राष्ट्र ध्वज, राष्ट्रगान, राष्ट्रीय गीत आदि के बारे में कितना जानते हैं आप?
प्रतिवर्ष 15 अगस्त को पूरा देश आज आजादी के जश्न में डूब जाता है। क्योंकि इसी दिन साल 1947 में अंग्रेजों की लंबी गुलामी के बाद भारत ने आजाद हवा में राहत भरी सांस ली और आजादी की सुबह का सूरज देखा। दरअसल, स्वतंत्रता दिवस के साथ एक परंपरा भी जुड़ी है।
भारत के राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रगान, राष्ट्रीय गीत सहित इस दिवस से जुड़ी हर बातों, हर चीजों और हरेक प्रतीक चिन्हों के बारे में लोग गहनता पूर्वक जानना चाहते हैं। 15 अगस्त को लाल किले पर ही तिरंगा झंडा क्यों फहराया जाता है? देश के प्रधानमंत्री ही झंडा क्यों फहराते है? राष्ट्र-गान और राष्ट्रीय ध्वज से जुड़ी वो खास बातें क्या क्या हैं जो हर भारतीय को पता होनी चाहिए। राष्ट्रीय गीत क्या है और इसे कब बजाना चाहिए। इन सभी बातों को हम आपको बताएंगे, ताकि आप इसके हरेक अनछुए पहलुओं से अपडेट रह सकें।
राष्ट्रीय गीत क्या है और इसे कब बजाना चाहिए?
भारत का राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम्' है। इसके रचयिता बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय हैं। उन्होंने इसकी रचना साल 1882 में संस्कृत व बांग्ला मिश्रित भाषा में किया था। यह स्वतंत्रता की लड़ाई में लोगों के लिए प्रेरणा का अजस्र स्रोत था। इसे भी भारत के राष्ट्रगान 'जन-गण-मन' के बराबर का ही दर्जा प्राप्त है। इसे पहली बार साल 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र में गाया गया था। इस राष्ट्रीय गीत की अवधि लगभग 52 सेकेंड है। राष्ट्रीय गीत कुछ इस प्रकार है:-
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्,
शस्यश्यामलाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्!
शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्॥
इस राष्ट्रीय गीत का हिंदी अनुवाद यह है कि
मैं आपके सामने नतमस्तक होता हूं। ओ माता,
पानी से सींची, फलों से भरी,
दक्षिण की वायु के साथ शांत,
कटाई की फसलों के साथ गहरा,
माता!
उसकी रातें चांदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही है,
उसकी जमीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुंदर ढकी हुई है,
हंसी की मिठास, वाणी की मिठास,
माता, वरदान देने वाली, आनंद देने वाली।
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हालांकि, 'वंदे मातरम्' पर विवाद है। यह विवाद बहुत पहले से चला आ रहा है। इसका चयन राष्ट्रगान के तौर पर हो सकता था, लेकिन कुछ मुसलमानों के विरोध के कारण इसे राष्ट्रगान का दर्जा नहीं मिला। एक प्रकार से यह तुष्टिकरण की नीति रही। दरअसल, मुसलमानों का कहना था कि इस गीत में मां दुर्गा की वंदना की गई है और उन्हें राष्ट्र के रूप में देखा गया है, जबकि इस्लाम में किसी व्यक्ति या वस्तु की पूजा करना गलत माना गया है। इसलिए तत्कालीन नेहरू सरकार ने इसे राष्ट्रगान का दर्जा नहीं दिया। इसे राष्ट्रीय महत्व के हर मौके पर बजाया जाता है।
# भारत का राष्ट्रगान क्या है? इसे कब-कब गाया जाता है? राष्ट्रगान बजते समय क्या क्या सावधानी बरतनी चाहिए।
'राष्ट्रगान' किसी भी देश की वो धरोहर होती हैं, जिससे उस राष्ट्र की पहचान जुड़ी हुई होती है। प्रत्येक राष्ट्र के 'राष्ट्रगान' से राष्ट्रभक्ति की भावना की अभिव्यक्ति होती है। स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं भारत के 'राष्ट्रगान' के बारे में, जिससे देश के अधिकतर लोग अभी भी अंजान हैं। तो चलिए जानते हैं भारत के राष्ट्रगान के बारे में...
