Khatu Shyam Mandir: सदियों से चली आ रही है खाटू श्याम को निशान अर्पित करने की परंपरा, जानिए वजह
सनातन धर्म में ध्वज को विजय का प्रतीक माना जाता है। वहीं खाटू श्याम को निशान अर्पित करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। ऐसे में आज भी यह परंपरा निभाई जा रही है। निशान को ध्वज और झंडा कहा जाता है।
राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम मंदिर देशभर में फेमस है। बता दें कि इस मंदिर में श्रीकृष्ण के साथ पांडव भीम के पोते घटोत्कच्छ के बेटे की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। रोजाना हजारों-लाखों की संख्या में भक्त खाटू श्याम के दर्शन के लिए सीकर पहुंचते हैं। जो भी भक्त बाबा श्याम के दर्शन के लिए जाते हैं, उनमें से ज्यादातर भक्त अपने साथ खाटू श्याम का ध्वज लेकर जाते हैं। इस ध्वज को निशान कहा जाता है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बताने जा रहे हैं कि भक्त बाबा खाटू श्याम को निशान क्यों अर्पित करते हैं।
जानिए क्या है वजह
सनातन धर्म में ध्वज को विजय का प्रतीक माना जाता है। वहीं खाटू श्याम को निशान अर्पित करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। ऐसे में आज भी यह परंपरा निभाई जा रही है। निशान को ध्वज और झंडा कहा जाता है। इस निशान को खाटू श्याम द्वारा दिए गए बलिदान और दान का प्रतीक माना जाता है। क्योंकि खाटू श्याम ने श्रीकृष्ण के कहने पर धर्म की जीत के लिए अपना शीश समर्पित कर दिया था। ऐसे में युद्ध की जीत का पूरा श्रेय श्रीकृष्ण को दिया था।
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कैसा होता है ये निशान
बता दें खाटू श्याम को जो निशान अर्पित किया जाता है, वह नारंगी, लाल और केसरिया रंग का होता है। इसके अलावा इसमें श्रीकृष्ण, खाटू श्याम की फोटो और मोर पंख होता है। मान्यता के मुताबाकि जो भी भक्त खाटू श्याम पर इस निशान को अर्पित करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। वहीं कुछ लोग मनोकामना पूरी होने पर खाटू श्याम को निशान अर्पित करते हैं।
कौन हैं खाटू श्याम
बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से जाना जाता है। वह भीम के पोते और घटोत्कच्छ के पुत्र हैं। उनका संबंध महाभारत काल से है। बर्बरीक बेहद ताकतवर थे, ऐसे में श्रीकृष्ण ने उनसे प्रभावित होकर उनके कलियुग में अपने नाम से पूजे जाने का आशीष दिया था।
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