NASA Astronaut Sunita Williams धरती पर तो सुरक्षित लौट आईं, मगर आते ही उन्हें इन दिक्कतों ने घेर लिया है!

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आज तड़के जैसे ही सुनीता वापस लौटीं पूरे भारत में जश्न का माहौल और सुनीता के पैतृक गांव गुजरात के मेहसाणा में दीवाली मनाई जाने लगी। नासा ने यह तो बता दिया है कि सुनीता स्वस्थ्य हैं लेकिन अभी उन्हें पूरी तरह से यहां के माहौल में ढलने में कुछ वक्त लगेगा।

नासा की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स ने धरती पर सुरक्षित वापस लौट कर नया इतिहास रच दिया है साथ ही उनकी वापसी से पूरी दुनिया में जो खुशी की लहर देखी जा रही है वह यह भी दर्शा रही है कि विज्ञान की कामयाबी का जश्न पूरी दुनिया एकजुट होकर मना रही है। भारत में तो कल से ही सुनीता की सुरक्षित वापसी के लिए हवन-पूजन चल रहा था। आज तड़के जैसे ही सुनीता वापस लौटीं पूरे भारत में जश्न का माहौल और सुनीता के पैतृक गांव गुजरात के मेहसाणा में दीवाली मनाई जाने लगी। नासा ने यह तो बता दिया है कि सुनीता स्वस्थ्य हैं लेकिन अभी उन्हें पूरी तरह से यहां के माहौल में ढलने में कुछ वक्त लगेगा। सुनीता ने जो किया उस पर पूरी दुनिया को खासतौर पर हर भारतीय को बेहद गर्व है। आइये इस रिपोर्ट के माध्यम से उनके जीवन और उनकी कामयाबियों पर एक नजर डालते हैं फिर आपको बताएंगे कि वह फिलहाल किन तकनीकी दिक्कतों का सामना कर रही हैं। उसके बाद आपको बताएंगे गुजरात के मेहसाणा में मनाई जा रही दीवाली के बारे में।

सुनीता विलियम्स के कॅरियर पर एक नजर

यूं तो सुनीता विलियम्स पहले भी दो बार अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन जा चुकी हैं लेकिन शायद ही उन्होंने यह कल्पना की होगी कि तीसरी बार अंतरिक्ष में जाने के बाद उन्हें वापसी के लिए लंबा इंतजार करना होगा और यह घटना इतिहास के पन्नों में दर्ज होगी। नासा के अंतरिक्षयात्री बुच विल्मोर और सुनीता विलियम्स नौ महीने अंतरिक्ष में रहने के बाद भारतीय समयानुसार बुधवार तड़के पृथ्वी पर लौट आए। सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर ने दो अन्य अंतरिक्षयात्रियों के साथ स्पेसएक्स यान पर सवार होकर अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को अलविदा कहा। भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स की यह तीसरी अंतरिक्ष उड़ान थी और उन्होंने अंतरिक्ष में कुल 608 दिन बिताए हैं।

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हम आपको बता दें कि पूर्व अमेरिकी नौसैन्य कप्तान सुनीता विलियम्स (59) का जन्म 19 सितंबर 1965 को यूक्लिड, ओहियो में हुआ था। उनके पिता दीपक पांड्या गुजरात के मेहसाणा जिले के झूलासन से ताल्लुक रखते हैं तथा मां उर्सुलाइन बोनी पांड्या स्लोवेनिया से हैं। अपनी बहु-सांस्कृतिक जड़ों पर गर्व करते हुए विलियम्स अपने साथ अंतरिक्ष में अपनी विरासत के प्रतीक ले जा चुकी हैं, जिनमें समोसे, स्लोवेनियाई ध्वज और भगवान गणेश की मूर्ति शामिल हैं। पिछले वर्ष जून में बुच विल्मोर के साथ अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए अपने तीसरे मिशन पर रवाना हुईं विलियम्स ने एक महिला द्वारा अंतरिक्ष में सर्वाधिक चहलकदमी किए जाने का रिकॉर्ड बनाकर इतिहास रच दिया। उनका यह तीसरा मिशन 286 दिन का रहा। सुनीता विलियम्स के नाम संबंधित मिशन क्रम में अब 62 घंटे और नौ मिनट का अतिरिक्त सक्रिय समय दर्ज है, जिससे उन्होंने पूर्व अंतरिक्ष यात्री पैगी व्हिटसन के 60 घंटे और 21 मिनट के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया है।

