Gyan Ganga: सप्तऋषियों ने भगवान शंकर के बारे में खूब नकारात्मक चुगलियां की ताकि मां पार्वती अपने लक्ष्य से भटक सकें
श्रीसती जी के निधन के पश्चात, भोलेनाथ को अब तो रत्ती भर भी चिंता नहीं है। कारण कि उन्होंने कौन सा भोजन पकाना है। वे तो भीख माँग कर अपना गुजारा कर लेते हैं, और सुख से सोते हैं। ऐसे स्वभाव से ही अकेले रहने वालों के घर भी क्या कभी स्त्रियाँ टिका करती हैं?
सप्तऋषियों का जत्था भगवान शंकर के आदेश पर माँ पार्वती जी की परीक्षा लेने में कोई संकोच नहीं कर रहे थे। उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया था, कि श्रीसती जी के दाह होने में भगवान शंकर की मुख्य कारक थे। किंतु जब माँ पार्वती जी पर इस भय का कोई प्रभाव नहीं हुआ, तो उन्होंने सोचा, कि अब कौन सा मंत्र फूँका जाये? कारण कि माँ पार्वती को मृत्यु का तो कोई भय ही नहीं सता रहा। तब उन्होंने सोचा, कि क्यों न माँ पार्वती को दूसरा भय दिखाया जाये। तो उन्होंने कहा-
‘अब सुख सोवत सोचु नहिं भीख मागि भव खाहिं।
सहज एकाकिन्ह के भवन कबहुँ कि नारि खटाहिं।।’
अर्थात हे देवी! श्रीसती जी के निधन के पश्चात, भोलेनाथ को अब तो रत्ती भर भी चिंता नहीं है। कारण कि उन्होंने कौन सा भोजन पकाना है। वे तो भीख माँग कर अपना गुजारा कर लेते हैं, और सुख से सोते हैं। ऐसे स्वभाव से ही अकेले रहने वालों के घर भी क्या कभी स्त्रियाँ टिका करती हैं? कहने का तात्पर्य, कि देवी! आप भोलेनाथ का वरण तो कर लेंगी, किंतु जब आपको खाने के लाले पड़ेंगे, तब आपको पता चलेगा, कि केवल विवाह कर लेना ही बहुत नहीं होता। घर में बर्तन, चूल्हा-चौका और अनाज के दानों का होना भी उतना ही आवश्यक होता है। शिवजी का क्या है, उनका मन किया तो वे समाधि में कब बैठ जायें, कोई पता नहीं। फिर देखती रहना आप। अगर अब भी आपने अपनी हठ नहीं छोड़ी, तो बाद में आपको हमारी सीख याद आयेगी। किंतु तब तक तो तीर कमान से कब का निकल चुका होगा। तब रोने के सिवा क्या ही चारा रह जायेगा?
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जब सप्तऋषियों ने भगवान शंकर के बारे में खूब नकारात्मक चुगलियाँ कर ली, तब उन्होंने सोचा, कि लगता है, कि माँ पार्वती को उनके लक्ष्य के प्रति भटका तो लिया ही है, तो क्यों न अब उनके समक्ष प्रलोभन का थाल परोसा जाये। तब उन्हों ने माँ पार्वती के समक्ष ऐसा प्रस्ताव रखा, जो किसी को भी भटकाने के लिए पर्याप्त था-
‘अजहुँ मानहु कहा हमारा।
हम तुम्ह कहुँ बरु नीक बिचारा।।
अति सुंदर सुचि सुखद सुसीला।
गावहिं बेद जासु जस लीला।।’
मुनि बोले-हे देवी! अब भी हमारा कहा मानो, हमने तुम्हारे लिए अच्छा वर विचारा है। वह दिखने में बहुत ही सुंदर, पवित्र, सुखदायक और सुशील है। ऐसा ही नहीं कि उनकी महिमा केवल हम ही गा रहे हैं, अपितु उनका यशगान और लीला वेद भी गाते हैं।
सप्तऋषियों ने सोचा, कि माँ पार्वती जी अब अवश्य ही अपना विचार बदलेंगी। वे पूछेंगी कि अगर ऐसा है, तो मुझे विचार करने का थोड़ा अवसर तो दें। सप्तऋषि माँ पार्वती के मुख को निहार रहे हैं। किंतु माँपार्वती की ओर से कोई प्रतिक्रिया ही नहीं आ रही थी। तब सप्तऋषियों ने सोचा, कि लगता है, कि माँ पार्वती निर्णय नहीं कर पा रही हैं। उन्हें शायद यह भी भ्राँति है, कि हम पता नहीं कौन से वर की बात कर रहे हैं, जो भगवान शंकर की काट का हो। तो क्यों न हम उस उत्तम वर का नाम भी बता दें?
ऐसा सोच मुनियों ने वर का नाम भी बता दिया-
‘दूषन रहित सकल गुन रासी।
श्रीपति पुर बैकुंठ निवासी।।
अस बरु तुम्हहि मिलाउब आनी।
सुनत बिहसि कह बचन भवानी।।’
अर्थात हे देवी! वह वर की विशेषता भी महान है। वह दोषों से रहित, सारे सद्गुणों की राशि, लक्ष्मी का स्वामी और बैकुण्ठपुरी का रहने वाला है। हम ऐसे वर को लाकर आपको मिला देंगे।
मुनियों ने सोचा, कि अब अवश्य ही देवी पार्वती जी अपना निर्णय बदल लेंगी। और कहेंगी, कि ठीक है! हे मुनियों। आपने अगर मेरे लिए इतना सोच ही रखा है, तो मैं अब क्या कह सकती हुँ? क्योंकि संतों की बात का तो वैसे भी विरोध नहीं करना चाहिए। बिना विचारे ही उनकी कही मान लेनी चाहिए।
मुनियों की ऐसी ही आशा थी। वे देवी पार्वती जी को अपने समक्ष हाथ जोड़े समर्पण मुद्रा में देखें। किंतु होता क्या है? होता इसके बिल्कुल उलट है। माँपार्वती जी कोई समर्पण भाव में नहीं आती। बल्कि ठहाका मार कर हँस पड़ती हैं।
माँ पार्वती क्यों हँसती हैं, जानेंगे अगले अंक में---(क्रमशः)---जय श्रीराम।
- सुखी भारती
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