नई वायु-शोधक तकनीक विकसित कर रहा है आईआईटी मद्रास
कोविड-19 और टीबी जैसी बीमारियां भारत के लिए चुनौती हैं। इनकी भयावहता का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि कोविड-19 के कारण भारत में अब तक चार लाख से अधिक लोगों को जान गंवानी पड़ी। वहीं वर्ष 2019 के दौरान देश में 4.45 लाख लोगों ने टीबी के कारण दम तोड़ दिया।
कोरोना संक्रमण से होने वाले कोविड और टीबी जिसे तपेदिक या क्षय रोग भी कहा जाता है, में एक समान बात यही है कि ये दोनों बीमारियां संक्रामक हैं। दोनों बीमारियों का संक्रमण संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने के अलावा हवा के माध्यम से भी संभव है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास, वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (वीआईटी), चेन्नई तथा क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन(क्यूएमयूएल), यूनाइटेड किंगडम ने साथ मिलकर एक ऐसी एयर सैनिटाइजेशन टेक्नोलॉजी (वायु स्वच्छता तकनीक) और गाइडलाइन विकसित करने कि योजना बनायी है जो पूरी तरह भारत पर केंद्रित होगी। कोरोना वायरस और टीबी के प्रसार पर अंकुश लगाने के लिए हुई। इस पहल का उद्देश्य कार्यालयों और अस्पताल जैसे बिना खुली हवा वाले स्थानों को संक्रमण से सुरक्षित करने का है।
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इस संयुक्त अनुसंधान का लक्ष्य अंदरूनी स्थानों पर वायु संक्रमण के कारण होने वाली बीमारियों से बचाव के लिए एक कम लागत वाला बायो-एयरोसोल प्रोटेक्शन सिस्टम तैयार करना है। इसमें दिल्ली स्थित एक प्रमुख स्टार्ट-अप मैग्नेटो क्लीनटेक की भी अहम भूमिका होगी जो ऐसी तकनीकों पर पहले भी काम कर चुका है। इस विकसित होने वाली तकनीक को भारत के विभिन्न पर्यावरणीय परिवेश के आधार पर असल कसौटी पर कसा जाएगा।
कोविड-19 और टीबी जैसी बीमारियां भारत के लिए चुनौती हैं। इनकी भयावहता का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि कोविड-19 के कारण भारत में अब तक चार लाख से अधिक लोगों को जान गंवानी पड़ी। वहीं वर्ष 2019 के दौरान देश में 4.45 लाख लोगों ने टीबी के कारण दम तोड़ दिया। टीबी उन शीर्ष दस बीमारियों में शामिल है, जिनसे विश्व में सबसे अधिक मौतें होती हैं। ऐसे में इस शोध-अनुसंधान को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
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इस परियोजना के अंतर्गत 'अल्ट्रावायलेट-सी' विकिरण के उपयोग से हवा को शुद्ध करने वाली तकनीक की व्यावहारिकता के मूल्यांकन के लिए एक प्रूफ-ऑफ-कांसेप्ट तैयार किया है। इस तकनीक में वर्तमान उपलब्ध फिल्टरों की तुलना में हवा में मौजूद वायरसों को हटाने की कहीं अधिक प्रभावी क्षमता होगी।
इस परियोजना की वर्तमान स्थिति और भविष्य में इसके संभावित उपयोग पर आईआईटी मद्रास में महासागर आभियांत्रिकी विभाग के प्रोफेसर एवं इस परियोजना के समन्वयक प्रो अब्दुस समद बताते हैं, 'सामाजिक समस्याओं के समाधान की दिशा में सहयोगपूर्ण शोध-अनुसंधान के लिए आईआईटी मद्रास सदैव प्रयासरत रहा है। गत वर्ष मार्च में कोविड संक्रमण की शुरुआत के समय हम बहुत डर गए थे। ऐसे में कम खुली हवा वाली जगहों के लिए ऐसे शोध के लिए तुरंत प्रयास आरंभ कर दिए।'
इंडिया साइंस वायर
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