जानें होली पर्व की 'पौराणिक कथा' और बुराई की प्रतीक होलिका की 'प्रेम' कहानी
होली की कथा असल में पौराणिक काल से जुड़ी हुई है और पौराणिक काल में तब हिरण्यकश्यप नामक एक असुर रहा करता था। वह असुर बेहद ताकतवर था और अपनी सामर्थ्य से उसने तीनों लोकों में विजय पताका फहरा रखी थी।
होली भारतीय जनमानस के लिए एक सर्व स्वीकृत त्यौहार है। क्या गरीब, क्या अमीर, क्या छोटा, क्या बड़ा, हर कोई होली इस कदर खेलता है, मानो सभी एक ही रंग में रंगे नजर आते हैं। भारत में होली को प्रेम, सद्भाव और भाईचारे के उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पौराणिक समय से होली की क्या कथा प्रचलित है? आइये जानते हैं...
यह कहानी असल में पौराणिक काल से जुड़ी हुई है और पौराणिक काल में तब हिरण्यकश्यप नामक एक असुर रहा करता था। वह असुर बेहद ताकतवर था और अपनी सामर्थ्य से उसने तीनों लोकों में विजय पताका फहरा रखी थी। ऋषि मुनि उसके भय से कांपते थे, तो देवता भी उसके सामने आने का साहस नहीं कर सकते थे, फिर मनुष्यों की बात ही कौन कहे!
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तीनों लोकों में उसके अत्याचार से त्राहिमाम-त्राहिमाम मच गया था और उसका अत्याचार दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा था। ऐसा इसलिए भी था कि भगवान से उसे लगभग अजेय होने का वरदान प्राप्त था। इसलिए निर्भय होकर वह अपने कुकर्मों को बढ़ाता जा रहा था। उसकी ताकत का आलम यह था कि वह खुद को ब्रह्माण्ड में श्रेष्ठ समझता था और भगवान विष्णु को लगातार अपशब्द कहता रहता था।
तभी हिरण्यकश्यप को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और उस पुत्र का नाम 'प्रहलाद' रखा गया। प्रह्लाद जन्म से ही ज्ञानी थे और भगवान विष्णु के परम भक्त थे। ज्यों ही वह थोड़े बड़े हुए, तब हिरण्यकश्यप को अपने बेटे प्रहलाद के 'विष्णु भक्त' होने का एहसास हो गया । पहले प्यार से समझा बुझाकर हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मनाने की कोशिश की, किंतु प्रहलाद की भक्ति अटल थी। जब समझाने बुझाने का कुछ असर नहीं हुआ, तब हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद पर बल प्रयोग करना शुरू कर दिया।
वह उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित करने लगा। कभी वह प्रह्लाद को भूखे शेर के सामने डलवा देता था, किंतु प्रहलाद की भक्ति के सामने वह शेर भी नतमस्तक हो जाता था। कभी पहाड़ की चोटी से प्रहलाद को नीचे फेंक देता था, किंतु प्रहलाद भगवान का नाम लेते थे और भगवान उनकी हर जगह रक्षा करने को उपस्थित हो जाते थे। तरह-तरह के जतन करके हिरण्यकश्यप हार गया और अंत में उसने अपनी बहन होलिका की मदद मांगी। बता दें कि इसी होलिका के नाम पर होली का त्यौहार मनाया जाता है।
बहरहाल कथा में आगे चलते हैं, तो हम देखते हैं कि होलिका से मदद मांगने पर होलिका अपने भाई हिरण्यकश्यप की मदद करने को तत्पर हो गई। होलिका को ब्रह्म देव द्वारा वरदान प्राप्त था कि आग उसे जला नहीं सकती और अगर आग में वह किसी वस्तु के साथ जाए तो दूसरी वस्तु या दूसरा प्राणी भस्म हो जाएगा, किंतु होलिका को आग छू नहीं सकती थी।
अपने इसी वरदान के आड़ में होलिका ने प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठना स्वीकार कर लिया, किंतु प्रभु की महिमा अपरंपार है! भगवान विष्णु की कृपा से होलिका धू-धू करके आग में जलने लगी, जबकि प्रहलाद आग में वैसे के वैसे सुरक्षित रहे।
यह देखकर तमाम देवताओं ने पृथ्वी पर फूल बरसाए और भक्त प्रहलाद सदा सदा के लिए अमर हो गए और उनकी बहन के जलने की खुशी में ही होलिका दहन आज भी किया जाता है। वहीं बुराई पर अच्छाई की जीत के उपलक्ष्य में हम होली का त्यौहार मनाते हैं।
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कई जगह यह किवदंती भी प्रचलित है कि हिरण्यकश्यप की बहन होलिका 'इजोली' नामक राजकुमार से प्रेम करती थी और कुछ ही दिन बाद ही उनका विवाह होने वाला था। ऐसे में हिरण्यकश्यप द्वारा प्रह्लाद को जलाये जाने के लिए मदद मांगने पर होलिका ने मना कर दिया था, लेकिन हिरण्यकश्यप ने उसे धमकी दी कि अगर वह प्रह्लाद को जलाने में मदद नहीं करेगी, तो वह उसका विवाह इजोली से नहीं होने देगा और इजोली को मार देगा। कहते हैं कि अपने प्यार को बचाने के लिए होलिका आग में बैठ गयी और मौत को स्वीकार कर लिया।
इसके बाद की कथा हम सबको पता ही है कि असुर हिरण्यकश्यप का अत्याचार बढ़ता ही गया और जब वह तलवार लेकर प्रहलाद को मारने दौड़ा, तभी भगवान विष्णु 'नरसिंह' अवतार में प्रकट हुए और हिरण्यकश्यप का वध किया। कहते हैं कि धर्म की रक्षा के लिए भगवान समय-समय पर अवतरित होते रहते हैं और इस समय भी ऐसा ही हुआ।
- विंध्यवासिनी सिंह
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