वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ भड़काई गई सुनियोजित हिंसा से यदि नहीं चेते तो अंजाम और भी बुरे होंगे!

Murshidabad Violence
ANI
कमलेश पांडे । Apr 15 2025 4:16PM

हैरत की बात है कि कभी ये लोग दलित-मुस्लिम समीकरण तैयार करवाते हैं तो कभी मुस्लिम-ओबीसी समीकरण को फंडिंग करवाते हैं। वहीं इसी की आड़ में अभिजात्य मुसलमान विदेशों से हवाला के जरिए फंडिंग लेकर देश में पाकिस्तान-बांग्लादेश के ही नहीं बल्कि अरब देशों के हमदर्द पैदा करते हैं।

वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ पश्चिम बंगाल में भड़काई गई सुनियोजित हिंसा से यदि हमारा प्रशासन समय रहते ही नहीं चेता तो आने वाले दिनों में अंजाम और भी बुरे होंगे, इतिहास इसी बात की चुगली कर रहा है! यह नसीहत क्रूर वक्त हमें बार-बार दे रहा है, लेकिन हमलोग ऐसे घिसे पिटे आदर्शवादी हैं कि उसे समझने के लिए तैयार ही नहीं हैं| इसलिए आज मैं इतिहास की अंगड़ाई में सुलगते हुए वर्तमान के कुछ कटु सत्य को उद्घाटित कर रहा हूँ ताकि हमारे राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों की कुम्भकर्णी निंद्रा टूटे और वो विधि-व्यवस्था के लिहाज से अपने मौलिक कर्तव्य न भूलें।     

इस बात में कोई दो राय नहीं कि भारत एक शांतिप्रिय देश रहा है, लेकिन पहले मुस्लिम आक्रान्ताओं ने और फिर ब्रिटिश नौकरशाहों ने अपने-अपने प्रशासनिक स्वार्थ की प्रतिपूर्ति के लिए ऐसी-ऐसी अव्यवहारिक नीतियों को क़ानूनी अमली जामा पहनाया, जिससे हिन्दू समाज जाति और क्षेत्र के नाम पर बिखर गया और कभी मुस्लिम अधिकारी तो कभी ईसाई अधिकारी और उनके पिट्ठू लोग हिन्दुओं पर हावी होते चले गए। इसी कड़ी में सांप्रदायिक, जातीय और क्षेत्रीय हिंसा को अघोषित प्रशासनिक एजेंडे के तौर पर बढ़ावा दिया गया। इसके अलावा, कभी प्रशासनिक उदासीनता तो कभी पक्षपाती दृष्टिकोण अपनाते हुए संगठित अपराध को बढ़ावा दिया गया, जिससे विधि व्यवस्था की स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ती चली गई।

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इसी स्थिति से निजात पाने के लिए देश में आजादी की लड़ाई तेज हुई और साम्पदायिक विभाजन तक की नौबत आई| इस दौरान हिन्दू-मुस्लिम दंगे भी खूब हुए। लेकिन भारत के गाँधी-नेहरु जैसे अव्यवहारिक आदर्शवादी राजनेताओं ने आजाद भारत में हालत बदलने के उलट उन्हीं घिसे-पिटे कानूनों को भारतीयों पर थोप दिया, जो आज तक अशांति का सबब बन चुकी हैं। पहले कांग्रेसियों, फिर समाजवादियों और अब राष्ट्रवादियों ने ढोंगी धर्मनिरपेक्षता की तो खूब बातें कीं, लेकिन अपने कुत्सित जातीय, क्षेत्रीय और सांप्रदायिक एजेंडे से आगे की कभी नहीं सोच पाए।

मसलन, बहुमत की आड़ में शांतिप्रिय सत्ता परिवर्तन भी सुनिश्चित हुआ, लेकिन विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, खबरपालिका और समाजपालिका से जुड़े लोग मुगलिया और ब्रितानी प्रशासनिक लापरवाहियों से कोई सबक नहीं सीख पाए। सबों ने उस ‘निर्जीव भारतीय संविधान’ का महिमा मंडन किया और कर रहे हैं जिसने पदासीन लोगों को वेतन-भत्ते-पेंशन और देशवासियों से लूट-खसोट की तो गारंटी दी, लेकिन आमलोगों के सुख-शांति में खलल डालने वालों के खिलाफ कभी सख्ती नहीं दिखाई। इस नजरिए से संसद और विधान मंडलों ने प्रभावकारी कानून नहीं बनाए और न ही न्यायपालिका ने इस प्रशासनिक प्रवृति पर कभी सवाल उठाए।

