Mahakumbh Mela 2025: कुंभ मेला कितनी तरह का होता है और यह कैसे एक-दूसरे से जुड़े हैं, जानिए इससे जुड़े महत्व

Mahakumbh Mela 2025
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क्या आप जानते हैं कि महाकुंभ मेला कब लगेगा और यह कितने प्रकार के होते हैं और इसकी तिथि कैसे निर्धारित होती है। मेष राशि के चक्र में बृहस्पति, सूर्य और चन्द्रमा के मकर राशि में गोचर करने पर अमावस्या के दिन महाकुंभ मेला लगता है।

हर 12 साल के बाद महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। कुंभ मेला दुनिया का सबसे विशाल, पवित्र, धार्मिक और सांस्कृतिक मेला है। यह मेला 45 दिनों तक चलता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाकुंभ मेला कब लगेगा और यह कितने प्रकार के होते हैं और कुंभ मेला की तिथि कैसे निर्धारित होती है। तो बता दें कि मेष राशि के चक्र में बृहस्पति, सूर्य और चन्द्रमा के मकर राशि में गोचर करने पर अमावस्या के दिन महाकुंभ मेला लगता है और यह मेला प्रयागराज में लगता है। कुंभ मेला या पूर्ण मेला साल 2013 में लगा था। अब कुंभ मेला 2025 में लगेगा। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बताने जा रहे हैं कि महाकुंभ मेला कब लगेगा और इस मेले से जुड़ी जरूरी बातों के बारे में...

महाकुंभ स्नान की तारीखें

साल 2025 में पूर्ण महाकुंभ का पहला शाही स्नान 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा से शुरू होगा। वहीं 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर दूसरा शाही स्नान, 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर तीसरा शाही स्नान और 3 फरवरी को वसंत पंचमी का चौथा शाही स्नान होगा। 12 फरवरी को माघ पूर्णिमा पर पांचवा और 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के मौके पर आखिरी शाही स्नान होगा। इस तरह से पूर्ण महाकुंभ मेला पूरे 45 दिनों तक चलेगा।

कुंभ मेलों के प्रकार

पूर्ण महाकुंभ मेला

बता दें कि हर 144 सालों के अंतराल पर प्रयागराज में पूर्ण महाकुंभ मेले का आयोजन हो रहा है। दरअसल, कुंभ 12 होते हैं, जिनमें से 4 कुंभ का धरती पर और 8 कुंभ का देवलोक में आयोजन होता है। इससे पहले साल 2013 में पूर्ण महाकुंभ का आयोजन हुआ था।

पूर्ण कुंभ मेला

पूर्ण कुंभ मेले का आयोजन 12 साल में होता है और यह मेला भारत के 4 स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में लगता है। हर 12 साल के अंतराल पर चारों कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।

अर्ध कुंभ मेला

अर्ध कुंभ मेले का अर्थ है आधा कुंभ मेला। यह मेला हर 6 साल में दो स्थानों प्रयागराज और हरिद्वार में लगता है।

कुंभ मेला

कुंभ मेले का आयोजन चार अलग-अलग स्थानों पर हर तीसरे साल आयोजित किया जाता है।

माघ कुंभ मेला

हर साल माघ महीने में माघ कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में किया जाता है।

सिंहस्थ कुंभ

सिंहस्थ कुंभ का संबंध सिंह राशि से है। सिंह राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य के गोचर करने पर उज्जैन में सिंहस्थ कुंभ का आयोजन होता है।

कुंभ मेले की तिथि कैसे निर्धारित होती है

कुंभ मेले का आयोजन कब और किस स्थान पर किया जाएगा, इसकी तिथि ग्रहों और राशियों पर निर्भर करती है। बता दें कि सूर्य और बृहस्पति को कुंभ मेले के लिए काफी अहम माना जाता है। जब सूर्य और बृहस्पति ग्रह एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करते हैं, तो कुंभ मेले का आयोजन होता है। इसी तरह से कुंभ मेले के आयोजन के स्थान भी निर्धारित किए जाते हैं।

कुंभ मेले के स्थान का निर्धारण कैसे होता है

जब वृष राशि में बृहस्पति ग्रह प्रवेश करते हैं और मकर राशि में सूर्य गोचर करते हैं, तो प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।

वहीं मेष राशि में सूर्य और कुंभ राशि में बृहस्पति गोचर करते हैं, तो हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन होता है।

जब सिंह राशि में सूर्य और बृहस्पति प्रवेश करते हैं तब महाकुंभ मेले का आयोजन नासिक में होता है।

इसके साथ ही सिंह राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य प्रवेश करते हैं, तो महाकाल की नगरी उज्जैन में कुंभ का आयोजन किया जाता है।

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