कितने स्वच्छ हैं हमारे शहर, बता सकती है 3डी स्कैनिंग तकनीक
शहरों में सड़कों के किनारे अनाधिकृत रूप से फेंके जाने वाले कचरे की मात्रा का पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने 3डी सेंसर तकनीक आधारित एक नई पद्धति विकसित की है। इसकी मदद से शहरी कचरे के प्रबंधन का सही आकलन किया जा सकेगा।
नई दिल्ली। (इंडिया साइंस वायर): शहरों में सड़कों के किनारे अनाधिकृत रूप से फेंके जाने वाले कचरे की मात्रा का पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने 3डी सेंसर तकनीक आधारित एक नई पद्धति विकसित की है। इसकी मदद से शहरी कचरे के प्रबंधन का सही आकलन किया जा सकेगा।
इस तकनीक के उपयोग से पता चला है कि दिल्ली में सड़कों के किनारे या खुले में अनधिकृत रूप से फेंके गए कचरे की मात्रा करीब 5.57 लाख टन है, जो रोज निकलने वाले कचरे से 62 गुना अधिक है। कचरे की मात्रा का पता लगाने के लिए शोधकर्ताओंन ने 3डी सेंसर का उपयोग किया है। इन सेंसर्स का आमतौर पर 3डी प्रिंटिंग के लिए उपयोग किया जाता है। इस डिवाइस में लगे हाई डेफिनेशन रंगीन कैमरे और संवेदनशील इन्फ्रारेड प्रोजेक्टर की मदद से वस्तुओं की मात्रा का सटीक आकलन किया जा सकता है। इससे कचरे की मात्रा के साथ-साथ कचरे के विभिन्न प्रकारों- मलबा, प्लास्टिक और जैविक रूप से अपघटित होने वाले कचरे- का भी पता लगा सकते हैं।
इस शोध के लिए दिल्ली के चार ऐसे इलाकों में कचरे का सर्वेक्षण किया गया, जो विभिन्न सामाजिक-आर्थिक वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन इलाकों में बृजपुरी, भोगल, जंगपुरा एक्सटेंशन और सफदरजंग एन्कलेव शामिल हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा के शोधकर्ता डॉ. अजय सिंह नागपुरे ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “म्युनिसिपल कचरे का आकलन करने के लिए हमने पहली बार 3डी सेंसर तकनीक का उपयोग किया है। इसलिए, अध्ययन क्षेत्र में सेंसर्स का उपयोग करने से पहले उनकी वैधता की जांच की गई है।” यह अध्ययन शोध पत्रिका रिसोर्सेज कन्जर्वेशन ऐंड रिसाइक्लिंग में प्रकाशित किया गया है।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राजधानी दिल्ली में कचरे के संग्रह की वार्षिक क्षमता 83 प्रतिशत है, जिसका अर्थ है कि नगरपालिका द्वारा इतना अपशिष्ट एकत्रित किया जाता है और लैंडफिल में ले जाया जाता है। लेकिन, अध्ययन में कचरे को एकत्रित करने की क्षमता विभिन्न इलाकों में अलग-अलग पायी गई है, जिसका संबंध आर्थिक स्थिति से जुड़ा हुआ है। निम्न आय वर्ग वाले इलाकों में यह क्षमता 67 प्रतिशत है, जबकि उच्च आय वाले क्षेत्रों में 99 प्रतिशत तक है। उच्च आय वर्ग की कॉलोनियों में डोर-टू-डोर कचरे के संग्रह की सुविधा है और साथ ही कचरा संग्रह केंद्रों और म्युनिसिपल कर्मचारियों की उपलब्धता भी अच्छी है। कम आय वर्ग वाले क्षेत्रों में इन सुविधाओं की कमी है।
अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, सार्वजनिक कचरा संग्रह केंद्रों या ढलाव के अलावा कहीं पर भी खुले में कचरा फेंकना गैर-कानूनी है। प्रतिदिन निकलने वाले म्युनिसिपल कचरे के एकत्रीकरण की क्षमता भारत के अधिकतर शहरों में 50 से 90 प्रतिशत तक है। बाकी का कचरा सड़कों के किनारे या फिर खुले प्लॉटों में जमा होता रहता है। डॉ. नागपुरे के अनुसार, “इस पद्धति से पता लगाया जा सकता है कि हमारे शहर वास्तव में कितने स्वच्छ हैं। यह पद्धति देशभर में कचरे का आकलन करने के लिए उपयोग की जा सकती है। इसकी मदद से कचरे के निपटारे के लिए सही रणनीतियां बनाने में भी मदद मिल सकती है।” (इंडिया साइंस वायर)
भाषांतरण: उमाशंकर मिश्र
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