राहुल गांधी ने क्यों छेड़ा है जातीय जनगणना का राग, कर्नाटक या फिर लोकसभा चुनाव पर है नजर ?
दरअसल, भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर यह दावा करती रहती है कि 2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने ओबीसी लोगों के लिए इतने ऐतिहासिक काम किए हैं जो इससे पहले की किसी भी केंद्र सरकार ने नहीं किया था।
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी जिनकी संसद सदस्यता हाल ही में छिन गई है और देश की सत्ताधारी पार्टी भाजपा जिन पर ओबीसी समुदाय का अपमान करने का आरोप लगाकर देश भर में अभियान चला रही है, उन राहुल गांधी ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान जातीय जनगणना का राग छेड़ दिया है।
राहुल गांधी ने कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के अंदाज में 2011 में करवाए गए जाति आधारित जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक करने की मांग की है। कांग्रेस जैसी बड़ी और राष्ट्रीय पार्टी के नेता आमतौर पर हाल फिलहाल तक इस मुद्दे पर इतने स्प्ष्ट अंदाज में बोलने से बचते ही नजर आया करते थे लेकिन आजकल कुछ नया और बड़ा करने की कोशिश में राहुल गांधी ने अब जातीय जनगणना को लेकर भी अपने इरादे साफ कर दिए हैं।
ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि कर्नाटक की धरती पर जाकर राहुल गांधी को यह मांग करने की जरूरत क्या थी ? 2011 में मनमोहन सिंह की सरकार को घटक दलों के दबाव में जिस जातीय जनगणना को कराना पड़ा और जिसका आंकड़ा कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार भी जारी नहीं कर पाई थी, आखिर उस आंकड़े को अब राहुल गांधी क्यों जारी करवाना चाहते हैं ? आखिर राहुल गांधी को क्यों इस मसले पर लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के पीछे-पीछे चलने को मजबूर होना पड़ा ? क्या सिर्फ कर्नाटक में विधानसभा का चुनाव जीतने के लिए राहुल गांधी को जातीय जनगणना और ओबीसी समुदाय के हितों की रक्षा करने का यह राग अलापना पड़ा या फिर इसके तार 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव तक जा रहे हैं ?
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दरअसल, यह बात बिल्कुल सही है कि कर्नाटक में जीत हार का फैसला ओबीसी समाज के वोटर्स ही करते हैं क्योंकि राज्य में इस समुदाय के मतदाताओं की तादाद सबसे ज्यादा यानी 54 फीसदी के लगभग है। पिछले चुनाव में इनमें से सबसे ज्यादा लोगों ने भाजपा को वोट किया था और ऐसे में यह माना जा रहा है कि कांग्रेस ने इसी वोट बैंक को अपने पाले में लाने के लिए राहुल गांधी से जातीय जनगणना को लेकर यह बयान दिलवाया होगा। लेकिन वास्तव में इसकी वजह काफी गहरी है। कर्नाटक में ओबीसी समाज भी अलग-अलग जातियों में बंटा हुआ और हर जातीय समूह का अपना-अपना प्रभावशाली नेता हैं जिनमें से कई अभी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर मजबूती के साथ भाजपा के साथ खड़े हैं।
ऐसे में यह साफ जाहिर हो रहा है कि जातीय जनगणना का मुद्दा उठाकर कर्नाटक के बहाने राहुल गांधी लोक सभा चुनाव के समीकरणों को साधना चाहते हैं। दरअसल, भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर यह दावा करती रहती है कि 2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने ओबीसी लोगों के लिए इतने ऐतिहासिक काम किए हैं जो इससे पहले की किसी भी केंद्र सरकार ने नहीं किया था। भाजपा राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने, केंद्र सरकार में पहली बार ओबीसी समाज के 27 सांसदों को मंत्री बनाने और नवोदय, सैनिक एवं सेंट्रल स्कूलों में ओबीसी छात्रों के लिए 27 फीसदी आरक्षण जैसे कई कदमों का हवाला देते हुए देश भर के ओबीसी मतदाताओं को यह संदेश देने का प्रयास करती है कि उनके समाज के हितों की रक्षा सिर्फ और सिर्फ भाजपा ही कर सकती है।
यही वजह है कि ओबीसी समाज का अपमान करने के आरोपों का सामना कर रहे राहुल गांधी ने भाजपा के इसी प्रचार तंत्र के प्रभाव को तोड़ने के लिए कर्नाटक में जातीय जनगणना के मुद्दे को जोर-शोर से उठा दिया। अगर राहुल गांधी के भाषण को ध्यान से सुना जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि वो कर्नाटक की धरती से सिर्फ देश भर के ओबीसी वोटरों को ही संबोधित नहीं कर रहे थे बल्कि इस समुदाय के प्रभावशाली नेताओं को भी एक राजनीतिक संदेश देने का प्रयास कर रहे थे।
राहुल गांधी ने कहा था कि यदि मोदी सरकार ओबीसी का भला करना चाहती है तो वह 2011 के जातिगत जनगणना के आंकड़ों को सार्वजनिक करें ताकि ये पता चल सके कि देश में कितने दलित, कितने आदिवासी और कितने ओबीसी हैं। राहुल ने आरक्षण की उच्चतम सीमा पर लगी 50 फीसदी की रोक को हटाने की मांग करते हुए यहां तक आरोप लगा दिया कि नरेंद्र मोदी ने ओबीसी से वोट लिया, लेकिन नौ सालों में इनके लिए किया क्या ?
दरअसल, यह पूरी लड़ाई 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की है। भाजपा मंडल की राजनीति को कमंडल में समाहित कर लगातार चुनाव दर चुनाव जीतती जा रही है और इसलिए राहुल गांधी भाजपा के कमंडल से मंडल के जिन्न को बाहर निकाल कर एक बार फिर देश की राजनीति के चरित्र को बदलने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन निश्चित तौर पर भाजपा की तरफ से इसका जवाब भी आएगा ही। बाकी अंतिम फैसला तो भारत की जनता 2024 में ही करेगी।
-संतोष पाठक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)
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