कोरोना को संक्रामक बनाने वाली आणविक संरचना का खुलासा
कोविड-19 महामारी फैलाने वाले सार्स कोरोना वायरस-2 को यह नाम देने की वजह इसकी सतह पर मौजूद वो स्पाइक्स ही हैं, जो इसे एक क्राउन (या कोरोना) का रूप देते हैं। स्पाइक्स जिन प्रोटीन से बनते हैं, वे वायरसों के संक्रमित जीव की मेजबान कोशिकाओं में प्रवेश करने में सहायक होते हैं।
भारतीय शोधकर्ताओं को कोविड-19 के लिए जिम्मेदार कोरोना वायरस के सक्रिय प्रोटीन क्षेत्र की आणविक संरचना दर्शाने में सफलता मिली है। शोधकर्ताओं ने एक महत्वपूर्ण स्पाइक प्रोटीन के एक अनुभाग की संरचना का अध्ययन किया है, जो कोरोना वायरस को संक्रामक बनाता है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्ययन महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके आधार पर स्पाइक प्रोटीन के विशिष्ट हिस्से को लक्ष्य बनाने वाली दवाओं की खोज का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज के प्रमुख शोधकर्ता डॉ रजनीश गिरी बताते हैं कि “एंडोडोमेन, स्पाइक प्रोटीन का वायरस के अंदर वाला हिस्सा होता है। हमने पाया कि इसकी आणविक संरचना कठोर नहीं होती, बल्कि एंडोडोमेन बेहद लचीला होता है। किसी संरचना के अभाव में यह वायरस के डार्क प्राटीयोम का हिस्सा है। इससे पता चलता है कि एंडोडोमेन अलग-अलग परिस्थितियों में पूरी तरह या आंशिक रूप से अव्यवस्थित संरचना को अपना सकता है। हमने सी-टर्मिनल क्षेत्र या एंडोडोमेन के संरचनात्मक लचीलेपन का प्रमाण प्रस्तुत किया है, जिसके बारे में अब तक केवल अनुमान लगाया जाता रहा है।”
वायरस के संक्रामक होने में स्पाइक प्रोटीन की अहमियत देखते हुए पूरी दुनिया में उनकी आणविक संरचना देखने के लिए काफी शोध किए जा रहे हैं। हालांकि, अब यह ज्ञात है कि स्पाइक प्रोटीन का एक भाग ऐसा है, जो वायरस की मुख्य बॉडी के बाहर (एक्स्ट्राविरियन) होता है, जिसे एक्टोडोमैन कहा जाता है; एक भाग वायरस की झिल्ली (ट्रांसमेम्ब्रेन) को पार करता है; और एक भाग वायरस की संरचना (इंट्राविरियन) के अंदर होता है, जिसे एंडोडोमेन कहा जाता है।
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अधिकतर अध्ययन केवल एक्स्ट्राविरियन पर केंद्रित रहे हैं, और स्पाइक प्रोटीन के ट्रांसमेम्ब्रेन और इंट्राविरियन भागों की बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। डॉ गिरि की टीम ने सीडी स्पेक्ट्रोस्कोपी और आणविक गतिशीलता सिमुलेशन से स्पाइक ग्लाइकोप्रोटीन के इंट्राविरियन भाग का आकार या रूप देखने की पुष्टि की है, जिसे सी-टर्मिनल क्षेत्र या एंडोडोमेन भी कहा जाता है।
कोविड-19 महामारी फैलाने वाले सार्स कोरोना वायरस-2 को यह नाम देने की वजह इसकी सतह पर मौजूद वो स्पाइक्स ही हैं, जो इसे एक क्राउन (या कोरोना) का रूप देते हैं। स्पाइक्स जिन प्रोटीन से बनते हैं, वे वायरसों के संक्रमित जीव की मेजबान कोशिकाओं में प्रवेश करने में सहायक होते हैं। सार्स कोव-2 स्पाइक एंडोडोमेन के अध्ययन में शोधकर्ताओं ने स्पेक्ट्रोस्कोपी और सिमुलेशन तकनीक का उपयोग किया है।
शोधकर्ताओं ने प्रायोगिक अध्ययनों के साथ सिमुलेशन के परिणामों का सत्यापन किया है, और दिखाया है कि स्पाइक प्रोटीन का इंट्राविरियन भाग, यानी एंडोडोमैन की संरचना आंतरिक रूप से अव्यवस्थित हिस्से की तरह दिखती है। इसके अलावा, साल्वेंट आधारित अध्ययन भी इस एंडोडोमेन की संरचना की पुष्टि या आकार बदलने की क्षमता के संकेत देते हैं।
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आईआईटी मंडी के शोधकर्ता प्रतीक कुमार ने बताया, ‘‘हमारे निष्कर्ष वैज्ञानिक समुदाय के लिए मार्गदर्शक साबित होंगे। इससे स्पाइक प्रोटीन के संरचनात्मक लचीलेपन को केंद्र में रखकर स्पाइक प्रोटीन के इस भाग को लक्ष्य बनाने वाली दवाओं की खोज की जा सकेगी।’’ उन्होंने बताया कि इस भाग का संरचनात्मक लचीलापन मेजबान कोशिका के अंदर कई नये लक्ष्यों की पहचान करने में सहायक हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप कोरोना वायरस के संक्रमण के बुनियादी विज्ञान को समझना आसान होगा।”
डॉ रजनीश गिरी के अलावा इस अध्ययन में आईआईटी मंडी के शोधार्थी प्रतीक कुमार एवं तानिया भारद्वाज, और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की सहायक प्रोफेसर डॉ नेहा गर्ग शामिल हैं। यह अध्ययन शोध पत्रिका ‘वायरोलॉजी’ में प्रकाशित किया गया है।
(इंडिया साइंस वायर)
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