परिवार की खुशी के लिए मनाया जाता है गोवत्स द्वादशी पर्व
गोवत्स द्वादशी का व्रत निराहार रहा जाता है। इस व्रत में महिलाएं घर आंगन साफ कर पहले उसे लीपती हैं उसके बाद चौक पूरती हैं। उसके बाद गाय स्नान करा कर उसी चौक में गाय को खड़ा किया जाता है। गाय की पूजा की जाती है। पूजा के दौरान चंदन, अक्षत, धूप, दीप नैवैद्य से सजाया जाता है।
कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी कहा है। इसे बछ बारस या बाघ बरस भी कहा जाता है। इस दिन गाय और बछड़े की पूजा होती है तो आइए हम आपको गोवत्स द्वादशी के बारे में कुछ खास जानकारी देते हैं।
जानें गोवत्स द्वादशी के बारे में
गोवत्स द्वादशी के दिन गाय तथा बछेडे की पूजा करने का खास महत्व है। द्वादशी के दिन अगर घर में गाय और बछड़ा न मिले तो आसपास किसी गाय की पूजा की जानी चाहिए। इसके अलावा मिट्टी के भी गाय और बछड़े की पूजा की जाती है। गोवत्स द्वादशी के दिन यह पूजा गोधुली बेला में की जाती है। ऐसा माना जाता है कि सभी देवी-देवताओं एवं अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए गौसेवा से बढ़कर कोई पूजा नहीं है। गोवत्स द्वादशी की महत्ता के कारण ही अपने संतान की सलामती तथा परिवार की खुशहाली के लिए यह पर्व मनाती है। इस त्यौहार पर लोग अपने घरों में बाजरे की रोटी और अंकुरित अनाज की सब्जी बना कर खाते हैं और खुशियां मनाते हैं।
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गोवत्स द्वादशी का महत्व
ऐसी मान्यता है कि गोवत्स द्वादशी की पूजा से संतान सुख की प्राप्ति होती है। यह निःसंतान दम्पत्तियों हेतु विशेष फलदायी होता है। गोवत्स द्वादशी के दिन सदैव सात्त्विक गुणों वाले कर्म करने चाहिए। गोवत्स द्वादशी के दिन गाय माता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए गाय की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि गाय की पूजा करने से विष्णु भगवान प्रसन्न होकर आर्शीवाद देते हैं।
गोवत्स द्वादशी पर ऐसे करें पूजा
गोवत्स द्वादशी का व्रत निराहार रहा जाता है। इस व्रत में महिलाएं घर आंगन साफ कर पहले उसे लीपती हैं उसके बाद चौक पूरती हैं। उसके बाद गाय स्नान करा कर उसी चौक में गाय को खड़ा किया जाता है। गाय की पूजा की जाती है। पूजा के दौरान चंदन, अक्षत, धूप, दीप नैवैद्य से सजाया जाता है। पूजा में धान का इस्तेमाल कभी ना करें। इस दिन खाने में चने की दाल बनायी जाती है। व्रत करने वाली स्त्रियां गोवत्स द्वादशी के दिन गेहूं, चावल जैसे अनाज नहीं खा सकती हैं। साथ ही व्रती को दूध तथा उससे बनी चीजों से भी परहेज किया जाता है।
गोवत्स द्वादशी से जुड़ी कथा
बहुत पहले भारत में सुवर्णपुर नाम का एक शहर था। उसमें देवदानी राजा राज्य करते थे। उनकी दो रानियां थी सीता और गीता। इसके अलावा एक गाय और भैंस भी थी। सीता को भैंस से बहुत लगाव था जबकि गीता को गाय और बछड़े से प्यार था। एक दिन भैंस ने सीता से कहा कि "गाय, बछडा़ होने पर गीता रानी मुझसे ईर्ष्या करती है।" इस पर सीता ने बछड़े को काट कर गेहूं के नीचे दबा दिया। जब राजा खाना खाने लगे तभी खून और मांस बरसने लगा। राजा की थाली से गंदी बदबू आने लगी। यह सब देखकर राजा बहुत परेशान हुए। इसी समय आकाशवाणी हुई कि राजा आपके राज्य में बछड़े को मारा गया है। अगर आप गोवत्स द्वादशी के दिन गाय और बछड़े की पूजा करते हैं तो यह पाप मिट जाएंगे और सब पहले जैसा हो जाएगा।
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गोवत्स द्वादशी का शुभ मुहूर्त
इस साल गोवत्स द्वादशी 24 अक्टूबर रात 10 बजकर 19 मिनट से शुरू हो रहा है। शुभ मुहूर्त 25 अक्टूबर सायं काल 7 बजकर 8 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा गोवत्स द्वादशी का शुभ मुहूर्त शाम 05.42 से 08.15 तक है। इस समय पूजा करना आपके लिए फलदायी होता है।
प्रज्ञा पाण्डेय
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