Brahvaivarta Purana: लोमश ऋषि को प्राप्त है दीर्घजीवी का वरदान, इंद्र और दशरथ को दिया था नश्वर संसार का ज्ञान

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जब कल्पान्तर में एक ब्रह्मा का लय होता है, तब लोमश ऋषि के शरीर का एक रोम गिर जाता है। जिसके कारण इनके पूरे शरीर में लोम यानी की रोम ही रोम है। इस वजह से यह लोमश ऋषि के नाम से फेमस हैं।

प्राचीन संहिता ग्रंथों में ज्योतिष के 18 प्रवर्तक के बारे में बताया गया है। इन 18 प्रवर्तकों में सर्वाधिक दीर्घजीवी लोमश ऋषि महर्षि हैं। बताया जाता है कि जब कल्पान्तर में एक ब्रह्मा का लय होता है, तब लोमश ऋषि के शरीर का एक रोम गिर जाता है। जिसके कारण इनके पूरे शरीर में लोम यानी की रोम ही रोम है। इस वजह से यह लोमश ऋषि के नाम से फेमस हैं। भगवान शिव द्वारा लोमश ऋषि को अत्यन्त दीर्घजीवी होने का वरदान प्राप्त है।

बताया जाता है कि अपनी बाल्य अवस्था में ऋषि लोमश मृत्यु का नाम सुनकर डर जाते थे। इसलिए उन्होंने अनेक वर्षों तक कड़ी तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनसे अमरता का वरदान मांगा। जिस पर भगवान शिवजी ने कहा कि इस पृथ्वी पर सभी नश्वर हैं। जिनको एक न एक दिन मृत्यु को प्राप्त करना है और यही ईश्वर का विधान है। तब लोमश ऋषि ने भगवान शिव से वरदान मांगा कि उनके शरीर का एक रोंआ कल्प के अंत में टूटकर गिर जाए। वहीं जिस दिन उनके शरीर के सभी रोएं झड़ जाएं, तब वह भी मृत्यु को प्राप्त हों।

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महाराज दशरथ और इंद्रदेव को दिया दिव्य ज्ञान

इस तीनों लोक में लोमश ऋषि सबसे ज्यादा दीर्घायु हैं। भगवान शिव से इतनी बड़ी आयु पाकर लोमश ऋषि ने देवराज इंद्र और महाराज दशरथ को दिव्य ज्ञान दिया। जब महाराज दशरथ अपने नए महल की नींव को खुदवा रहे थे, तभी वहां से लोमश ऋषि गुजरे। इस दौरान लोमश ऋषि ने महाराज दशरथ से पूछा कि उनको इस मृत्युलोक में कितने दिन रहता है। यह सवाल सुन महाराज दशरथ मौन हो गए। लोमश ऋषि ने बताया कि चक्रवर्ती सम्राट, राजा-महाराजा, ऋषि-महर्षि और प्रतापी से प्रतापी योगी अपने योगबल से ज्यादा से ज्यादा हजार वर्ष तक जीवित रह सकता है। 

ऐसे में इतनी कम आयु होने पर नया महल बनवाने की क्या जरूरत है। उन्होंने कहा कि उन्हें इतनी लंबी आयु का वरदान प्राप्त है। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने आजतक अपने लिए एक झोपड़ी तक का निर्माण नहीं किया। क्योंकि यह जीवन नश्वर है और एक न एक दिन सभी को जाना है। तो झोपड़ी या महल बनवाने में इतना परिश्रम क्यों किया जाए।

ब्रह्वैवर्तपुराण के अनुसार एक विशाल भवन बनाने के लिए देवताओं के राजा इंद्र ने देवशिल्पी विश्वकर्मा को नियुक्त किया। इस विशाल भवन के निर्माण में सौ वर्षों से भी अधिक का समय लग गया, लेकिन महल का काम नहीं पूरा हो सका। ऐसे में देवराज के अभिमान को दूर करने के लिए लोमश ऋषि इंद्रलोक पहुंचे। तो ऋषि के शरीर पर बाल ही बाल देखकर और वक्षस्थल पर कुछ भाग खाली देखकर देवराज ने ऋषि से इसका कारण पूछा। तब लोमश ऋषि ने बताया कि उनके शरीर के यह रोम उनकी आयु को दर्शाते हैं। जब भी कल्प के अंत में एक ब्रह्म का लय होता है, तो उनके शरीर से एक रोम कम हो जाता है।

इसी कारण उनके वक्षस्थल का कुछ स्थान खाली हो गया है। मेरे देखते-देखते असंख्य ब्रह्म विलीन हो गए और आगे भी विलीन होंगे। क्योंकि चाहे जितनी बड़ी आयु क्यों न हो, लेकिन एक न एक दिन सभी को इस नश्वर शरीर को छोड़कर जाना है। इसलिए आजतक उन्होंने अपने लिए एक झोपड़ी का निर्माण भी नहीं किया और तुम अपने लिए इतना विशाल महल बनवा रहे हो। लोमश ऋषि ने देवराज इंद्र को गूढ़ ज्ञान देते हुए कहा कि ऐसे महल की क्या जरूरत जो 100 वर्षों के बाद भी पूरा नहीं हो पा रहा। उन्होंने कहा कि ऐश्वर्य स्वप्न मिथ्या है और यह ईश्वर की भक्ति में बाधा डालती है। इस पृथ्वी पर जो भी दिखता है, सब चंचल और क्षणभंगुर है।

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