर रहे हैं तब अगर लॉकडाउन हुआ तो जनता या सरकार बर्दाश्त नहीं कर पायेगी क्योंकि अब लोगों में सहनशक्ति नहीं रही। व्यापार-उद्योग, व्यवसाय-रोजगार, शैक्षणिक कार्य पर अब लॉकडाउन लगाना आत्महत्या के समान होगा। देश के जिन शहरों में कोरोना फैला है और यह संक्रमण दूसरे अन्य शहरों या राज्यों में ना फैले यह सावधानी रखने की जरूरत है। हमारे देश में जो लोग यूके, अफ्रीका, इंडोनेशिया, यूरोप जैसे देशों से आए हैं, जिसके कारण आज देश में ओमीक्रॉन फैल गया है, ऐसे लोगों के क्षेत्रों की पहचान कर के वहां सख्त नियंत्रण करने चाहिए। देश या राज्य में हवाई अड्डे या अन्य स्थान पर प्रवेश करने वाले किसी भी विदेशी यात्री की जांच के लिए RTPCR परीक्षण आवश्यक है। हमारे देश में ऐसी कई बीमारियां हैं जिनके लिए वैक्सीन और अन्य टीके खोजे जा चुके हैं परंतु कुछ ऐसी भी बीमारियां हैं जो अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई हैं। इसी तरह कोरोना कम तो होगा लेकिन हमेशा के लिए नहीं जाएगा। अब अगर कोरोना के कारण उद्योग एव व्यवसाय पर नियंत्रण करने की कोशिश की गई, तो कारीगरों और लोगों की स्थिति बहुत खराब हो जाएगी। आज की स्थिति में यह लोगों की जिम्मेदारी है कि कोरोना फिर से अपना सिर उठाए उससे पहले एनजीओ, सामाजिक, धार्मिक संगठनों, साधु-संत और नागरिकों को कोरोना की गाइडलाइन जैसे मास्क पहनना, सैनेटाइजर का उपयोग करना, सोशल डिस्टेन्स रखना आदि का पालन करना जरूरी है।
यहां यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया, समाचार चैनलों, वेब चैनलों पर कोरोना के बारे में एक ही प्रकार की खबरें अक्सर प्रदर्शित होती हैं जिससे लोगों में भय फैलता है इसलिए सिर्फ एक प्रकार की खबरें देने की बजाय कोरोना से जंग जीत चुके लोगों की कहानियां भी बताई जानी चाहिए ताकि लोगों का आत्मविश्वास बढ़ सके।
-मगनभाई एच. पटेल
अध्यक्ष
ऑल इण्डिया एमएसएमई फेडरेशन अहमदाबाद, गुजरात
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