# क्या है भारत का राष्ट्रगान
"जन-गण-मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य विधाता।
पंजाब-सिंधु-गुजरात-मराठा
द्राविड़-उत्कल-बंग
विंध्य हिमाचल यमुना गंगा
उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशीष मांगे
गाहे तव जय-गाथा।
जन-गण-मंगलदायक जय हे भारत भाग्य विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।"
यह भारत का राष्ट्रगान है, जिसे अनेक अवसरों पर बजाया या गाया जाता है। इसकी रचना प्रख्यात कवि रविंद्रनाथ टैगोर ने की थी। यह मूल रूप से बांग्ला भाषा में लिखा गया था, लेकिन बाद में इसका हिंदी और अंग्रेजी भाषा में भी अनुवाद कराया गया और संविधान सभा द्वारा 24 जनवरी, 1950 को इसे स्वीकार किया गया। रविंद्रनाथ टैगोर ने राष्ट्रगान की रचना वर्ष 1911 में ही कर ली थी। इसे पहली बार 27 दिसंबर, 1911 को कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठक में गाया गया था। राष्ट्रगान के पूरे संस्करण को गाने में कुल 52 सेकेंड का समय लगता है।
इससे जुड़ी खास बात यह है कि राष्ट्रगान बजते समय ये सावधानी बरतना न भूलें। क्योंकि अधिकतर लोगों को नहीं पता होता कि राष्ट्रगान बजते समय क्या सावधानी बरतनी चाहिए। मसलन, राष्ट्रगान जब भी कहीं बजाया जाता है तो देश के प्रत्येक नागरिक का ये परम पावन कर्तव्य होता है कि वो अगर कहीं बैठा हुआ है तो उस जगह पर ही खड़ा हो जाए और सावधान मुद्रा में रहे। साथ ही नागरिकों से ये भी अपेक्षा की जाती है कि वो भी राष्ट्रगान को दोहराएं।
# जानिए क्या है राष्ट्रगान 'जन-गण-मन' का अर्थ
राष्ट्रगान वैसे तो मूल रूप से बांग्ला भाषा में लिखा गया था, जिसमें सिंध का भी नाम था। लेकिन बाद में इसमें संशोधन कर सिंध की जगह सिंधु कर दिया गया, क्योंकि देश के विभाजन के बाद सिंध पाकिस्तान का एक अंग हो चुका था। राष्ट्रगान के अंग्रेजी संस्करण से अगर हम इसे हिंदी में अनुवादित करें तो इसका मतलब होता है...
'सभी लोगों के मस्तिष्क के शासक, कला तुम हो,
भारत की किस्मत बनाने वाले।
तुम्हारा नाम पंजाब, सिन्धु, गुजरात और मराठों के दिलों के साथ ही बंगाल, ओडिसा, और द्रविड़ों को भी उत्तेजित करता है,
इसकी गूंज विन्ध्य और हिमालय के पहाड़ों में सुनाई देती है।
गंगा और जमुना के संगीत में मिलती है और भारतीय समुद्र की लहरों द्वारा गुणगान किया जाता है।
वो तुम्हारे आशीर्वाद के लिये प्रार्थना करते हैं और तुम्हारी प्रशंसा के गीत गाते हैं।
तुम्हारे हाथों में ही सभी लोगों की सुरक्षा का इंतजार है,
तुम भारत की किस्मत को बनाने वाले।
जय हो जय हो जय हो तुम्हारी।'
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# जानिए, स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले से ही क्यों फहराया जाता है तिरंगा?
