Hanuman Janmotsav: हनुमान जी की आराधना से न केवल संकट कम होंगे बल्कि रोगों से भी मिलेगा छुटकारा

Hanuman Janmotsav
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हनुमान जी को शिव जी का 11 वां रूद्रावतार माना जाता है। साथ ही हनुमान जी बहुत दयालु है और वह अपने भक्तों पर कृपा बनाएं रखते हैं। इसलिए हनुमान जी की विशेष कृपा पाने के लिए हनुमान जयंती के दिन हनुमान चालीसा का 11 बार या 21 बार पाठ अवश्य करें।

हनुमान जन्मोत्सव के दिन हनुमान जी की आराधना न केवल आपको संकट से उबरने में मदद करेगी बल्कि आपको सकारात्मक ऊर्जा भी प्रदान करेगी। तो आइए हम आपको हनुमान जन्मोत्सव की पूजा विधि के बारे में बताते हैं।

जानें हनुमान जन्मोत्सव के बारे में 

शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हनुमान जी जन्म हुआ था। इसके उपलक्ष्य में हर साल चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हनुमान जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस दिन न केवल मंदिरों में हनुमान भक्तों की भारी भीड़ इकट्ठी होती है बल्कि घर में पाठ आयोजित किए जाते हैं। इस साल हनुमान जन्मोत्सव 6 अप्रैल 2023 को मनायी जा रही है। हिन्दू मान्यताओं में हनुमान जी को संकट हरने वाला माना गया है। इसलिए हनुमान जी आराधना से न केवल सभी प्रकार के संकट कम होंगे बल्कि कई प्रकार के रोगों से भी छुटकारा मिलेगा।

हनुमान जन्मोत्सव का महत्व 

हिन्दू त्यौहारों में हनुमान जन्मोत्सव का खास महत्व होता है। इस दिन मंदिरों में हनुमान जी के भक्तों की लम्बी लाइन लगती है। भक्त सिंदूर का चोला और प्रसाद के रूप में बूंदी का लड्डू चढ़ाते हैं। आप हनुमान जन्मोत्सव के दिन सुंदरकांड का पाठ करें। सुंदरकांड का पाठ आपको शांति प्रदान करेगा। साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ आपको सभी प्रकार के दुखों तथा बीमारियों से दूर रखेगा।

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हनुमान जन्मोत्सव पर आवश्यक सामग्री

हनुमान जन्मोत्सव पर इन सामग्रियों से सिंदूर, लाल फूल, लाल फूल की माला, जनेऊ, कलश, चमेली का तेल, लाल कपड़ा या लाल लंगोट, गंगाजल, कंकु, जल कलश, इत्र, सरसों तेल, घी, धूप-अगरबती, दीप, कपूर, तुलसी पत्र, पंचामृत, नारियल, पीला फूल, चन्दन, लाल चन्दन, फल, केला, बेसन का लड्डू, लाल पेड़ा, मोतीचूर का लड्डू, चना और गुड़, पान, पूजा की चौकी  और अक्षत।

हनुमान जन्मोत्सव का शुभ मुहूर्त 

हनुमान जन्मोत्सव की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 6 अप्रैल को सुबह 6 बजकर 6 मिनट से 7 बजकर 40 मिनट तक है। उसके बाद आप दोपहर में 12 बजकर 24 मिनट से 1 बजकर 58 मिनट तक पूजा कर सकते हैं। इसके अलावा शाम को 5 बजकर 7 मिनट से 8 बजकर 7 मिनट तक भी पूजा का शुभ मुहूर्त है।

ऐसे पाएं हनुमान जी की विशेष कृपा 

हनुमान जी को शिव जी का 11 वां रूद्रावतार माना जाता है। साथ ही हनुमान जी बहुत दयालु है और वह अपने भक्तों पर कृपा बनाएं रखते हैं। इसलिए हनुमान जी की विशेष कृपा पाने के लिए हनुमान जयंती के दिन हनुमान चालीसा का 11 बार या 21 बार पाठ अवश्य करें। इसके अलावा सुंदर कांड का पाठ कर भी आप हनुमान जी के कृपा पात्र बन सकते हैं। 

