हरियाणा में यूपी के दलों की दावेदारी: सत्ता का सपना पूरा होगा या सिर्फ वोट कटवा बनेंगे?

Haryana Assembly Election 2024
ANI
अजय कुमार । Sep 3 2024 2:42PM

हरियाणा की राजनीति में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव ने भी यही स्थिति दर्शाई थी। कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा संघर्ष होने के कारण हरियाणा के क्षेत्रीय दलों की स्थिति सियासी हाशिए पर चली गई है।

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश की सियासत के प्रभावशाली दल अपनी किस्मत आजमाने के लिए पूरी ताकत के साथ मैदान में उतर रहे हैं। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल और आजाद समाज पार्टी जैसी प्रमुख पार्टियां हरियाणा की सियासत में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही हैं। इन दलों ने अपनी चुनावी रणनीति जातीय और सामाजिक समीकरणों पर आधारित बनाई है। जहां बसपा और आजाद समाज पार्टी दलित वोटरों को अपना आधार मानकर चुनावी मैदान में उतरी हैं, वहीं समाजवादी पार्टी यादव-मुस्लिम समीकरण का फायदा उठाने की योजना बना रही है। दूसरी ओर, राष्ट्रीय लोकदल जाट समुदाय के आधार पर हरियाणा में अपनी पहचान को विस्तार देने का प्रयास कर रहा है। इस स्थिति में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ये उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय दल हरियाणा की सियासत में प्रभावी हो पाते हैं या सिर्फ वोट कटवा पार्टी बनकर रह जाते हैं।

हरियाणा की राजनीति में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव ने भी यही स्थिति दर्शाई थी। कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा संघर्ष होने के कारण हरियाणा के क्षेत्रीय दलों की स्थिति सियासी हाशिए पर चली गई है। इनेलो और जेजेपी जैसे दलों की सियासी उपस्थिति में काफी कमी आई है। इस परिदृश्य में इन दलों ने दलित आधार वाले दलों के साथ गठबंधन किया है। कांग्रेस बनाम बीजेपी की इस लड़ाई में उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय दल किस तरह का प्रदर्शन कर पाएंगे, यह देखने योग्य होगा।

उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी ने सत्ता में चार बार पहुंचकर अपने प्रभाव का प्रदर्शन किया है, लेकिन हरियाणा में उसकी स्थिति हमेशा कमजोर रही है। इस बार मायावती ने हरियाणा में इनेलो के साथ गठबंधन किया है। इसी तरह, आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है। समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करने की कोशिश की है, जबकि राष्ट्रीय लोकदल ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की योजना बनाई है।

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हरियाणा में बसपा और इनेलो ने जाट-दलित समीकरण को ध्यान में रखकर गठबंधन किया है। इस समझौते के तहत बसपा 34 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि बाकी सीटों पर इनेलो अपने प्रत्याशी उतारेगी। 2019 के चुनाव में बसपा हरियाणा में खाता नहीं खोल पाई थी, लेकिन उसे 4.21 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए थे। इनेलो ने पिछले चुनाव में 2.44 प्रतिशत वोट प्राप्त किए थे, जबकि इससे पहले यह आंकड़ा 24 प्रतिशत था। 2024 के लोकसभा चुनाव में इनेलो को 1.74 प्रतिशत और बसपा को 1.28 प्रतिशत वोट मिले थे।

बसपा की कमान युवा नेता आकाश आनंद के हाथ में है, और पार्टी अनुसूचित जाति के 21 प्रतिशत मतदाताओं के सहारे हरियाणा में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है। बसपा ने 34 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बनाई है, जिसमें उसकी सफलता की चुनौती बनी हुई है। 2024 के चुनाव में जाट और दलित वोटों का झुकाव कांग्रेस की ओर दिखा है, जिससे बसपा के लिए हरियाणा में अपनी स्थिति स्थापित करना मुश्किल हो सकता है। अगर बसपा का वोट शेयर लगातार गिरता रहा, तो पार्टी कहीं वोट कटवा पार्टी न बन जाए, यह चिंता बनी रहती है।

