थार मरुस्थल के संरक्षण के लिए आईआईटी जोधपुर की पहल
पिछले कुछ समय से पर्यावरणीय अपकर्षण के कारण विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक पर्यावासों को क्षति पहुंची और रेगिस्तान भी उससे अछूते नहीं रहे हैं। प्राकृतिक रेगिस्तानों के पतन के बहुत गहरे दुष्प्रभाव देखे जा रहे हैं, क्योंकि यहां अपनी किस्म की अनूठी और महत्वपूर्ण वनस्पतियां विद्यमान होती हैं।
पृथ्वी पारितंत्र का प्रत्येक पहलू अत्यंत महत्वपूर्ण है। marusthaliya जलवायु और वनस्पति से लेकर उनसे जुड़ा पूरा तंत्र कई मायनों में अपनी विशिष्ट पहचान और महत्व रखता है। पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए मरुस्थलीय-तंत्र के संरक्षण के प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। इस दिशा में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जोधपुर एक बड़ा कदम उठाने जा रहा है। जोधपुर सिटी नॉलेज एंड इनोवेशन क्लस्टर के अंतर्गत संस्थान ने थार डेजर्ट इकोसिस्टम साइंसेज गाइडेड बाइ नेचर एंड सेलेक्शन (डिजाइंस) के रूप में एक अद्भुत पहल की है। इसका उद्देश्य थार रेगिस्तान के संरक्षण के साथ ही उसमें हो रहे ह्रास को भी कम करना है।
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भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर स्थित थार रेगिस्तान भारतीय उपमहाद्वीप की भौगोलिक विशिष्टताओं का एक प्रमुख बिंदु है। अधिकतम तापमान, तापीय विभिन्नता, छिटपुट और छितराई हुई वर्षा और पराबैंगनी किरणों का व्यापक विकिरण इस रेगिस्तान की प्रमुख विशेषताएं मानी जाती हैं। ऐसे में यह डिजाइंस और उसके इर्दगिर्द नवाचारों के प्रवर्तन के लिए एक सहज एवं प्राकृतिक प्रयोगशाला बन जाता है। इससे यहां की जैविक-प्रजातियों, उनकी परस्पर निर्भरता, अनुकूलन स्तर और उनसे जुड़े समूचे परितंत्र के संरक्षण के लिए कार्ययोजना बनाने का अवसर उपलब्ध होगा।
पिछले कुछ समय से पर्यावरणीय अपकर्षण के कारण विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक पर्यावासों को क्षति पहुंची और रेगिस्तान भी उससे अछूते नहीं रहे हैं। प्राकृतिक रेगिस्तानों के पतन के बहुत गहरे दुष्प्रभाव देखे जा रहे हैं, क्योंकि यहां अपनी किस्म की अनूठी और महत्वपूर्ण वनस्पतियां विद्यमान होती हैं। साथ ही ये विभिन्न प्रकार के खनिजों और दवाओं के भंडार भी होते हैं। इतना ही नहीं पृथ्वी पर जीवन अनुकूल परिस्थितियों को कायम रखने के लिए भी ये अपनी अहम भूमिका निभाते हैं। इसे इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि प्रायः रेगिस्तान को जमीन का बेकार टुकड़ा समझा जाता है, लेकिन जलवायु को स्थिर रखने में ये निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। ऐसे में इनकी प्रकृति में आया मामूली परिवर्तन भी जलवायु को व्यापक स्तर पर प्रभावित कर सकता है, जिससे समूचा पारितंत्र प्रभावित हो सकता है। इसका कुप्रभाव मानव जीवन से लेकर उसकी आजीविका पर भी पड़ सकता है। इन सभी आशंकाओं के संदर्भ में ‘डिजाइंस’ जैसी पहल उपयोगी सिद्ध हो सकती है।
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इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए जोधपुर सिटी लॉलेज एंड इनोवेशन क्लस्टर (जेसीकेआईसी) ने इंजीनियरिंग, अंतरिक्ष अनुसंधान, मेडिकल, कृषि, प्राणि विज्ञान एवं वनस्पति विज्ञान के विभिन्न पक्षों को एक साथ एक मंच पर लाने की पहल की है। ये सभी मिलकर थार रेगिस्तान के विविधता भरे पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करेंगे। इस सहयोग की कड़ियां एक एकीकृत ढांचे के अंतर्गत समन्वित रूप से कार्य करेंगी।
थार ‘डिजाइंस’ जैसी पहल को लेकर आईआईटी जोधपुर में बायोसाइंस एंड बायोइंजीनियरिंग विभाग की प्रमुख प्रोफेसर मिताली मुखर्जी ने बताया है कि 'थार डिजाइंस का मकसद ज्ञान की साझेदारी और नागरिक विज्ञान दृष्टिकोण के माध्यम से साझेदारी प्रोत्साहन देना है। इसमें समग्र समन्वित नेटवर्क के जरिये डिजाइन थिंकिंग भी शामिल है।'
इस अध्ययन के लिए शोधार्थी इंटरनेट से संचालित होने वाले उपकरणों और बिग डेटा एनालिटिक्स का उपयोग कर विभिन्न परिप्रेक्ष्यों में प्राप्त सूचनाओं का वृहद उपयोग सुनिश्चित करेंगे। इनमें स्थानीय, सांस्कृतिक एवं पारंपरिक औषधियों जैसे पहलू भी शामिल होंगे।
(इंडिया साइंस वायर)
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