लॉकर के लिए शुल्क ले रहे बैंक अपनी जिम्मेदारी से बच रहे
उपभोक्ता अधिकार विशेषज्ञों का मानना है कि बैंक लॉकर में पड़े सामान के गायब होने या क्षतिग्रस्त होने के मामले में बैंक अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं।
उपभोक्ता अधिकार विशेषज्ञों का मानना है कि बैंक लॉकर में पड़े सामान के गायब होने या क्षतिग्रस्त होने के मामले में बैंक अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं। उनका कहना है कि बैंकों द्वारा इसके लिए दायित्व नहीं लेना 'सेवा में खामी' के तहत आता है। भारतीय रिजर्व बैंक और कई अन्य बैंकों ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में कुछ दिन पहले कहा था कि लॉकर में कीमती सामान के नुकसान पर कोई मुआवजा नहीं बनता। सरकारी और निजी क्षेत्र के बैंकों के अधिकारी इसकी जिम्मेदारी ग्राहकों पर डाल रहे हैं। उनका कहना है कि ग्राहक यह नहीं बताते कि उन्होंने सेफ डिपॉजिट बॉक्स में क्या सामान रखा है।
बैंक अधिकारियों का कहना है कि बैंकों द्वारा प्रदान किए गए सुरक्षा कवच से अलग सेंधमारी ग्राहक और बैंक के बीच करार के दायरे में नहीं आती। रिजर्व बैंक और 19 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने आरटीआई के जवाब में कहा है कि लॉकर में रखे सामान को लेकर हुए नुकसान की जिम्मेदारी उनकी नहीं है। चाहे यह नुकसान आग लगने या किसी प्राकृतिक आपदा की वजह से क्यों न हो। उपभोक्ता विशेषज्ञों का कहना है कि इस मामले में पारदर्शिता जरूरी है क्योंकि बैंक इस आधार पर अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं कि लॉकर में रखे सामान की जानकारी उन्हें नहीं होती। पारदर्शिता होने पर बैंक लॉकर के सामान का भी बीमा कर सकेंगे।
विशेषज्ञों की राय से असहमति जताते हुए बैंक अधिकारियों का कहना है कि लॉकर में सामान रखने के लिए जो वार्षिक शुल्क लिया जाता है वह सिर्फ 'सुरक्षित रखने' के लिए होता है। हालांकि बैंकरों ने यह नहीं बताया कि सुरक्षित रखने से क्या तात्पर्य है। उपभोक्ता अधिकार विशेषज्ञ और कंज्यूमर आनलाइन फाउंडेशन के संस्थापक बेजॉन मिश्रा ने कहा कि सरकार, रिजर्व बैंक और बैंकिंग उद्योग इस मामले में अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। वे उपभोक्ताओं से पैसा लेते हैं लेकिन सेवाओं की गुणवत्ता के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। उपभोक्ता मामलों को देखने वाले वकील कुश शर्मा का कहना है कि बैंकों को लॉकर के सामान का बीमा कराने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। इस उद्देश्य के लिए यह पारदर्शिता जरूरी है कि लॉकर में क्या रखा गया है। खासकर यह देखते हुए कि सरकार सभी वित्तीय गतिविधियों में पारदर्शिता लाना चाहती है।
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