कश्मीर में चिल्लई कलां की शुरुआत, पड़ रही है खून जमा देने वाली ठंड

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कश्मीर में 21 और 22 दिसम्बर की रात से भयानक सर्दी के मौसम की शुरूआत मानी जाती है। करीब 40 दिनों तक के मौसम को चिल्लई कलां कहा जाता है, इसमें अगले चालीस दिन तक बर्फबारी के साथ जमकर ठंड पड़ेगी।

कहा जाता है कि धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यही हैं। जी हाँ, धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो वह है कश्मीर घाटी। आज हम आपको बताएंगे हाड़ कँपकँपा देने वाली ठंड में क्या है लोगों का हाल और बर्फबारी से लोग कितने हैं परेशान। साथ ही जानेंगे कश्मीर में शुरू हो चुके चिल्लई कलां के बारे में। कश्मीर में राजनीतिक और सामाजिक रूप से तो हालात पूरी तरह सामान्य हो चले हैं लेकिन मौसम जरा बेईमान बना हुआ है। खून जमा देने वाली ठंड के बीच वादी-ए-कश्मीर में चिल्लई कलां का आगाज हो चुका है। कश्मीर में 21 और 22 दिसम्बर की रात से भयानक सर्दी के मौसम की शुरूआत मानी जाती है। करीब 40 दिनों तक के मौसम को चिल्लई कलां कहा जाता है, इसमें अगले चालीस दिन तक बर्फबारी के साथ जमकर ठंड पड़ेगी। इस बार हुई बर्फबारी कई सालों के बाद सही समय पर हुई है। नतीजतन कुदरत का समय चक्र तो सुधरा गया लेकिन कश्मीरियों की परेशानियां बढ़ गईं क्योंकि पिछले कई सालों से बर्फबारी समय पर नहीं हो रही थी।

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चिल्लई कलां करीब 40 दिनों तक चलता है और उसके बाद चिल्ले खुर्द और फिर चिल्ले बच्चा का मौसम आ जाता है। चिल्लई कलां के दौरान मौसम खराब रहने के कारण राजमार्ग के बार-बार बंद रहने का परिणाम यह होता है कि कश्मीरियों को चिंता इस बात की रहती है कि उन्हें खाने पीने की वस्तुओं की भारी कमी का सामना किसी भी समय करना पड़ सकता है। पहले चिल्लई कलां के शुरू होने से पहले ही कश्मीरी सब्जियों को सुखा कर तथा अन्य चीजों का भंडारण कर लेते थे। हरिसा और सूखी-सब्जियां अब सारा साल ही कश्मीर में उपलब्ध रहती हैं। चिल्ले कलां में इनकी मांग बढ़ जाती है। पहले यह सर्दियों में मिलती थी। इस समय करेला, टमाटर, शलगम, गोभी, बैंगन समेत कई अन्य सब्जियां और सूखी मछली भी बाजार में आ चुकी हैं। इन्हें स्थानीय लोग गर्मियों में सुखाकर रख लेते हैं ताकि सर्दियों में जब कश्मीर का रास्ता बंद हो जाए तो इनको पकाया जाता है। गोश्त के शौकीनों के लिए हरीसा की दुकानें पूरे कश्मीर में सजने लगी हैं। हरीसा-गोश्त, चावल व मसालों के मिश्रण से तैयार होने वाला विशेष व्यंजन है। हरिसा शरीर को अंदर से गर्म रखने के साथ कैलोरी को भी बनाए रखता है।

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चिल्लई कलां के दौरान कश्मीर में लोगों का पहनावा बदल जाता है। मोटे ऊनी कपड़ों के साथ फिरन पहनने वालों की तादाद बढ़ जाती है। फिरन कश्मीर का पारंपरिक पहनावा है। गर्म कपड़े से बना फिरन कई रंगों में और डिजायनों में उपलब्ध रहता है। इस दौरान फेदर जैकेट और फर जैकेट की मांग बढ़ जाती है। चिल्लई कलां के दौरान वादी में पेयजल आपूर्ति अक्सर प्रभावित होती है। पारा जमाव बिंदु के नीचे चला जाता है। दबाव से पाइप फट जाती हैं। अगर पेयजल आपूर्ति की पाइपें ठीक रहती हैं तो लोगों के घरों में नलों का पानी जमा रहता है। सुबह नौ-दस बजे के बाद ही नलों में पानी का बहाव शुरू होता है। स्थानीय लोग पाइपों को मोटे गर्म कपड़ों के नीचे या फिर घास से ढक कर रखते हैं। कई लोग बाजार में उपलब्ध थर्मोकॉल भी इस्तेमाल करते हैं।

फिलहाल तो श्रीनगर स्थित मौसम विभाग ने कहा है कि अगले तीन-चार दिनों तक जबरदस्त हिमपात की संभावना है। अगले 40 दिनों तक न्यूनतम और अधिकतम तापमान, दोनों में गिरावट आएगी। हिमपात और बारिश भी होगी। लोगों के सामने एक ही विकल्प है कि लकड़ी जला कर हाथ तापा जाये क्योंकि मौसम की मार बिजली आपूर्ति पर भी पड़ती है।

- सुरेश एस डुग्गर

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