सुनीता विलियम्स को बचपन से ही विज्ञान में रुचि थी, लेकिन उनका सपना पशु चिकित्सक बनना था। उनके भाई जय का अमेरिकी नौसेना अकादमी में चयन हुआ था और वहां जाने के बाद सुनीता ने नौसेना अधिकारी बनने का सपना देखा। यह वह समय था जब महशूर अभिनेता टॉम क्रूज अभिनीत ‘टॉप गन’ धूम मचा रही थी। जब विलियम्स को नौसेना विमानन प्रशिक्षण कमान में शामिल होने का अवसर मिला तो वह लड़ाकू विमान उड़ाना चाहती थीं लेकिन उन्हें हेलीकॉप्टर का विकल्प चुनना पड़ा। वह 1989 में नौसेना एविएटर बनीं और उन्होंने नॉरफ़ॉक, वर्जीनिया में ‘हेलिकॉप्टर कॉम्बैट सपोर्ट स्क्वाड्रन 8’ में सेवा दी, इसके अलावा उनकी तैनाती ‘डेजर्ट शील्ड’ और ‘ऑपरेशन प्रोवाइड कम्फर्ट’ के समर्थन में भूमध्य सागर, लाल सागर और फारस की खाड़ी में भी की गई। विलियम्स ने सैनिकों और मानवीय सहायता के परिवहन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा उनके नेतृत्व कौशल और विषम परिस्थितियों में कार्य करने की क्षमता ने उन्हें भविष्य के अंतरिक्ष यात्री के रूप में अग्रसर किया।

सुनीता विलियम्स को 1998 में नासा ने अंतरिक्ष यात्री के रूप में चुना और उन्होंने ‘जॉनसन स्पेस सेंटर’ में प्रशिक्षण लिया। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में रूसी अंतरिक्ष एजेंसी के साथ भी काम किया। वह नौ दिसंबर 2006 को ‘अंतरिक्ष शटल डिस्कवरी’ पर सवार होकर अपने पहले मिशन पर रवाना हुईं और आईएसएस अभियान 14 और 15 में शामिल होकर 195 दिनों के लिए कक्षा में रहीं। सुनीता विलियम्स 17 जुलाई 2012 को रूसी अंतरिक्ष यान सोयूज पर सवार होकर अंतरिक्ष स्टेशन पर चार महीने के प्रवास के बाद वापस आईं और 19 नवंबर को पृथ्वी पर लौट आईं। वह 16 अप्रैल 2007 को अंतरिक्ष में मैराथन दौड़ने वाली पहली व्यक्ति बनीं। उन्होंने अंतरिक्ष स्टेशन पर ट्रेडमिल पर बोस्टन मैराथन चार घंटे और 24 मिनट में पूरी की। वह 2012 में अपनी दूसरी अंतरिक्ष उड़ान के दौरान अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन का नेतृत्व करने वाली एकमात्र दूसरी महिला बनीं। उन्होंने स्टेशन के संचालन की देखरेख की, कक्षा में एक ट्रायथलॉन पूरा किया, और अंतरिक्ष में चहलकदमी के दौरान सूर्य को आभासी तौर पर ‘‘स्पर्श’’ करती हुई एक तस्वीर भी खींची। सुनीता विलियम्स ने अपने अंतरिक्ष मिशन के तुरंत बाद 2007 और 2013 सहित कम से कम तीन बार भारत का दौरा किया है और उन्हें 2008 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। हम आपको यह भी बता दें कि इस महीने की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विलियम्स को एक पत्र लिखकर उन्हें भारत की बेटी बताया था और देश आने का निमंत्रण दिया था। सुनीता के पति माइकल जे. विलियम्स संघीय पुलिस अधिकारी हैं।

अंतरिक्ष यात्रियों को लौट कर क्या परेशानी होती है?