चंद्रशेखर आजाद ने अपनी आजाद समाज पार्टी का राष्ट्रीय विस्तार करने के लिए हरियाणा में जेजेपी के साथ गठबंधन किया है। जेजेपी, जो इनेलो से टूटकर बनी है, ने 2019 में हरियाणा की सियासत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन पिछले पांच वर्षों में उसे अपने सियासी अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ा है। चंद्रशेखर ने जेजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। हरियाणा की 90 सीटों में से जेजेपी 70 और आजाद समाज पार्टी 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इस गठबंधन से जेजेपी को अधिक लाभ की उम्मीद है। चंद्रशेखर ने यूपी में दलितों के बीच अपनी पहचान बनाई है, लेकिन हरियाणा में उनकी लोकप्रियता सीमित है। कांग्रेस सांसद कुमारी शैलजा और उदयभान जैसे दलित चेहरे राज्य में प्रभावी रहे हैं। ऐसे में चंद्रशेखर के लिए जेजेपी के साथ मिलकर हरियाणा में सफलता प्राप्त करना एक चुनौती हो सकती है।

समाजवादी पार्टी ने 2024 में उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से 37 सीटें जीतकर अपनी ताकत साबित की है। अखिलेश यादव ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया है। समाजवादी पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनावी मैदान में उतरना चाहती है, लेकिन अभी तक दोनों दलों के बीच कोई ठोस समझौता नहीं हुआ है। कांग्रेस के नेता विधानसभा चुनाव में किसी अन्य दल के साथ गठबंधन करने के लिए तैयार नहीं हैं।

सपा ने यह भी तय किया है कि अगर कांग्रेस उसे सीट नहीं देती है, तो वह अकेले चुनाव लड़ने की योजना बना रही है। 2019 में हरियाणा विधानसभा चुनाव में सपा का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था, जहां वह चार सीटों पर लड़ी थी और सभी की जमानतें जब्त हो गई थीं। फिर भी, सपा ने चुनाव लड़ने के लिए अपनी तैयारी शुरू कर दी है और यादव और मुस्लिम प्रभाव वाली सीटों पर ध्यान केंद्रित किया है। पार्टी की रणनीति यह है कि चाहे सीट मिले या न मिले, लेकिन उसकी पहचान बने और उसे हरियाणा में अपनी स्थिति स्थापित करने में मदद मिले। यह देखना होगा कि सपा इस बार कितना प्रभाव डाल पाती है।

राष्ट्रीय लोकदल केंद्र में एनडीए गठबंधन का हिस्सा है और इसके प्रमुख जयंत चौधरी मोदी सरकार की कैबिनेट में हैं। हरियाणा में जाट वोटरों की ताकत को देखते हुए आरएलडी ने विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया है। जयंत चौधरी के दादा चौधरी चरण सिंह की ससुराल सोनीपत के गांव गढ़ी कुंडल में है और वह खुद जाट समुदाय से आते हैं। राज्य में जाट वोटर लगभग 28 प्रतिशत हैं। आरएलडी की योजना बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की है और उसने पांच सीटों पर चुनाव लड़ने का प्लान बनाया है। बीजेपी जाट वोटरों को अपने साथ जोड़ने के लिए आरएलडी को दो से तीन सीटें दे सकती है।

हरियाणा की राजनीति में कांग्रेस का विकल्प पहले लोकदल था, लेकिन अब बीजेपी ने उसकी जगह ले ली है। कांग्रेस आज भी अपनी स्थिति बनाए हुए है। उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय दलों को हरियाणा की राजनीति में अपनी जगह बनाने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, इन दलों की उपस्थिति अन्य दलों की संभावनाओं को प्रभावित कर सकती है। बसपा और आजाद समाज पार्टी दलित वोटों का बिखराव कर सकती हैं, सपा यादव वोटों को बांट सकती है, और आरएलडी जाट वोटों को विभाजित कर सकती है। इस तरह, इन दलों की उपस्थिति सियासी समीकरणों को बदल सकती है और वोट कटवा पार्टी बनने की संभावना को भी जन्म दे सकती है।

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