सड़क हादसों के बोझ को कम कर सकता है समन्वित निगरानी तंत्र

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भारत में प्रति लाख आबादी पर सड़क हादसों में होने वाली मौतों की दर 17.6 है, जो काफी अधिक है। विशेषज्ञों का मानना है कि विकेंद्रीकृत शासन प्रणाली होने के कारण देश में संचालित विभिन्न नीतियों में स्वास्थ्य संबंधी विषयों को शामिल करना चुनौतीपूर्ण है। हालांकि, किसी विशेष मुद्दे पर केंद्रित रणनीति का निर्माण प्रभावी हो सकता है।

नई दिल्ली।(इंडिया साइंस वायर): अस्पतालों में आने वाले जख्मी होने के मामलों के बारे में सटीक आंकड़ों की कमी सड़क हादसों में घायल होने वाले पीड़ितों के बचाव से जुड़ी रणनीति बनाने और उसे लागू करने में एक प्रमुख बाधा है। इसलिए, सड़क दुर्घटनाओं में जख्मी होने के मामलों की निगरानी और आंकड़ों के संग्रह के लिए एक वेब-आधारित तंत्र का निर्माण उपयोगी हो सकता है। यह बात भारतीय शोधकर्ताओं के एक नए अध्ययन में उभरकर आयी है।

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नई दिल्ली स्थित जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के शोधकर्ताओं ने हादसों के शिकार पीड़ितों की निगरानी के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र, पुलिस, बीमा और प्रधानमंत्री जन-आरोग्य योजना समेत विभिन्न क्षेत्रों के आंकड़ों के समन्वित उपयोग पर आधारित दृष्टिकोण अपनाए जाने की बात कही है। इस तरह की रणनीति हादसों के शिकार पीड़ितों के अस्पताल पहुंचने के पूर्व से लेकर उनके डिस्चार्ज होने तक देखभाल से जुड़े विभिन्न चरणों की बारीक जानकारियां एकत्रित करने में मददगार हो सकती है। 

इस अध्ययन में हादसे के शिकार पीड़ितों की देखभाल के लिए निर्धारित विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों के आधार पर आंकड़ों को एकत्रित करने की मौजूदा पद्धति का मूल्यांकन किया गया है। इसके लिए विभिन्न प्रक्रियाओं, पुलिस रिकार्ड, अस्पताल पूर्व देखभाल, अस्पताल में उपचार और बीमा संबंधी तथ्यों की पड़ताल की गई है। 

शोधकर्ताओं ने जनवरी-मार्च 2017 के दौरान हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, पंजाब, गुजरात और महाराष्ट्र के 11 स्थानों से आंकड़े एकत्रित किए हैं। इनमें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, जिला अस्पताल, बड़े सरकारी अस्पताल और निजी अस्पताल शामिल हैं। 

वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ जगनूर जगनूर ने बताया कि "शारीरिक आघात की निगरानी से जुड़े डेटा स्रोतों की अपनी सीमाएं हैं। उदाहरण के लिए, पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज मामले अभिघात या चोट संबंधी सभी मामलों का प्रतिनिधित्व नहीं करते। इसी तरह, स्वास्थ्य संबंधी आंकड़ों में शारीरिक आघात के मामले पूरी तरह सामने नहीं आ पाते। विभिन्न क्षेत्रों के वेब-आधारित डेटा संग्रह उपकरण की मदद से इन खामियों को दूर किया जा सकता है। यह पहल भारत में एक व्यापक शारीरिक अभिघात निगरानी प्रणाली विकसित करने में महत्वपूर्ण हो सकती है।"

भारत में प्रति लाख आबादी पर सड़क हादसों में होने वाली मौतों की दर 17.6 है, जो काफी अधिक है। विशेषज्ञों का मानना है कि विकेंद्रीकृत शासन प्रणाली होने के कारण देश में संचालित विभिन्न नीतियों में स्वास्थ्य संबंधी विषयों को शामिल करना चुनौतीपूर्ण है। हालांकि, किसी विशेष मुद्दे पर केंद्रित रणनीति का निर्माण प्रभावी हो सकता है। 

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डॉ जगनूर का कहना है कि- सड़क हादसों के कारण स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च और शारीरिक आघात की रोकथाम काफी हद तक स्वास्थ्य क्षेत्र के अलावा अन्य क्षेत्रों पर भी निर्भर करती है। इसीलिए, रोकथाम तथा सुरक्षित प्रणाली पर अमल करने में अन्य क्षेत्रों की भूमिका भी अहम हो सकती है। इन क्षेत्रों में शहरी योजना एवं विकास, ऑटोमोबाइल उद्योग और कानूनी- घरेलू मामले शामिल हैं। 

भारत में सड़क हादसों के शिकार लोगों के उपचार का अनुमानित खर्च जीडीपी के करीब तीन प्रतिशत के बराबर है। जबकि, देश में स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च जीडीपी का 1.2 प्रतिशत ही है। स्पष्ट है कि सड़क हादसों के बोझ को कम करने के लिए जरूरी संसाधनों की कमी है। कुल स्वास्थ्य खर्च का 30 प्रतिशत से अधिक हिस्सा सड़क हादसों के शिकार लोगों की देखभाल एवं उपचार पर व्यय होता है। सड़क हादसों के कारण होने वाले शारीरिक आघात की घटनाओं की रोकथाम महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका असर सर्वव्यापी स्वास्थ्य कवरेज पर भी पड़ता है। 

(इंडिया साइंस वायर)

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