Gyan Ganga: गुरु की कृपा के सागर से भक्तों पर सदैव आशीर्वाद की वर्षा होती रहती है

Goswami Tulsidas
Prabhasakshi
सुखी भारती । Oct 14 2023 5:01PM

मेरे गुरु के चरणों की महानता तो आपने सुन ली। लेकिन इससे भी बड़ी और आश्चर्यजनक बात तो मैंने आपको बताई ही नहीं। वह यह, कि उन पावन श्रीचरणों में आपने सदा कुछ रज को लगे देखा होगा। चलने से रज हमारे चरणों में भी लगती है।

गोस्वामी जी को यह ज्ञान बड़ी बारीकी से है, कि वे कौन-सी अलौकिक व अकथनीय रचना रचने जा रहे हैं। इसीलिए तो वे आरम्भ में ही चरण-वंदना ऐसे महापुरुष की कर रहे हैं, जिनकी महिमा को शब्दों में गाना, कुछ ऐसे है, जैसे दीपक में सागर को उडेलना। हालाँकि यह कार्य किसी भी प्रकार से संभव नहीं है। लेकिन उन्हें पता है, कि वह सत्ता एक ऐसी विलक्षण विभूति हैं, कि अगर उनकी कृपा होती है, तो विशाल सागर भी दीपक में एक बूँद की भाँति सिमट जायेगा। वे महाविभूति को शास्त्र-ग्रंथों ‘गुरु’ नाम से अलंकृत किया गया है। उन्हीं पूजनीय गुरु की सुंदर स्तुति में गोस्वामी जी लिखते हैं-

‘बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररुप हरि।

महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर।।’

अर्थात देवताओं की स्तुति तो मैंने कर ही ली है। जो कि एक मर्यादा का अंग था। लेकिन सबसे प्रथम तो मैं अपने गुरु की वंदना करता हूँ, जोकि कृपा के समुद्र हैं और नर रूप में श्रीहरि ही हैं। वे ऐसे अदुभुत व दिव्य हैं कि जिनके आशीष वचन, महामोह रूपी घने अन्धकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं। आप गोस्वामी जी शब्दों पर विचार कीजिए। संसार में संभवतः यह तो सभी कहते हैं, कि भाई साहब! बस आपकी अथवा प्रभु की बड़ी कृपा है। लेकिन गोस्वामी जी इन शब्दों का प्रयोग न कर, यह कहते हैं, कि हमारे गुरु जी की कृपा तो है, और बहुत बड़ी भी है, लेकिन कितनी बड़ी है, उसकी तुलना केवल सागर के पानी की गहराई, विशालता एवं असीमता से ही की जा सकती है। सागर में से जैसे कितना भी पानी निकाल लें, तब भी उसकी गहराई अथवा विराटता को कम नहीं किया जा सकता। कारण कि धरती के कोने-कोने से नदियों के समूह, सागर के रिक्त स्थान को भरने के लिए उमड़ पड़ती हैं। ठीक ऐसे ही, गुरु ऐसे अनंत सागर हैं, कि जिनके कृपा के भण्डार गृह में ये यदैव अनंत कृपा का स्राव होता रहता है, और उसमें से कभी कुछ कम नहीं होता। अपितु दिन प्रतिदिन बस वृद्धि ही होती है।

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उस पर भी गुरु के श्रीवचनों की तो कहने ही क्या। उनके आशीष वचनों का ऐसा दिव्य तेज व प्रभाव है, कि हमको तो सूर्य की किरणों का स्मरण हो उठता है। सूर्य की किरणों में एक विशेषता होती है, कि अंधकार भले ही सदियों पुराना ही क्यों न हो, सूर्य की एक किरण ही, तत्क्षण उसे मूल से उखाड़ने के लिए पर्याप्त है। ठीक इसी प्रकार से जीव भी एक कठिन रोग की चपेट में है। जिसे गोस्वामी जी ने केवल मोह नहीं, अपितु महामोह के नाम से संबोधन किया। यह मानस रोग ऐसा है, कि व्यकित अपना सर्वस्व माटी में माटी होता हुआ देख सकता है, लेकिन अपने मोह के स्रोत को माटी होता नहीं देख सकता। महाराज युधिष्ठिर ने अपने समस्त कुटुम्ब को अग्नि में स्वाह होते देख लिया, लेकिन दुर्योधन को स्वयं से दूर होता हुआ उससे न देखा गया। फिर भले ही दुर्योधन परम मोही, अपने पिता की गोदी में बैठ कर, उसकी दाड़ी ही नोचता रहा। ऐसा कठिन मोह भी अगर किसी को हो, नहीं-नहीं मोह नहीं, महामोह हो, तब भी गुरु ऐसी महान शक्ति हैं, कि जिनके एक श्रीवचन से ही महामोह रुपी अंधकार का समूल नाश हो जाता है। आगे गोस्वामी जी प्रखर भाव से फिर कहते हैं-

‘बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा।

सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।

अमिअ मूरिमय चूरन चारु।

समन सकल भव रुज परिवारु।।’

अर्थात मेरे गुरु के चरणों की महानता तो आपने सुन ली। लेकिन इससे भी बड़ी और आश्चर्यजनक बात तो मैंने आपको बताई ही नहीं। वह यह, कि उन पावन श्रीचरणों में आपने सदा कुछ रज को लगे देखा होगा। चलने से रज हमारे चरणों में भी लगती है। तब हम क्या करते हैं? पानी से धो ही देते हैं न? कारण कि किसी भी प्रकार की धूल से चरणों को गंदा ही होना होता है। लेकिन गुरु की पावन श्रीचरणों की तो गाथा ही अलग है। निःसंदेह रज को मलिनता से जोड़ कर ही माना जाता है। लेकिन वही रज जब गुरु के श्रीचरणों का संग कर लेती है, तो वह सुरुचि, सुगंध व अनुराग रूपी रस से पूर्ण हो जाती है। आपने औषिध के रूप में किसी चूर्ण का सेवन किया होगा। गुरु रज भी मानो एक चूर्ण की ही भाँति होती है, जो संपूर्ण भव रूपी रोगों को समूल नाश करने वाली होती है। केवल इतना ही नहीं। गोस्वामी जी यह भी कहते हैं, कि वह रज सुकृति (पूण्यवान पुरुष) रूपी शिवजी के सरीर पर सुशोभित निर्मल विभूति है, और सुंदर कल्याण और आनन्द की जननी है। भक्त के मन रूपी सुंदर दर्पण के मैल को दूर करने वाली और तिलक करने से गुणों के समूह को वश में करने वाली है। आगे गोस्वामी जी गुरु के चरण-नखों के संबंध में बड़ी ही महत्वपूर्ण बात कहते हैं, जिसकी चर्चा हम अगले अंक में करेंगे---(क्रमशः)---जय श्रीराम।

-सुखी भारती

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