साल में सिर्फ रक्षाबंधन के दिन खुलते हैं इस मंदिर के कपाट, जानिए क्या है इसका रहस्य
मंदिर की खासियत यह है कि यहाँ साल में सिर्फ एक दिन ही भक्तों के लिए कपाट खोले जाते हैं। माना जाता है कि साल के बाकी 364 दिन यहाँ यहां देवर्षि नारद भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं। इस मंदिर के कपाट रक्षाबंधन पर ही खोले जाते हैं और उसी दिन सूर्यास्त से पहले बंद भी कर दिए जाते हैं।
भारत में कई प्राचीन और अनोखे मंदिर हैं। कहीं बिना तेल के ज्वाला जलती है तो कहीं प्रसाद के रूप में चायनीज नूल्डस परोसा जाता है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे अनोखे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो साल में केवल रक्षाबंधन के दिन ही खुलता है। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में-
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यह मंदिर चमोली जिले के जोशीमठ विकासखंड की उर्गम घाटी में स्थित है। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहाँ साल में सिर्फ एक दिन ही भक्तों के लिए कपाट खोले जाते हैं। माना जाता है कि साल के बाकी 364 दिन यहाँ यहां देवर्षि नारद भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं। इस मंदिर के कपाट रक्षाबंधन पर ही खोले जाते हैं और उसी दिन सूर्यास्त से पहले बंद भी कर दिए जाते हैं।
भगवान वंशीनारायण मंदिर समुद्रतल से 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवकाल में हुआ था। मंदिर कत्यूरी शैली में बना हुआ है और इसकी ऊँचाई 10 फीट है। इस मंदिर का गर्भगृह वर्गाकार है और मंदिर में स्थापित प्रतिमा में भगवान विष्णु और भोलेनाथ के एक साथ दर्शन होते हैं। इस मंदिर के निर्माण के पीछे भी एक रोचक कथा है।
एक पौराणिक कथा के मुताबिक, एक बार राजा बलि ने भगवान नारायण से आग्रह किया कि वे पाताल लोक की देखरेख संभालें। राजा बलि के कहने पर भगवान नारायण ने पाताल लोक में द्वारपाल की जिम्मेदारी संभाल ली। तब माता लक्ष्मी उन्हें ढूंढते हुए देवर्षि नारद के पास वंशीनारायण मंदिर पहुंचीं और उनसे भगवान नारायण का पता पूछा। तब नारद जी ने माता लक्ष्मी को बताया कि भगवान पाताल लोक में द्वारपाल बने हुए हैं। यह सुनकर माता लक्ष्मी बहुत परेशान हो गईं। तब नारद जी ने उन्हें भगवान नारायण को मुक्त कराने का उपाय बताया।
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देवर्षि नारद ने माता लक्ष्मी से कहा कि आप आप श्रावण मास की पूर्णिमा को पाताल लोक में जाएं और राजा बलि के हाथों में रक्षासूत्र बांधकर उनसे भगवान को वापस मांग लें। तब माता लक्ष्मी ने नारद जी से कहा कि उन्हें पाताल लोक का रास्ता नहीं पता है और उनसे भी साथ चलने को कहा। तब नारद माता लक्ष्मी के साथ पाताल लोक गए और भगवान को मुक्त कराकर ले आए। मान्यता है कि सिर्फ यही दिन था जब देवर्षि नारद वंशीनारायण मंदिर में भगवान की पूजा नहीं कर पाए। उस दिन उर्गम घाटी के कलकोठ गांव के जाख पुजारी ने भगवान वंशी नारायण की पूजा की। तब से यह परंपरा चली आ रही है।
रक्षाबंधन के दिन कलगोठ गांव के प्रत्येक घर से भगवान नारायण के भोग के लिए मक्खन आता है। इस दिन भगवान वंशीनारायण का फूलों से श्रृंगार किया जाता है और श्रद्धालु व स्थानीय ग्रामीण भगवान वंशीनारायण को रक्षासूत्र बांधते हैं।
- प्रिया मिश्रा
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