हद तो यह कि न्याय के नाम पर मामलों को वर्षों तक लटकाने वाली न्यायपालिका, नेताओं के इशारों पर उलटे-सीधे कार्य करने की अभ्यस्त हो चली कार्यपालिका और नेताओं-कारोबारियों की अघोषित सांठगांठ से जहाँ सत्ताधारी जमात मौज में रहता आया है, वहीं आम आदमी सुपोषण योग्य भोजन, अच्छी शिक्षा और चिकित्सा सुविधा, जन-सुरक्षा के लिए मोहताज है। एक ओर देश के अमनपसंद आमलोग जहाँ रोटी, कपड़ा और मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा सम्मान की प्राप्ति के लिए आरक्षण को अचूक हथियार समझ बैठे हैं, वहीं दूसरी ओर 1947 में पाकिस्तान और 1972 में बंगलादेश लेने वालों के वंशज ब्रेक के बाद भारतीय भूभाग पर सांप्रदायिक तांडव मचा रहे हैं और नेताओं की नीतिगत लापरवाहियों से हमारा सिविल और पुलिस प्रशासन असहाय बना रहता है।

हैरत की बात है कि कभी ये लोग दलित-मुस्लिम समीकरण तैयार करवाते हैं तो कभी मुस्लिम-ओबीसी समीकरण को फंडिंग करवाते हैं। वहीं इसी की आड़ में अभिजात्य मुसलमान विदेशों से हवाला के जरिए फंडिंग लेकर देश में पाकिस्तान-बांग्लादेश के ही नहीं बल्कि अरब देशों के हमदर्द पैदा करते हैं। इनकी नापाक मंशा जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल और केरल जैसे हालत पूरे देश में पैदा करने की है, जिसकी झलक गाहे-बगाहे दिखाते रहते हैं। यदि गुलाम भारत से लेकर आजाद भारत तक के ब्रेक के बाद होने वाले सांप्रदायिक दंगों की बात छोड़ भी दी जाए तो अयोध्या रामजन्म भूमि आंदोलन, फिर सीएए और अब वक्फ कानून की आड़ में पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के इशारे पर या फिर चीन-अमेरिका-इंग्लैंड से शह प्राप्त अन्य मुस्लिम देशों के इशारे पर भारत में जो अशांति फैलाते हैं, इसका ताजातरीन उदाहरण पश्चिम बंगाल का मुर्शिदाबाद इलाका है, जो इन दिनों इस्लामिक उत्पात से जल रहा है।

दरअसल वक्फ कानून में संशोधन के विरोध में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में जो हिंसा भड़क उठी है, उससे केंद्र सरकार ने अन्य राज्यों में भी ऐसी घटनाओं की आशंका जताई है। इसके दृष्टिगत वह लगातार सतर्कता बरत रही है। यह बात दीगर है कि अभी तक अन्य राज्यों से किसी अप्रिय घटना की खबर नहीं है। केंद्र सरकार के मुताबिक, वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की अधिसूचना के मद्देनजर अभी तक अन्य राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों से किसी भी सांप्रदायिक स्थिति की कोई रिपोर्ट नहीं मिली है। हालांकि, केंद्रीय गृह मंत्रालय कोई जोखिम नहीं उठा रहा है। केंद्र बंगाल के साथ-साथ अन्य राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में स्थिति पर कड़ी नजर रख रहा है, जहां वक्फ कानून विरोधी प्रदर्शनों की खबरें आई हैं। इसका उद्देश्य सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देने वाले किसी भी कारक की पहचान करना और संबंधित राज्य सरकारों से संपर्क करना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उन्हें शुरू में ही समाप्त कर दिया जाए।

बताया जाता है कि यदि राज्यों से मांग की जाती है, तो उन्हें बिना किसी देरी के केंद्रीय बल मुहैया कराए जाएंगे, ताकि ऐसी सांप्रदायिक हिंसा को रोका जा सके। इसी उद्देश्य से मुर्शिदाबाद में भी, पश्चिम बंगाल के डीजीपी राजीव कुमार ने हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा किया और अदालत के निर्देश पर पर्याप्त केंद्रीय बलों की तैनाती की गई, जिससे सांप्रदायिक झड़पों पर लगाम लगी। अधिकारी ने कहा कि वहां अब कोई नई हिंसा नहीं हुई है। गत शनिवार को मुर्शिदाबाद में सांप्रदायिक झड़पों के मद्देनजर केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव और डीजीपी के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कर स्थिति का आकलन किया। इसके साथ ही स्थिति को नियंत्रित करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों की रूपरेखा तैयार की।

दरअसल डीजीपी ने केन्द्रीय गृह सचिव को जानकारी देते हुए कहा कि स्थिति तनावपूर्ण लेकिन नियंत्रण में है और स्थानीय स्तर पर तैनात बीएसएफ कर्मियों की मदद ली जा रही है। वहीं सांप्रदायिक हिंसा में कथित रूप से शामिल होने के आरोप में शनिवार को 150 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया। मुर्शिदाबाद में स्थानीय स्तर पर मौजूद करीब 300 बीएसएफ कर्मियों के अलावा राज्य सरकार के अनुरोध पर पांच अतिरिक्त कंपनियां वहां भेजी गईं हैं। उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ कानून के विरोध में हुई हिंसा में तीन लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों घायल हुए।

