सिर्फ प्राकृतिक खूबसूरती ही नहीं और भी बहुत कुछ देखने को है जबलपुर में
जबलपुर में विश्व प्रसिद्ध धुआंधार जल प्रपात है। अत्यंत ऊंची पहाड़ियों से जब नर्मदा का जल नीचे गिरता है तब उसका वेग इतना तीव्र होता है कि पानी धुएं के रूप में चारों ओर छा जाता है, इसलिए इस प्रपात का नाम धुआंधार जल प्रपात रखा गया है।
गौंड राजाओं की राजधानी तथा कलचुरी वंश के राजाओं की कर्मभूमि रहा जबलपुर जाबालि ऋषि की तपोभूमि भी रहा है। उनके नाम पर ही इस स्थान का नाम जबलपुर पड़ा। मध्य प्रदेश का प्रमुख जिला जबलपुर जहां अपनी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध है वहीं संगमरमरी चट्टानों के बीच कलकल कर बहती नर्मदा के यादगार दृश्यों के लिए विश्व भर के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र भी है। चारों ओर पहाड़ियों से घिरे होने के कारण यहां का पर्यावरण सुरक्षित है।
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दर्शनीय स्थलों की बात करें तो सबसे पहले भेड़ाघाट का नाम आता है। नीली गुलाबी और सफेद संगमरमर की चट्टानों के बीच से बहने वाली नर्मदा घाटी का प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत है। सैंकड़ों फुट ऊंची संगमरमरी पहाड़ियों के बीच बहने वाली नर्मदा की गहराई 100 फुट तक है, नौका विहार में लगने वाले एक घंटे के अंतराल में भूलभुलैया, बंदर कूदनी जैसे दर्शनीय स्थल हैं। बंदर कूदनी के बारे में तो कहा जाता है कि बरसों पहले ये दोनों पहाड़ियां इतनी पास थीं कि एक ओर से दूसरी ओर बंदर कूद जाते थे पर बाद में पानी के कटाव ने इन दोनों पहाड़ियों में काफी फासला कर दिया। भेड़ाघाट में पंचवटी घाट भी है, जहां से नगर पंचायत द्वारा नौका विहार की व्यवस्था की गई है। भेड़ाघाट से जबलपुर की दूरी 22 किलोमीटर है। यहां पहुंचने के लिए आपको टैम्पो, बस, आटो रिक्शा तथा टैक्सियां आसानी से उपलब्ध हो जाएंगी।
भेड़ाघाट से लगभग दो किलोमीटर दूर विश्व प्रसिद्ध धुआंधार जल प्रपात है। अत्यंत ऊंची पहाड़ियों से जब नर्मदा का जल नीचे गिरता है तब उसका वेग इतना तीव्र होता है कि पानी धुएं के रूप में चारों ओर छा जाता है, इसलिए इस प्रपात का नाम धुआंधार जल प्रपात रखा गया है।
भेड़ाघाट में ही चौंसठ योगिनी के पुराने मंदिर हैं। इन योगिनियों की भग्न मूर्तियां कलचुरी राजाओं के कार्यकाल की देन हैं। एक गोलाकार मंदिर में 64 मातृकाओं और योगिनियों की मूर्तियों का निर्माण कलचुरी राजाओं ने करवाया था, इन योगिनियों और मातृकाओं का तांत्रिक पूजा में काफी महत्व माना जाता है। उस वक्त के कलाकारों ने जिस तरह से इन मूर्तियों को पत्थरों में उकेरा है, वह उस काल के वास्तुशिल्प का बेजोड़ नमूना कहा जा सकता है।
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जबलपुर रोड़ पर लगभग दस किलोमीटर की दूरी पर रानी दुर्गावती का प्राचीन किला शिल्पकला का अद्भुत नमूना है, इस किले को राजा मदन सिंह गौंड ने बनवाया था। एक बड़े पत्थर पर बने इस किले का उपयोग उस वक्त निरीक्षण चौकी के रूप में होता था। 1100 ईंसवी में बनाए गए इस किले की मजबूत दीवारें आज भी ज्यों की त्यों हैं, राज्य शासन तथा जिला प्रशासन ने इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर दिया है।
नर्मदा नदी के किनारे भूगर्भीय महत्व का स्थल है, लम्हेटाघाट। इसका धार्मिक तथा पौराणिक महत्व तो है ही साथ ही यहां ऐसे पत्थर पाए जाते हैं जिनमें रचनात्मक गुण मौजूद हैं। भूगर्भ शास्त्र के शोध छात्रों के लिए शोध की दृष्टि से यह स्थल बेहद महत्वपूर्ण है। कुछ समय पहले विशालकाय डायनासोरों के अवशेष भी इस क्षेत्र में पाये गये हैं।
जबलपुर शहर के बीचोंबीच स्थापित रानी दुर्गावती संग्रहालय पुरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण मूर्तियों व पत्थरों का संग्रह स्थल है। खुदाई में निकली अनेक पुरातत्वीय महत्व की मूर्तियों और वस्तुओं को एकत्रित कर इसे संग्रहालय के रूप में विकसित कर दिया गया है।
इन सब स्थलों के अलावा आप शहीद स्मारक भी देखने जा सकते हैं। जबलपुर देश के प्रमुख रेलमार्गों से जुड़ा हुआ है। इसलिए यहां तक पहुंचने में आपको किसी खास कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा। हां, जबलपुर गरम प्रकृति वाला शहर है। अक्टूबर से फरवरी तक यहां का मौसम काफी खुशनुमा होता है।
-प्रीटी
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