हम आपको बता दें कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के अंदर अंतरिक्ष यात्रियों को हवा में तैरते देखना भले ही मजेदार लगता हो, लेकिन वहां गुरुत्वाकर्षण नहीं होने का असर धरती पर लौटने के बाद अंतरिक्ष यात्रियों पर लंबे समय तक रहता है और उन्हें मतली, चक्कर आने, बात करने और चलने में दिक्कत जैसी चुनौतियों से जूझना पड़ता है। विभिन्न अंतरिक्ष मिशन के तहत यात्रा कर चुके कई अंतरिक्ष यात्रियों ने पृथ्वी पर लौटने के बाद चलने में कठिनाई, देखने में दिक्कत, चक्कर आने तथा ‘बेबी फीट’ नामक स्थिति जैसी चुनौतियों का सामना करने की बात कही है। ‘बेबी फीट’ का तात्पर्य है कि अंतरिक्ष यात्रियों के तलवों की त्वचा का मोटा हिस्सा निकल जाता है और उनके तलवे बच्चे की तरह मुलायम हो जाते हैं। ह्यूस्टन स्थित ‘बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन’ ने अंतरिक्ष में शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में कहा, ‘‘जब अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी पर वापस लौटते हैं तो उन्हें पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के अनुसार तुरंत फिर से ढलना पड़ता है। उन्हें खड़े होने, अपनी दृष्टि को स्थिर करने, चलने और मुड़ने में समस्या हो सकती है। पृथ्वी पर लौटने वाले अंतरिक्ष यात्रियों को उनकी बेहतरी के लिए पृथ्वी पर लौटने के तुरंत बाद अक्सर एक कुर्सी पर बिठाया जाता है।’’ अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी पर जीवन के अनुसार स्वयं को फिर से ढालने में कई सप्ताह लगते हैं। कान के अंदर स्थित ‘वेस्टिबुलर’ अंग मस्तिष्क को गुरुत्वाकर्षण के बारे में जानकारी भेजकर पृथ्वी पर चलते समय मनुष्यों को अपने शरीर को संतुलित रखने में मदद करता है।

जापानी अंतरिक्ष एजेंसी ‘जेएएक्सए’ ने कहा, ‘‘अंतरिक्ष में कम गुरुत्वाकर्षण के कारण ‘वेस्टिबुलर’ अंगों से प्राप्त होने वाली जानकारी में बदलाव आता है। ऐसा माना जाता है कि इससे मस्तिष्क भ्रमित हो जाता है और ‘स्पेस सिकनेस (अंतरिक्ष में यात्रा करने वाले कई लोगों को होने वाली स्वास्थ्य संबंधी दिक्कत) हो जाती है। जब आप पृथ्वी पर वापस आते हैं, तो आप पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के प्रभावों का फिर से अनुभव करते हैं और इस प्रकार कभी-कभी ‘ग्रैविटी सिकनेस’ हो जाती है, जिसके लक्षण ‘स्पेस सिकनेस’ जैसे ही होते हैं।’’ दरअसल पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण रक्त और अन्य शारीरिक तरल पदार्थों को शरीर के निचले हिस्से की ओर खींचता है, लेकिन अंतरिक्ष में भारहीनता के कारण अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर में ये तरल पदार्थ शरीर के ऊपरी हिस्सों में जमा हो जाते हैं और इसी कारण वे फूले हुए नजर आते हैं। जेएएक्सए ने कहा, ‘‘पृथ्वी पर लौटने वाले अंतरिक्ष यात्रियों को खड़े होने पर अक्सर चक्कर आते हैं। इस स्थिति को ‘ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन’ कहा जाता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण अंतरिक्ष की तुलना में अधिक मजबूत होता है और हृदय से सिर तक रक्त पहुंचना अधिक कठिन होता है।’’ गुरुत्वाकर्षण की कमी के कारण हड्डियों के घनत्व में काफी और अक्सर अपूरणीय कमी आती है।