प्रतिवर्ष 15 अगस्त को पूरा देश आज आजादी के जश्न में डूब जाता है। क्योंकि इसी दिन साल 1947 में अंग्रेजों की लंबी गुलामी के बाद भारत ने आजाद हवा में राहत भरी सांस ली और आजादी की सुबह का सूरज देखा। दरअसल, स्वतंत्रता दिवस के साथ एक परंपरा भी जुड़ी है। वह यह कि, हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री लाल किले से ही झंडा क्यों फहराते हैं? हर साल की तरह इस बार भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले पर ही झंडा फहराएंगे और देश को संबोधित करेंगे।
आमतौर पर स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले पर झंडा फहराने की परंपरा उतनी ही पुरानी है जितनी पुरानी इस देश की आजादी। अमूमन चर्चा होती है कि आखिर देश के प्रधानमंत्री लाल किले से ही झंडा क्यों फहराते हैं। यानी स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाने के लिए लाल किले को ही क्यों चुना गया? इन सवालों की पीछे कई कारण हो सकते हैं। लेकिन, जब आजाद भारत के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लाल किले से तिरंग फहराया था और उनके निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी आदि प्रधानमंत्रियों ने भी इस परंपरा को जारी रखा और लाल किले से झंडा फहराया था।
वस्तुतः आजादी के लिए संघर्ष का केंद्र रहा है लाल किला। इस परिसर का निर्माण भारत के पांचवें मुगल बादशाह शाहजहां की नई राजधानी-शाहजहांबाद के महल किले के रूप में की गयी थी। तब लाल बलुआ पत्थर की इसकी विशाल घेराबंदी वाली दीवार के कारण इसका नाम लाल किला रखा गया था। इस किला को मुगल सृजनात्मकता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है, जिसे शाहजहां के अधीन परिमार्जन के एक नए स्तर तक स्थापित किया गया था।
दरअसल, लाल किले की इमारत योजना और रूपरेखा पहले मुगल बादशाह द्वारा वर्ष 1526 में शुरू की गई थी। लाल किले में विकसित इमारत घटकों, उद्यान रूपरेखा संबंधी नवीन इमारत योजना व्यवस्था व स्थापत्य शैली ने राजस्थान, दिल्ली, आगरा और आगे दूर तक पश्चातवर्ती इमारतों और उद्यानों को काफी प्रभावित किया। यही नहीं, लाल किला उन घटनाक्रमों का स्थल रहा है जिसने अपनी भू-सांस्कृतिक क्षेत्र पर महत्वपूर्ण रूप से प्रभाव डाला है। 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र भी लाल किला ही था। उस वक्त क्रांतिकारियों का नेतृत्व कर रहे आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर म्यांमार भेज दिया था। तब सुभाष चंद्र बोस ने किया था इस पर कब्जे का आह्वान।।स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस ने रंगून में आजाद हिन्द फौज का गठन किया तो उन्होंने 'दिल्ली चलो' का नारा दिया था और लाल किले पर दोबारा कब्जा हासिल करने का आह्वान किया। कुछ यही वजह है कि 200 सालों की लंबी गुलामी के बाद देश जब आजाद हुआ तब उसका जश्न भी लाल किले पर ही मनाया गया। तब से अब तक यह परंपरा जारी है।
15 अगस्त को ही होता है ध्वजारोहण
दरअसल, जिस दिन से भारत आजाद हुआ, उस दिन से लेकर आजतक भारत के हर प्रधानमंत्री ने लाल किले से ध्वजारोहण किया है। वास्तव में, जिस दिन भारत को आजादी मिली थी उस दिन ब्रिटिश सरकार ने अपना झंडा उतारकर भारत के तिरंगे को उपर चढ़ाया था, इसलिए इस प्रक्रिया को ध्वजारोहण कहा जाता है। तब से यह ध्वजारोहण जारी है और यह दिवस राष्ट्रीय पर्व बन गया है।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार
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