भविष्य में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत बन सकती है अजैविक मीथेन
अध्ययन में यह भी पता चला है कि कुछ विशिष्ट सूक्ष्मजीव वास्तव में अजैविक मीथेन बनाने में मदद करते हैं। पृथ्वी में बहुत अधिक गहराई में मिलने वाले मीथोनोजेन नामक ये सूक्ष्मजीव भू-रासायनिक क्रियाओं के दौरान बनने वाली हाइड्रोजन का उपयोग करके अपशिष्ट के रूप में मीथेन गैस का उत्सर्जन करते हैं।
वास्को-द-गामा (गोवा)। (इंडिया साइंस वायर): पृथ्वी के भीतर पेट्रोलियम उत्पाद, कोयला और प्राकृतिक गैस जैसे हाइड्रोकार्बन ईंधनों का भंडार हैं। ये सभी जीवाश्म ईंधन हैं, जो पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं और समुद्री जीवों के अवशेषों के करोड़ों वर्षों तक धरती अथवा महासागरों के नीचे दबे रहने के फलस्वरूप बने हैं। जीवाश्मों के इन रूपों को जैविक ईंधन कहा जाता है। जबकि, कुछ हाइड्रोकार्बन, विशेष रूप से मीथेन, पृथ्वी के भीतर गहराई में जैविक और अजैविक दोनों प्रक्रियाओं से बनते हैं। पृथ्वी की सबसे ऊपरी सतह के नीचे मीथेन का अपार भंडार है। मीथेन रंगहीन तथा गंधहीन गैस है, जो प्राकृतिक गैस का मुख्य घटक है।
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अमेरिका के डीप कार्बन ऑब्जर्वेटरी (डीसीओ) के वैज्ञानिकों ने दुनिया के बीस से अधिक देशों और कई गहरे महासागरीय क्षेत्रों में मीथेन के अजैविक उत्पत्ति स्त्रोतों का पता लगाया है। वैज्ञानिकों के अनुसार, कुछ विशेष चट्टानों में पाए जाने वाले ओलिविन नामक खनिज और पानी आपस में क्रिया करके हाइड्रोजन गैस बनाते हैं। यह हाइड्रोजन कार्बन स्त्रोतों, जैसे- कार्बनडाइऑक्साइड से क्रिया करके मीथेन बनाती है। वैज्ञानिक इसी को अजैविक मीथेन कहते हैं क्योंकि यह बिना किसी जैविक आधार के निर्मित होती है।
अध्ययन में यह भी पता चला है कि कुछ विशिष्ट सूक्ष्मजीव वास्तव में अजैविक मीथेन बनाने में मदद करते हैं। पृथ्वी में बहुत अधिक गहराई में मिलने वाले मीथोनोजेन नामक ये सूक्ष्मजीव भू-रासायनिक क्रियाओं के दौरान बनने वाली हाइड्रोजन का उपयोग करके अपशिष्ट के रूप में मीथेन गैस का उत्सर्जन करते हैं। मीथेन ईंधन के रूप में उपयोग की जाती है। यह गैस धरती में पड़ी दरारों से निकलती है।
डीसीओ के वैज्ञानिकों ने लगभग तीन अरब वर्ष पहले महाद्वीपों के कोर में बनी चट्टानों, समुद्र तल में मध्य-महासागरीय चोटियों, ज्वालामुखियों की निकटवर्ती उच्च तापमान वाली जलतापीय नलिकाओं और विभिन्न महाद्वीपों के कई बेहद खारे झरनों और जलकुंडों में अजैविक मीथेन की उपस्थिति का पता लगाया है। इन स्थानों में तुर्की की प्रसिद्ध फ्लेम्स ऑफ काइमिरा, ओमान के सीमेल ओफियोलाइट, कनाडा की गहरी खदानें और मध्य अटलांटिक महासागर में लॉस्ट सिटी जलतापीय क्षेत्र शामिल हैं।
डीसीओ एक हजार से अधिक वैज्ञानिकों का समुदाय है जो पृथ्वी पर कार्बन की मात्रा, गति, रूप और उत्पत्ति को समझने में जुटा है। इस समूह के वैज्ञानिकों ने वर्ष 2009 में डीप एनर्जी कम्युनिटी नामक परियोजना शुरू की थी, जिसके तहत दुनिया के 35 देशों के 230 से अधिक शोधकर्ता काम कर रहे हैं।
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शोधकर्ताओं ने दुनियाभर से मीथेन के नमूने एकत्र किए हैं। कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने मास स्पेक्ट्रोमेट्री, अवशोषण स्पेक्ट्रोस्कोपी तथा अत्याधुनिक संवेदी उपकरणों की मदद से जैविक और अजैविक मीथेन गैस के रासायनिक घटकों का विश्लेषण किया है। विभिन्न आइसोटोपों से पता चला कि धरती में मीथेन कैसे बनती है।
इस शोध से जुड़ी फ्रांस की क्लाउड बर्नार्ड यूनिवर्सिटी की वैज्ञानिक इसाबेल डैनियल का कहना है कि पृथ्वी पर अजैविक मीथेन की मौजूदगी की पुष्टि हो गई है। यह जटिल प्रक्रिया है, जिसमें सबसे बड़ी भूमिका चट्टानों में बनने वाली हाइड्रोजन की होती है।
परियोजना में शामिल यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के प्रमुख वैज्ञानिक एडवर्ड यंग के अनुसार, "अगर बेहतर ढंग से समझ आ जाए कि चट्टानों में हाइड्रोजन कैसे बनती है और मीथेन उसमें कैसे शामिल हो जाती है तो वैज्ञानिक यह जानने के करीब होंगे कि पृथ्वी पर कितनी अजैविक मीथेन मौजूद है।"
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पृथ्वी पर अजैविक मीथेन के स्रोतों को निर्धारित करने के लिए उपयोग होने वाली तकनीकें और इससे जुड़े अध्ययन सौरमंडल के दूसरे ग्रहों, विशेष तौर पर मंगल के वातावरण में हुई मीथेन की खोज और वहां जीवन की संभावना का पता लगाने में मददगार हो सकते हैं।
अजैविक मीथेन की खोज की दिशा में किए जा रहे शोधों से प्राकृतिक ऊर्जा संबंधी सोच में बदलाव हो रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि अजैविक मीथेन भविष्य में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत बनकर उभर सकती है और अजैविक मीथेन का आर्थिक मूल्य निश्चित रूप से बहुत अधिक हो सकता है।
(इंडिया साइंस वायर)
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