Chai Par Sameeksha: संसद का मानसून सत्र में NDA Vs I.N.D.I.A की उठापटक से देश को क्या मिला?
प्रभासाक्षी संपादक ने कहा कि लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी के निलंबन के मुद्दे पर हंगामा हुआ। इससे पहले राज्यसभा में संजय सिंह, राघव चड्ढा और डेरेक ओ'ब्रायन के निलंबन को लेकर हंगामा हुआ था। यह सही है कि कोई पार्टी अपने सदस्य के निलंबन के विरोध में आवाज उठाये।
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम चाय पर समीक्षा में इस सप्ताहसंसद मानसून सत्र 2023, मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव तथा औपनिवेशिक युग की निशानियों को मिटाने के लिए लाये गये विधेयकों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हुई। इस दौरान प्रभासाक्षी संपादक ने कहा कि संसद के मानसून सत्र का समापन हो गया। हालांकि, दोनों सदनों के कामकाज का जो ब्यौरा दिया गया है वह निराश करने वाला है। यदि संसद सत्र की कार्य उत्पादकता 45% के आसपास है तो इससे हमारी संसदीय प्रणाली पर सवाल खड़े होते हैं। इसके अलावा, जो कामकाज हुआ है वो भी हंगामे के बीच हुआ। यानि शोरशराबे के बीच क्या नए कानून बन गए यह देश को पता ही नहीं चला। अब विपक्ष कानून के प्रावधानों को लेकर शोर मचाएगा लेकिन जब उस पर चर्चा का वक्त था तो वह कीमती समय बर्बाद किया गया। बहरहाल, संसद में हंगामे के चलते होने वाले स्थगनों से जनता के धन की जो बर्बादी होती है उसको रोकने के उपाय पक्ष विपक्ष को मिल कर तलाशने चाहिए।
प्रभासाक्षी संपादक ने कहा कि लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी के निलंबन के मुद्दे पर हंगामा हुआ। इससे पहले राज्यसभा में संजय सिंह, राघव चड्ढा और डेरेक ओ'ब्रायन के निलंबन को लेकर हंगामा हुआ था। यह सही है कि कोई पार्टी अपने सदस्य के निलंबन के विरोध में आवाज उठाये। लेकिन यह भी देखना चाहिए कि सदन नियमों और परम्पराओं से ही चलता है। यह जो नियम और परम्पराएं हैं वह आज की सरकार ने तो बनाये नहीं हैं। जो लोग विपक्ष में हैं वह सत्ता में रहते हुए इन्हीं नियमों का अनुपालन करवाते थे, इसलिए सवाल उठता है कि आसन और सदन के निर्णयों पर सवाल उठा कर विपक्ष द्वारा जनता को भ्रमित क्यों किया जा रहा है?
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प्रभासाक्षी संपादक ने कहा कि मणिपुर मामले में सरकार को घेरने के लिए विपक्ष संसद में अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया। विभिन्न पक्षों के वक्ताओं ने मणिपुर को लेकर तमाम तरह के विचार प्रस्तुत किये लेकिन इस दौरान मणिपुर से ज्यादा अपने राजनीतिक हितों पर ध्यान दिया गया। देखा जाये तो जरूरत इस बात की थी कि कैसे मणिपुर में जल्द से जल्द शांति कायम की जाये लेकिन सभी दलों ने एक दूसरे के कार्यकाल में विभिन्न राज्यों में हुए दंगों और हिंसा से जुड़े घटनाक्रमों का उल्लेख कर पुराने जख्मों को कुरेदने का गैर-जरूरी कार्य किया।
प्रभासाक्षी संपादक ने कहा कि 100 साल से भी ज्यादा पुरानी भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलने तथा राजद्रोह कानून को पूरी तरह समाप्त करने के लिए संसद में पेश किये गये विधेयक मोदी सरकार के बड़े फैसलों में गिने जाएंगे। समय और जरूरत के हिसाब से कानूनों में बदलाव होते भी रहने चाहिए। साथ ही औपनिवेशिक काल की निशानियों को मिटाया जाना ही चाहिए। देखा जाये तो पहले की सरकारों ने देश को पुराने सिस्टम पर चलते रहने दिया। लेकिन Modi Sarkar ने 1860, 1872 और 1898 के ब्रिटिशकालीन कानूनों में बदलाव करने और उन्हें भारतीय जरूरतों के मुताबिक बनाने का जो जज्बा दिखाया है उसकी सराहना की जानी चाहिए।
- अंकित सिंह
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