आंध्र प्रदेश में किडनी रोगों की उच्च दर के कारणों का पता लगाएंगे वैज्ञानिक
आईआईटीआर के निदेशक प्रोफेसर आलोक धवन और ग्रेट ईस्टर्न मेडिकल स्कूल ऐंड हॉस्पिटल की अकादमिक निदेशक डॉ. डी. लक्ष्मी ललिता ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। सीकेडी से प्रभावित लोगों को शारीरिक एवं आर्थिक रूप से बेहद नुकसान उठाना पड़ता है।
नई दिल्ली। (इंडिया साइंस वायर): अगले दो दशकों में, हृदय रोगों और मस्तिष्क के स्ट्रोक के अलावा, जो बीमारियां समय से पहले मौत का कारण बन सकती हैं, उनमें क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) का नाम सबसे ऊपर है। आंध्रप्रदेश के उड्डाणम क्षेत्र को देश में सीकेडी की उच्च दर के लिए जाना जाता है। भारतीय विषविज्ञान संस्थान (आईआईटीआर), लखनऊ और ग्रेट ईस्टर्न मेडिकल स्कूल ऐंड हॉस्पिटल, श्रीकाकुलम के बीच अब एक नया समझौता किया गया है, जिसके तहत उड्डाणम में सीकेडी की उच्च दर के कारणों का पता लगाने का प्रयास किया जाएगा।
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सीकेडी किडनी रोगों से जुड़ी एक चिकित्सीय स्थिति को कहते हैं, जिसमें किडनी की कार्यक्षमता में धीरे-धीरे गिरावट होने लगती है। भारत की कुल आबादी में करीब 10 से 15 प्रतिशत लोग सीकेडी से पीड़ित हैं। वहीं, उड्डाणम में 30 प्रतिशत से 45 प्रतिशत आबादी के सीकेडी से प्रभावित होने का अनुमान है, जो राष्ट्रीय औसत की तुलना में दोगुने से भी अधिक है। इसके बावजूद, इस क्षेत्र में सीकेडी की उच्च दर के कारणों का पता नहीं लगाया जा सका है।
इस नये समझौते के अंतर्गत ग्रेट ईस्टर्न मेडिकल स्कूल ऐंड हॉस्पिटल के विशेषज्ञ और आईआईटीआर के वैज्ञानिक उड्डाणम में सीकेडी के कारणों का पता लगाने के लिए एक साथ काम करेंगे। दोनों संस्थानों के विशेषज्ञ उड्डाणम से भोजन और पानी के नमूने एकत्र करेंगे और फिर उनका किडनी रोगों के लिए जिम्मेदार कारणों का पता लगाने के लिए अध्ययन किया जाएगा। इस दौरान, पीड़ितों के रक्त और मलमूत्र के नमूनों का भी वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाएगा। आईआईटीआर के वैज्ञानिकों का कहना है कि अध्ययन के नतीजे इस क्षेत्र में उपयुक्त दिशा निर्देश जारी करने और किडनी रोगों से निपटने के लिए प्रभावी रणनीति बनाने में कारगर हो सकते हैं।
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आईआईटीआर के निदेशक प्रोफेसर आलोक धवन और ग्रेट ईस्टर्न मेडिकल स्कूल ऐंड हॉस्पिटल की अकादमिक निदेशक डॉ. डी. लक्ष्मी ललिता ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। सीकेडी से प्रभावित लोगों को शारीरिक एवं आर्थिक रूप से बेहद नुकसान उठाना पड़ता है। बार-बार डायलिसिस और किडनी प्रत्यारोपण मरीजों के लिए एकमात्र विकल्प बचता है क्योंकि एक चरण के बाद किडनी की क्षति में सुधार कठिन हो जाता है।
शोध पत्रिका द लैंसेट में प्रकाशित बीमारियों के वैश्विक बोझ पर केंद्रित इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) के अध्ययन में सीकेडी को भारत में बीमारियों का 16वां प्रमुख कारण बताया गया है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2040 तक किडनी फेल होना शीर्ष पांच बीमारियों में से एक हो सकती है।
(इंडिया साइंस वायर)
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