छोटी जोत भी हो सकती है पोषण में कमी का कारण
सीमांत जोत वाले परिवारों में कैलोरी उपभोग का अंतराल अत्यधिक पाया गया है। जबकि, लघु, मध्यम और बड़ी जोत वाले परिवारों में कैलोरी उपभोग का मध्यम स्तर देखा गया है। प्रोटीन, वसा, आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन-सी जैसे पोषक तत्वों के उपभोग में यह प्रवृत्ति देखने को मिली है।
नई दिल्ली। (इंडिया साइंस वायर): छोटे आकार की जोत वाले परिवारों में पोषण युक्त खाद्य उत्पादों और कैलोरी उपभोग का स्तर बड़ी जोत के परिवारों की तुलना में कम पाया गया है। पूर्वी भारत के ओडिशा, झारखंड और बिहार के गांवों में घरेलू स्तर पर विभिन्न खाद्य उत्पादों के उपभोग और उनसे मिलने वाले पोषण की मात्रा का आकलन करने के बाद भारतीय शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं।
सीमांत जोत वाले परिवारों में कैलोरी उपभोग का अंतराल अत्यधिक पाया गया है। जबकि, लघु, मध्यम और बड़ी जोत वाले परिवारों में कैलोरी उपभोग का मध्यम स्तर देखा गया है। प्रोटीन, वसा, आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन-सी जैसे पोषक तत्वों के उपभोग में यह प्रवृत्ति देखने को मिली है। शोधकर्ताओं का कहना है कि सही पोषण नहीं मिलने का प्रमुख कारण भोजन में विविधता का न होना है।
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अध्ययन में शामिल गांवों में अधिकतर लोग ऊर्जा तथा पोषण संबंधी जरूरतों के लिए सिर्फ चावल, गेहूं और सब्जियों पर मुख्य रूप से निर्भर हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर इन गांवों में दूध, फल और मांस की मात्रा भी भोजन में बेहद कम दर्ज की गई है। छोटे आकार की जोत वाले किसानों में पोषण के निर्धारक प्रोटीन, विटामिन, आयरन, जिंक, विटामिन और वसा जैसे तत्वों की कमी अधिक पायी गई है।
इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (इक्रीसैट) के वर्ष 2011-12 के आंकड़ों पर आधारित यह अध्ययन बिहार में पटना के अराप एवं भगाकोल, दरभंगा के सुसारी एवं इनाई, झारखंड में रांची के डुबलिया तथा हेसापिरी, दुमका के डुमरिया व दुर्गापुर, ओडिशा में ढेंकानाल जिले के सोगर व चंद्रशेखरपुर और बोलांगीर जिले के ऐनलातुंगा और बिलईकानी समेत कुल 12 गांवों में किए गए नमूना सर्वेक्षण पर आधारित है।
पोषण स्तर के आधार पर किए गए वर्गीकरण में एक गांव को 'अत्यधिक', 5 गांवों को 'उच्च', 2 गांवों को 'मध्यम' और 4 गांवों को 'निम्न' अल्प-पोषण वर्ग में रखा गया है। प्रोटीन, वसा, आयरन, जिंक, विटामिन जैसे प्रमुख पोषक तत्वों के सेवन अंतराल में भी समान प्रवृत्ति देखने को मिलती है।
चंद्रशेखरपुर में एक महीने में प्रति व्यक्ति अनाज उपभोग सबसे कम 11.92 किलोग्राम देखा गया है। वहीं, चंद्रशेखरपुर के मुकाबले ऐनलातुंगा एवं बिलईकानी में लगभग दोगुना अनाज उपभोग होता है। ऐनलातुंगा एवं बिलईकानी को छोड़कर अधिकतर गांवों में प्रति व्यक्ति दलहन, तेलों और फलों का मासिक उपभोग एक किलोग्राम से भी कम दर्ज किया गया है।
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जिन गांवों में संतुलित पोषक तत्वों के उपभोग से वंचित परिवारों की संख्या 75 प्रतिशत से अधिक है, उन्हें अत्यधिक अल्प-पोषण वाले वर्ग में रखा गया है। कैलोरी उपभोग से वंचित 50-75 प्रतिशत परिवारों वाले गांवों को अल्प-पोषण के उच्च वर्ग, 25-50 प्रतिशत परिवार वाले गांव मध्यम अल्प-पोषण वर्ग और 25 प्रतिशत से कम परिवारों वाले गांव निम्न अल्प-पोषण वर्ग में रखे गए हैं।
अध्ययन से जुड़े कोच्चि स्थित केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ता डॉ शिनोज परप्पुरातु ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “बुजुर्ग और शिक्षित मुखिया वाले परिवारों में कैलोरी सुरक्षा की बेहतर संभावना देखी गई है। प्रति व्यक्ति अधिक व्यय वाले परिवारों और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की खपत में अधिक हिस्सेदारी वाले लोग भी कैलोरी असुरक्षा का शिकार होने से बच सकते हैं। परिवार का कोई सदस्य स्थायी वेतनभोगी नौकरी में है, तो परिवार की कैलोरी असुरक्षा कम हो जाती है। संस्थागत ऋण के साथ-साथ भूमि और पशुधन स्वामित्व कुछ अन्य कारक हैं, जो उच्च कैलोरी सेवन में मददगार पाए गए हैं।”
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डॉ शिनोज ने बताया कि “भोजन और पोषण संबंधी असुरक्षा विकास को बाधित कर सकती है। सामाजिक-आर्थिक और जनसांख्यिकीय विशेषताओं को ध्यान में रखकर बनायी गई व्यवस्थित और समयबद्ध रणनीतियों के माध्यम से इस समस्या से निपटा जा सकता है।”
यह अध्ययन शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है। अध्ययनकर्ताओं में डॉ शिनोज के अलावा, नई दिल्ली स्थित इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के अंजनी कुमार एवं प्रमोद कुमार जोशी और इक्रीसैट, हैदराबाद के सिंथिया बैंटिलन शामिल थे।
(इंडिया साइंस वायर)
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