नासा के अनुसार, अगर अंतरिक्ष यात्री इस कमी को दूर करने के लिए सावधानी नहीं बरतते हैं, तो वजन सहन करने वाली हड्डियों का घनत्व अंतरिक्ष में हर महीने करीब एक प्रतिशत कम हो जाता है। इस समस्या से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर अंतरिक्ष यात्रियों के लिए एक सख्त व्यायाम व्यवस्था है। नासा ने कहा, ‘‘अंतरिक्ष यात्रियों को शून्य गुरुत्वाकर्षण के कारण हड्डियों और मांसपेशियों को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए ‘ट्रेडमिल’ या स्थिर साइकिल का उपयोग करके प्रतिदिन दो घंटे व्यायाम करना आवश्यक है। यह व्यायाम नहीं करने पर अंतरिक्ष यात्री महीनों तक अंतरिक्ष में तैरने के बाद पृथ्वी पर लौटने के बाद चलने या खड़े होने में असमर्थ रहेंगे।’’ कनाडाई अंतरिक्ष यात्री क्रिस हैडफील्ड ने बताया कि उन्हें अंतरिक्ष में जीभ के भारहीन होने के कारण 2013 में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से लौटते पर बात करते समय दिक्कत हुई। हैडफील्ड ने कहा, ‘‘पृथ्वी पर लौटने के तुरंत बाद मैं अपने होठों और जीभ का वजन महसूस कर सकता था और मुझे अपनी बातचीत का तरीका बदलना पड़ा। मुझे एहसास ही नहीं हुआ था कि मुझे भारहीन जीभ से बात करने की आदत हो गई थी।’’ रोग प्रतिरोधी क्षमता कमजोर हो जाने के कारण पृथ्वी पर लौटने पर अंतरिक्ष यात्रियों को संक्रमण और बीमारी का खतरा भी अधिक रहता है।

गुजरात में दीवाली

दूसरी ओर, नासा की अंतरिक्षयात्री सुनीता विलियम्स के धरती पर लौटने पर बुधवार सुबह गुजरात के मेहसाणा जिले में उनके पैतृक गांव में जश्न का माहौल रहा। झूलासन के सभी लोग टेलीविजन पर इस घटना का सीधा प्रसारण देखने के लिए गांव के मंदिर में एकत्र हुए। सभी की निगाहें सुनीता की सुरक्षित वापसी पर टिकी थीं। सुनीता विलियम्स और अन्य अंतरिक्षयात्रियों को लेकर कैप्सूल रूपी यान जैसे ही उतरा, ग्रामीणों ने आतिशबाजी शुरू कर दी और ‘हर हर महादेव’ के जयकारे लगाते हुए हर कोई झूमने लगा। गांववाले सुनीता की सुरक्षित वापसी का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। उनकी सुरक्षित वापसी के लिए मंदिर में ग्रामीणों ने यज्ञ किया और प्रार्थना की। ग्रामीणों ने कहा कि उन्होंने सुनीता की सुरक्षित वापसी के लिए मंदिर में अखंड ज्योति जलाई। लगभग नौ माह तक अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में रहने के बाद जब सुनीता की वापसी जल्द होने की खबर आई तो तभी से झूलासन में उत्साह का माहौल बना हुआ था। उनके नजदीकी रिश्तेदार नवीन पांड्या ने कहा कि गांव के लोगों ने सुनीता की सुरक्षित वापसी के लिए प्रार्थना की और अखंड ज्योति जलाई।

उन्होंने कहा कि गांववालों ने उनके सम्मान में एक भव्य जुलूस की योजना बनाई है। गांव में दीपावली और होली जैसा उत्साह बनाने के लिए प्रार्थना सभा होगी और आतिशबाजी की जाएगी। पांड्या ने कहा कि गांव के स्कूल से मंदिर तक जुलूस निकाला जाएगा जिसमें छात्र भी शामिल होंगे। उन्होंने कहा कि जुलूस के मंदिर पहुंचने के बाद अखंड ज्योति को विसर्जित कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि गांववाले सुनीता को झूलासन में आमंत्रित करने के लिए उत्सुक हैं। उनके पिता दीपक पांड्या मूल रूप से झूलासन से थे और 1957 में अमेरिका चले गए थे। झूलासन प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य विशाल पांचाल ने कहा कि बुधवार के जश्न के लिए व्यापक व्यवस्था की गई है।

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