नई एंटीबायोटिक दवाओं के विकास में उपयोगी हो सकता है यह प्रोटीन
भारतीय वैज्ञानिकों ने स्टैफिलोकॉकस ऑरियस नामक बैक्टीरिया के एंटीबायोटिक दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता रखने वाले रूपों में ऐसे प्रोटीन की पहचान की है, जिसे आणविक स्तर पर लक्ष्य बनाकर इस बैक्टीरिया को नष्ट किया जा सकता है।
नई दिल्ली। (इंडिया साइंस वायर): दवाओं के प्रति बैक्टीरिया में बढ़ती प्रतिरोधक क्षमता को देखते हुए नई दवाओं का विकास चिकित्सा क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियों में से एक है। नई एंटीबायोटिक दवाओं का निर्माण आमतौर पर पादप अर्क और फफूंद जैसे प्राकृतिक उत्पादों या फिर केमिकल लाइब्रेरी में संग्रहित रसायनों की श्रृंखला पर आधारित होता है। लेकिन, एंटीबायोटिक दवाओं की खोज से जुड़े शोध कार्यों में ऐसी प्रक्रियाओं का महत्व कई बार बढ़ जाता है, जिन पर अपेक्षाकृत रूप से कम खोजबीन की गई हो। इसलिए, नये एंटीबायोटिक एजेंट के रूप में इंडोल आधारित क्विनोन एपोक्साइड का विकास महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
भारतीय वैज्ञानिकों ने स्टैफिलोकॉकस ऑरियस नामक बैक्टीरिया के एंटीबायोटिक दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता रखने वाले रूपों में ऐसे प्रोटीन की पहचान की है, जिसे आणविक स्तर पर लक्ष्य बनाकर इस बैक्टीरिया को नष्ट किया जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस खोज के आधार पर नई एंटीबायोटिक दवाएं विकसित करने में मदद मिल सकती है।
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शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन के दौरान एक अणु भी विकसित किया है जो बैक्टीरिया में पहचाने गए मार-आर (MarR) प्रोटीन को लक्ष्य बनाकर उस बैक्टीरिया को नष्ट कर सकता है। यह अणु इंडोल आधारित क्विनोन एपोक्साइड है, जो सक्रिय जीवाणुरोधी एजेंट की तरह काम करता है। इंडोल आधारित क्विनोन एपोक्साइड बैक्टीरिया की कोशिकाओं को भेदकर और उसमें मार-आर (MarR) प्रोटीन की कार्यप्रणाली को बाधित करके उसे मार देता है।
सीएसआईआर-केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआई), लखनऊ और भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर), पुणे के वैज्ञानिकों द्वारा संयुक्त रूप से किया गया यह अध्ययन शोध पत्रिका जर्नल ऑफ मेडिसिनल केमिस्ट्री में प्रकाशित किया गया है।
अध्ययन में शामिल आईआईएसईआर, पुणे के शोधकर्ता डॉ हरिनाथ चक्रपाणी ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “स्टैफिलोकॉकस ऑरियस बैक्टीरया में पहचाने गए इस प्रोटीन को बैक्टीरिया-रोधी एजेंट्स के जरिये लक्ष्य बनाया जा सकता है, जिससे कई गंभीर संक्रमणों से लड़ने में मदद मिल सकती है। इसे अत्यधिक दवा प्रतिरोधी वीआरएसए बैक्टीरिया के खिलाफ प्रभावी पाया गया है।”
स्टैफिलोकॉकस ऑरियस संक्रमण पैदा करने वाला बैक्टीरिया है, जो दवाओं के लिए आसानी से प्रतिरोधी के रूप में उभर सकता है और उपचार के विकल्पों को सीमित कर सकता है। इसमें पाया जाने वाला मार-आर प्रोटीन इस बैक्टीरिया की वृद्धि और उसके जीवित रहने के लिए एक जरूरी तत्व है। लेकिन, बैक्टीरिया में इस प्रोटीन की कार्यप्रणाली बाधित होने पर वह जीवित नहीं रह पाता है।
इस अध्ययन में आईआईएसईआर, पुणे में इंडोल आधारित क्विनोन एपोक्साइड यौगिकों का संश्लेषण किया गया है। जबकि, सीएसआईआर-सीडीआरआई, में संक्रमण पैदा करने वाले विभिन्न बैक्टीरिया पर इन यौगिकों का परीक्षण किया गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि स्टैफिलोकॉकस ऑरियस बैक्टीरिया को मारने के लिए मार-आर (MarR) परिवार के प्रोटीन को लक्ष्य बनाया जाना कारगर हो सकता है, सिर्फ इस बात का पता लगाने के लिए शोध में सैकड़ों संभावित प्रोटीन लक्ष्यों का परीक्षण किया गया है।
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शोधकर्ताओं का कहना है कि स्टैफिलोकॉकस ऑरियस मनुष्य के शरीर में पाया जाने वाला एक सहजीवी बैक्टीरिया है। यह बैक्टीरिया प्रायः त्वचा और शरीर के भीतर श्लेष्मा झिल्लियों में पाया जाता है। पर, रक्त प्रवाह या फिर भीतरी ऊतकों में यह बैक्टीरिया प्रवेश कर जाए तो निमोनिया, एंडोकार्डिटिस (हृदय वॉल्व संक्रमण), ऑस्टिमिलिटिस (हड्डियों का संक्रमण) जैसे गंभीर संक्रमण हो सकते हैं। इन संक्रमणों से निपटने के लिए प्रभावी एंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत पड़ती है।
डॉ हरिनाथ चक्रपाणी के अलावा शोधकर्ताओं में सीएसआईआर-सीडीआरआई, लखनऊ के डॉ सिद्धार्थ चोपड़ा और आईआईएसईआर, पुणे की शोधकर्ता डॉ ईशा सोनी, डॉ सिद्धेश कामत अमोघ कुलकर्णी, डॉ धनश्री एस. केलकर, डॉ अलीमुथु टी. धर्मराजा, रथीनाम के. शंकर, गौरव बेनीवाल, अभिनया राजेंद्रन एवं शरवरी ताम्हनकर शामिल थे।
(इंडिया साइंस वायर)
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