Gyan Ganga: चाणक्य और चाणक्य नीति पर डालते हैं एक नजर, भाग-1
चाणक्य को कौटिल्य और विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उन्होंने अपनी शिक्षा तक्षशिला में प्राप्त की थी। वे मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में प्रधानमंत्री थे।
आइए ! चाणक्य और चाणक्य नीति पर डालते हैं एक नजर—
प्राचीन भारतीय नीतिज्ञों और विद्वानो में चाणक्य का एक महत्वपूर्ण स्थान है। चाणक्य की विचारधारा यथार्थवाद और व्यावहारिकता की भावना का प्रतीक है। यह लोगों को जीवन एवं समाज की सच्चाइयों को स्वीकार करने एवं समझने के लिये प्रोत्साहित करती है ताकि उन्हें नियंत्रित किया जा सके तथा सफलता के नए स्तर तक पहुँचा जा सके। चाणक्य का व्यावहारिक दृष्टिकोण पारंपरिक सोच को चुनौती देता है तथा लोगों को समाज के मानदंडों एवं मान्यताओं पर प्रश्न उठाने के लिये प्रोत्साहित करता है। उन्होंने चंद्रगुप्त को एक सामान्य व्यक्ति से राजा में बदल दिया था।
चाणक्य को कौटिल्य और विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उन्होंने अपनी शिक्षा तक्षशिला में प्राप्त की थी। वे मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में प्रधानमंत्री थे।
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“चाणक्य नीति” प्रसिद्ध महापंडित आचार्य चाणक्य के द्वारा लिखी गयी है। इसमें उन्होने अपने गहन चिंतन, जीवन के खट्टे मीठे अनुभव और सामाजिक विश्लेषण से अर्जित अमूल्य ज्ञान को पूरी तरह से निःस्वार्थ भावना से मानवीय कल्याण के लिए अभिव्यक्त किया है, ताकि उनके बाद आने वाले व्यक्तियों को उनके अनुभवों का ज्ञान प्राप्त हो सके।
इसलिए हम सबको चाणक्य नीति एक बार अवश्य पढ़नी चाहिए। आचार्य चाणक्य अत्यंत विद्वान, बुद्धिमान और महान व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। इन्होने अपने बुद्धि और राजनीति के बल और सामर्थ्य से भारतीय इतिहास को नयी दिशा दे दी थी। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चाणक्य कुशल राजनीतिज्ञ, चतुर कूटनीतिज्ञ, प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में भी विश्वविख्यात हुए। आइए ! आज से शुरू कराते हैं “चाणक्य नीति शृंखला” मौजूदा चाणक्य नीति के अंतर्गत आपको उनके संस्कृत श्लोक और हिन्दी अर्थ के साथ English meaning भी बताया गया जिससे आपको भाषा के आधार पर पढ़ने मे कोई समस्या ना हो।
प्रणम्य शिरसा विष्णुम त्रैलोक्याधिपति प्रभुम् ।
नानाशास्त्रोद्धृतं वक्ष्ये राजनीतिसमुच्चयम् ।।
तीनो लोको के स्वामी सर्वशक्तिमान भगवान विष्णु को नमन करते हुए मै एक राज्य के लिए नीति शास्त्र के सिद्धांतों को कहता हूँ। मै यह सूत्र अनेक शास्त्रो का आधार ले कर कह रहा हूँ।
Humbly bowing down before the almighty Lord Sri Vishnu, the Lord of the three worlds, I recite maxims of the science of political ethics (niti) selected from the various satras (scriptures).
अधीत्येदं यथाशास्त्रं नरोजानाति सत्तमः ।
धर्मोपदेश विख्यातं कार्याऽकार्य शुभाऽशुभम् ।।
जो व्यक्ति शास्त्रों के सूत्रों का अभ्यास करके ज्ञान ग्रहण करेगा उसे अत्यंत वैभवशाली कर्तव्य के सिद्धांत ज्ञात होंगे। उसे इस बात का पता चलेगा कि किन बातों का अनुसरण करना चाहिए और किनका नहीं। उसे अच्छाई और बुराई का भी ज्ञात होगा और अंततः उसे सर्वोत्तम का भी ज्ञान होगा।
That man who by the study of these maxims from the satras acquires a knowledge of the most celebrated principles of duty, and understands what ought and what ought not to be followed, and what is good and what is bad, is most excellent.
तदहं संप्रवक्ष्यामि लोकानां हितकाम्यया ।
येन विज्ञानमात्रेण सर्वज्ञत्वं प्रपद्यते ।।
इसलिए लोगों का भला करने के लिए मै उन बातों को कहूंगा जिनसे लोग सभी चीजों को सही परिपेक्ष्य में देखेंगे।
Therefore with an eye to the public good, I shall speak that which, when understood, will lead to an understanding of things in their proper perspective.
मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च।
दुःखिते सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति ।।
एक पंडित भी घोर कष्ट में आ जाता है यदि वह किसी मूर्ख को उपदेश देता है, यदि वह एक दुष्ट पत्नी का पालन-पोषण करता है या किसी दुखी व्यक्ति के साथ अतयंत घनिष्ठ सम्बन्ध बना लेता है.
Even a pandit comes to grief by giving instruction to a foolish disciple, by maintaining a wicked wife, and by excessive familiarity with the miserable.
दुष्टाभार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः ।
संसर्प च गृहे वासो मृत्युरेव नः संशयः ।।
दुष्ट पत्नी, झूठा मित्र, बदमाश नौकर और सर्प के साथ निवास साक्षातमृत्यु के समान है।
A wicked wife, a false friend, a saucy servant and living in a house with a serpent in it are nothing but death.
आपदर्थे धनं रक्षेद्दारान रक्षेत धनैरपि ।
आत्मानं सततं रक्षेद्दारैरपि धनैरपि ।।
व्यक्ति को आने वाली मुसीबतों से निबटने के लिए धन संचय करना चाहिए। उसे धन-सम्पदा त्यागकर भी पत्नी की सुरक्षा करनी चाहिए। लेकिन यदि आत्मा की सुरक्षा की बात आती है तो उसे धन और पत्नी दोनो को दाव पर लगाकर पहले अपनी रक्षा करनी चाहिए।
One should save his money against hard times, save his wife at the sacrifice of his riches, but invariably one should save his soul even at the sacrifice of his wife and riches.
आपदार्थे धनं रक्षेच्छ्रीमतां कुत आपदः ।
कदाचिच्चलते लक्ष्मीसंचितोऽपिविनश्यति ।।
भविष्य में आने वाली मुसीबतो के लिए धन एकत्रित करें। ऐसा ना सोचें की धनवान व्यक्ति को मुसीबत नहीं आती । जब धन साथ छोड़ता है तो संगठित धन भी तेजी से घटने लगता है।
Save your wealth against future calamity. Do not say, "What fear has a rich man, of calamity?" When riches begin to forsake one even the accumulated stock dwindles away.
यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवः।
न च विद्यागमऽप्यस्तिवासस्तत्र न कारयेत् ।।
उस देश में निवास न करें जहाँ आपकी कोई ईज्जत न हो, जहाँ आप रोजगार नहीं कमा सकते, जहाँ आपका कोई मित्र न हो और जहाँ आप कोई ज्ञान अर्जित न कर सकें ।
Do not inhabit a country where you are not respected, cannot earn your livelihood, have no friends, or cannot acquire knowledge.
शेष अगले प्रसंग में ------
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।
- आरएन तिवारी
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