हनुमान जन्मोत्सव पर पूजा से रूके हुए काम बनेंगे

अगर काफी समय से आप जो भी कार्य कर रहे हैं और उसमें सिर्फ असफलता हाथ लग रही है तो हनुमान जन्मोत्सव के दिन विधिपूर्वक बजरंगबली की पूजा करके उन्हें केसरिया लड्डू का भोग लगाएं। इस उपाय से आपको कार्यों में सफलता मिलने लगेगी। 

हनुमान जन्मोत्सव पर घर में करें ऐसे पूजा 

हनुमान जन्मोत्सव के दिन पूर्ण मनोयोग से पूजा करने से आपको हनुमान जी का आर्शीवाद प्राप्त होगा। इसलिए इस दिन सुबह जल्दी उठकर घर की साफ-सफाई करें और स्नान कर साफ कपड़े पहनें। इसके बाद एक चौकी पर गंगा जल छिड़क कर उसे पवित्र करें और उस पर लाल रंग का कपड़ा बिछा दें। चौकी पर राम, सीता और हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित करें। उनकी प्रतिमा के सामने दिया जलाएं। उसके बाद हनुमान चालीसा, हनुमान जी का मंत्र और रामचरित मानस का पाठ जरूर करें। इसके बाद हनुमान जी की आरती उतारें और उन्हे गुड़ और चने के प्रसाद का भोग लगाएं । साथ ही पूजा के दौरान हुई गलतियों के लिए भगवान से क्षमा मांग लें। 

हनुमान जी के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा

हनुमान जी को भगवान शिव का 11 वां रूद्र अवतार माना जाता है। पुराणों में हनुमान जी के जन्म के विषय में वर्णन मिलता है। इस कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय निकले अमृत के लिए देवता तथा असुरों में युद्ध होने लगा। उसी समय भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर लिया। भगवान विष्णु के इस रूप पर असुर तथा देवता दोनों मोहित हो गए। उसी समय शिवजी ने कामातुर हो कर वीर्य त्याग कर दिया। उस वीर्य को पवनदेव ने वानर राज केसरी की पत्नी अंजनी के गर्भ में प्रविष्ट कर दिया। इससे माता अंजनी के गर्भ से संकटमोचन हनुमान जी का जन्म हुआ।

पिता केसरी को मिले आर्शीवाद से जन्म लिए हनुमान 

हनुमान जी के जन्म से सम्बन्धित एक दूसरी कथा भी प्रचलित है। उस कथा के अनुसार देवताओं के राजा इंद्र के दरबार में एक बहुत सुंदर अप्सरा थीं उनका नाम पुंजिकस्थली था। एक बार जब दुर्वासा ऋषि इंद्र के दरबार में आए तो वह पुंजिकस्थली बार-बार दरबार में अंदर-बाहर करने लगी। इससे दुर्वासा ऋषि बहुत क्रुद्ध हुए और उन्होंने अप्सरा को वानरी होने के श्राप दे दिया। तब अप्सरा ने ऋषि से क्षमा मांगी। कुछ समय बाद पुंजिकस्थली ने वानरों में श्रेष्ठ विरज की पत्नी के गर्भ से वानरी के रूप में जन्म लिया जिसका नाम अंजनी रखा गया। अंजनी का विवाह केसरी नामक के वनराज से कर दिया गया। 

एक बार वनराज केसरी प्रभास तीर्थ गए। वहां कुछ ऋषि तपस्या कर रहे थे तभी वहां एक हाथी आया और वह ऋषियों को परेशान करने लगा। तभी केसरी आए और उन्होंने हाथी का दांत तोड़ दिया। इससे ऋषि प्रसन्न हुए और उन्होंने केसरी को वरदान मांगने को कहा। तब केसरी ने बलशाली, पराक्रमी तथा प्रभु की इच्छानुसार रूप बदलने वाले पुत्र की कामना व्यक्त की। तब ऋषियों में आर्शीवाद दिया जिसके परिणामस्वरूप हनुमान जी का जन्म हुआ।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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