अफ्रीका में एक बैरिस्टर से महानायक में परिवर्तित हुए मोहन दास करम चंद गांधी
गांधीजी को जानने के लिए अफ़्रीका की कहानी जाने बिना समझना असंभव है। यहीं उनका मानव से महामानव में रूपांतरण हुआ। गांधीजी जब भारत लौटे तो वे भी जानते थे कि उन्हें इन सोए हुए 33 करोड़ लोगों को एक दिन में जगाना संभव नहीं होगा।
अफ्रीका में गांधी का निर्माण हुआ और वे एक बैरिस्टर से महानायक में परिवर्तित हुए। उसमें सबसे बड़ी भूमिका भारत के उस समाज की थी जिसे 'कांट्रेक्चुअल खेती' करने वाले अंग्रेज एक एग्रीमेंट के तहत मजदूर बनाकर ले गए थे। भारत के यह बिना पढ़े लिखे मजदूर एक एग्रीमेंट पर दस्तखत करने के कारण कितनी यातनाओं से गुजरे, यह कहानी ही गांधी के रूपांतरण की कहानी है।
जो मजदूर खदानों और गन्ने के खेतों में काम कर रहे थे, वे उन्होंने एक कान्ट्रेक्ट के तहत एक कागज के टुकड़े जिस दस्तखत कर दिये थे। इस दस्तावेज को वे गिरमिट कहते थे। जो व्यक्ति गिरमिट पर अपनी सही करता था वह गिरमिटिया कहलाने लगा। इस तरह गिरमिटिया एक कौम बन गयी थी। दक्षिण अफ्रीका से लेकर सूरीनाम, मॉरीशस, फ्रेंच गयाना, सेनेगल आदि में लाखों लोग पेट भरने की जुगाड़ में, पानी के जहाजों में सामान की तरह ठूंस ठूंसकर इन देशों में भेजे गए। ये लाखों लोग इतनी अमानवीय परिस्थितियों में ढोये जाते थे कि हजारों लोग समुद्री बीमारियों से ही मर जाते थे।
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इन परिस्थितियों में अफ्रीका में गांधी गिरमिटियों के नेता बने। उन्होंने गिरमिटियों पर थोपे गए नए नए कानूनों, प्रताड़ना के नए-नए तरीकों और जबरन लगाए जाने वाले नए नए टैक्सों का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने यहीं पर भारत को समझा और उसे भारत में आकर भारत पर लागू किया। एक सोए हुए देश की आत्मचेतना को जगाया और उसके अंदर इस अपमानजनक जीवन से बाहर निकलने के लिए आजादी की आकांक्षा जगाई।
गांधीजी को जानने के लिए अफ़्रीका की कहानी जाने बिना समझना असंभव है। यहीं उनका मानव से महामानव में रूपांतरण हुआ। गांधीजी जब भारत लौटे तो वे भी जानते थे कि उन्हें इन सोए हुए 33 करोड़ लोगों को एक दिन में जगाना संभव नहीं होगा। इसलिए उन्होंने भारत में तीन साल भ्रमण करने के बाद 'व्यक्तिगत सत्याग्रह' जैसे हथियार को विकसित किया।
यह व्यक्तिगत सत्याग्रह क्या था? एक सत्याग्रही तिरंगा झंडा लेकर आगे चलता था, वंदे मातरम के नारे लगाता था, भारत माता की जय बोलता था और उसे छोड़ने के लिये कहीं सौ-दो सौ लोग जाते थे। अंग्रेजी पुलिस इस नारे लगाने वाले सत्याग्रही को डंडो से पीटती थी और कहती थी कि झंडा छोड़ दो। सत्याग्रही तब तक झंडा नहीं छोड़ता था, जब तक कि वह पिटते-पिटते गिर ना जाए। उसके गिरने के पहले ही भीड़ से कोई दूसरा सत्याग्रही झंडा थाम लेता था। इस तरह से वे समूह में निकल कर व्यक्तिगत सत्याग्रह करते थे।
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अंग्रेजी दमन चक्र से गुजर कर भारत की जनता को आजादी के संघर्ष के लिए गांधी जी ने ऐसे तैयार किया।
इस जुल्म को देखकर ही लाखों नौजवानों में आग धधकी कि भारत माता के पांव की बेड़ियों को वह काट कर ही रहेंगे। गांधी ने उस सोये हुये देश को जिसमें लोग कहते थे कि 'कोई नृप होये हमें का हानि', उस देश में यह संकल्प जगाने में सफल हुए, कि राजा अब हमारी पसंद का होगा, सरकार हमारी पसंद की होगी। खेतों और खलिहानों में मजदूरी करते ये हाथ ही तय करेंगे कि उनका भारत कैसा हो?
-भूपेन्द्र गुप्ता
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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