कॉमनवेल्थ और क्राउन के प्रति निष्ठा, भारत क्यों बना हुआ है राष्ट्रमंडल खेलों का हिस्सा?
‘राष्ट्रमंडल’ वस्तुत: अंतरराष्ट्रीय संगठन नहीं है। यह ब्रिटेन की गुलामी में रहे देशों का एक मंच है। लार्ड रोजबरी नाम के एक ब्रिटिश राजनीतिक चिंतक ने 1884 में ‘ब्रिटिश साम्राज्य’ को ‘कामनवेल्थ आफ नेशंस’ बताया।
ब्रिटेन के बर्मिंघम में राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी पूरे जोरों पर है। 28 जुलाई से 8 अगस्त तक होने वाले खेलों में भारतीय खिलाड़ी भी मेडल जीतने के लिए मैदान पर पसीना बहा रहे हैं। भारत इस साल 215 खिलाड़ियों का दल भेज रहा है। चार साल पहले ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में भारत 26 गोल्ड सहित कुल 66 पदकों के साथ तीसरे स्थान पर रहा था। भारत से आगे ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड की टीमें थीं। इस बार के राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय खेमे में पुरुष और महिला खिलाड़ियों की तादाद लगभग बराबर है। कॉमनवेल्थ में कुल 6 हजार 500 खिलाड़ी 280 अलग-अलग मेडल इवेंट के लिए दावेदारी पेश करेंगे। कॉमनवेल्थ गेम्स को आमतौर पर फ्रेंडली गेम के तौर पर भी देखा जाता है। जिसका मूल मंत्र मानवता, समानता और नीयती है। जो लोगों को प्रेरित करती है। लेकिन कॉमनवेल्थ गेम्स को लेकर एक विवाद भी हमेशा से रहा है। कहा जाता है कि गुलामी की याद दिलाने वाले इन खेलों में आखिर स्वतंत्र भारत देश क्यों हिस्सा लेता है?
इसे भी पढ़ें: राष्ट्रमंडल खेलों में भारत की ध्वजवाहक होंगी पीवी सिंधु, IOA ने किया बड़ा ऐलान
गुलामी की याद दिलाने वाला आयोजन है राष्ट्रमंडल खेल?
ब्रिटिश उपनिवेश रहे देशों का ये खेल आयोजन अंग्रेजों का आधिपत्य जताने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। 1930 से 1950 तक इन खेलों को ब्रिटिश एंपायर गेम्स के नाम से भी जाना जाता था। लेकिन जैसे-जैसे ब्रिटिश एंपायर का दायरा सिमटने वगा वैसे ही इसके नाम में भी वक्त के साथ चार बदलाव आए। आजाद होने के बाद भी देश राष्ट्रमंडल का हिस्सा बनें क्योंकि इससे ब्रिटेन से मिलने वाली आर्थिक मदद और कारोबार की सुविधा की उन्हें जरूरत थी। लेकिन कुछ साल में स्थिति काफी तेजी से बदली है। राष्ट्रमंडल का कोई महत्त्व नहीं रह गया है। फिर भी अतीत की एक औपचारिकता निभाने के नाते राष्ट्रमंडल खेल हो रहे हैं। 1974 तक इन खेलों से ब्रिटिश जुड़ा रहा। 1978 में पहली बार राष्ट्रमंडल खेलों के नाम से यह आयोजन हुआ। आज भी इन खेलों का उद्घाटन इंग्लैंड की महारानी या उनकी अनुपस्थिति में उनका प्रतिनिधि करता है।
कॉमनवेल्थ और क्राउन के प्रति निष्ठा
‘राष्ट्रमंडल’ वस्तुत: अंतरराष्ट्रीय संगठन नहीं है। यह ब्रिटेन की गुलामी में रहे देशों का एक मंच है। लार्ड रोजबरी नाम के एक ब्रिटिश राजनीतिक चिंतक ने 1884 में ‘ब्रिटिश साम्राज्य’ को ‘कामनवेल्थ आफ नेशंस’ बताया। ब्रिटेन ने अपना वैचारिक आधिपत्य बनाए रखने के लिए 1931 में कनाडा, आयरिश राज्य, दक्षिण अफ्रीका व न्यूफाउंड लैंड के साथ मिलकर ‘ब्रिटिश कामनवेल्थ’ बनाया। ब्रिटेन का राजा ही इसका प्रमुख था। 1946 में ब्रिटिश शब्द हटा, यह ‘कामनवेल्थ आफ नेशंस’ हो गया। लंदन में इसका मुख्यालय है। सेक्रेटरी जनरल संचालक हैं। 54 देश इसके सदस्य हैं।
इसे भी पढ़ें: Commonwealth Games 2022: किस दिन कौन से खेल में भारतीय खिलाड़ी दिखाएंगे दम, देखें पूरा कार्यक्रम
संविधान सभा में कॉमनवेल्थ की सदस्यता पर सवाल
भारत की संविधान सभा में ‘कॉमनवेल्थ’ की सदस्यता पर भारी विवाद उठा था। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पंडित नेहरू ‘लंदन घोषणापत्र’ पर हस्ताक्षर करके लौटे थे। नेहरू ने राष्ट्रमंडल सदस्यता संबंधी प्रस्ताव रखा और लंदन घोषणापत्र पढ़ा कि राष्ट्रमंडल देश क्राउन के प्रति समान रूप से निष्ठावान हैं, जो स्वतंत्र साहचर्य का प्रतीक है। संविधान सभा के वरिष्ठ सदस्य शिब्बन लाल सक्सेना ने कहा, ‘भारत उस राष्ट्रमंडल का सदस्य नहीं बन सकता, जिसके कई सदस्य अब भी भारतीयों को निम्न प्रजाति का समझते हैं, रंगभेद अपनाते हैं।’ पंडित नेहरू ने अंतरराष्ट्रीय संधियों पर संशोधन लाना गलत बताया।
ब्रिटिश धरती पर भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन रहा सर्वश्रेष्ठ
राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन जब भी ब्रिटिश धरती पर किया गया तब भारतीय खिलाड़ियों ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और उम्मीद की जा रही है कि निशानेबाजी खेल शामिल नहीं किये जाने के बावजूद बर्मिंघम में 28 जुलाई से शुरू होने वाले खेलों में भी वे नये रिकॉर्ड स्थापित करेंगे। भारत ने अब तक ब्रिटिश धरती पर पांच बार राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लिया और केवल ग्लास्गो 2014 को छोड़कर उसने हर बार अपने पिछले प्रदर्शन से बेहतर परिणाम हासिल किए। भारत ने पहली बार राष्ट्रमंडल खेलों में 1934 में हिस्सा लिया था जिनका आयोजन लंदन में किया गया था। भारत ने तब केवल दो खेलों एथलेटिक्स और कुश्ती में हिस्सा लिया। पहलवान राशिद अनवर ने 74 किग्रा में कांस्य पदक जीतकर भारत को इन खेलों का पहला पदक दिलाया था। वेल्स के कार्डिफ में 1958 में हुए खेलों में भारत पहली बार दो स्वर्ण पदक जीतने में सफल रहा था। भारत को यह स्वर्ण पदक उड़न सिख मिल्खा सिंह और पहलवान लीला राम ने दिलाए थे।
अन्य न्यूज़