जांच एजेंसियों के मुताबिक, इस हिंसा की साजिश तीन महीने पहले रची गई थी और पाकिस्तान के दोस्त तुर्कीए से फंडिंग की गई थी| हमलावरों को लूटपाट के लिए 500 रुपये दिए गए थे और साजिशकर्ताओं ने लक्ष्य दिया था कि पश्चिम बंगाल को बांग्लादेश जैसा बनाना था| यही वजह है कि वक्फ कानून के विरोध पश्चिम बंगाल में भारी हिंसा देखने को मिली| जहाँ मुर्शिदाबाद में हिंसा में 3 लोगों की मौत हुई, वहीं सैकड़ों लोग घायल हुए। आलम यह है कि कई लोगों को अपना घर छोड़कर दूसरी जगह ठिकाना लेना पड़ा है। यहाँ हिंसा को देखते हुए केंद्रीय सुरक्षा बल को तैनात करना पड़ा| इसके साथ ही हिंसा वाले इलाके में कड़ा पहरा है।

इस बीच मुर्शिदाबाद दंगा मामले में बड़ा खुलासा हुआ है। भारतीय जांच एजेंसियों के सूत्रों की मानें तो इस हिंसा की प्लानिंग लंबे समय से की जा रही थी| लगभग पिछले 3 महीनों से इलाके के लोग इस घटना को अंजाम देने की योजना बना रहे थे, क्योंकि इसके लिए विदेशों से फंडिंग की गई थी। पूरे मामले की जांच के दौरान पाया गया है कि यह आतंकवाद फैलाने का नया तरीका है। दरअसल दो महीने पहले एटीबी के दो जाने-माने सदस्य मुर्शिदाबाद आए और कहा कि एक बड़ी दावत होगी। वे ट्रिगर पॉइंट का इंतजार कर रहे थे। प्रारंभ में रामनवमी की तारीख तय थी, लेकिन उस दिन कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के कारण चीजें बदल गईं। लेकिन वक्फ बिल ने ट्रिगर पॉइंट दे दिया। इन्हें ट्रेनों को बाधित करना, सरकारी संपत्ति को खत्म करना, हिंदुओं की हत्या करना, घरों को लूटना आदि पहला टारगेट दिया गया था। तब हमलावरों से कहा गया था कि जितनी ज्यादा चीजों को खराब करेंगे, उन्हें उतना ही ज्यादा पैसा दिया जाएगा। शुरू में एक सूची बनाई गई थी कि यदि वे अपने किए का ब्यौरा देंगे तो उन्हें कितना धन दिया जाएगा| यही वजह है कि भूखे नगे लोगों ने दिनदहाड़े उपद्रव मचा दिया।

बता दें कि पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ कानून के विरोध में 10 अप्रैल से हिंसा जारी है जो अब थम चुकी है। बता दें कि केंद्र सरकार के वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर भड़की हिंसा में प्रदर्शनकारियों ने पुलिस वाहनों को आग लगा दी, सड़कें जाम कर दीं और रेलवे संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है। चूँकि बंगाल में चुनावों के लिए अभी 1 साल से ज्यादा का समय बाकी है, ऐसे में ये दंगों की खबरों से सियासी लोग भी खासे परेशान हैं।

बता दें कि वक्‍फ संशोधन कानून को लेकर पश्चिम बंगाल में हिंसक विरोध प्रदर्शन का केंद्र बना हुआ है। मुर्शिदाबाद में हिंसा का तांडव अभी शां‍त ही हुआ था कि प्रदेश के एक और जिले में हिंसा की आग फैल चुकी है। दक्षिण 24 परगना जनपद के भांगर इलाके में वक्‍फ संशोधन कानून को लेकर शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया| क्योंकि पुलिसवालों पर ही उन्‍मादी भीड़ ने हमला कर दिया। पुलिस वाहनों को भी आग के हवाले कर दिया गया| इस बीच  वक्‍फ संशोधन कानून के विरोध में पश्चिम बंगाल में जारी हिंसा को लेकर इंटेलिजेंस एजेंसियों को चौंकाने वाले इनपुट मिले हैं। वह यह कि वक्‍फ संशोधन कानून के विरोध में फैली हिंसा का पैटर्न साल 2019 में सीएए (CAA) के खिलाफ हुए हिंसक प्रदर्शनों की तरह है। मुर्शिदाबाद में हिंसा फैलाने के लिए उसी टूलकिट का इस्‍तेमाल किया जा रहा है, जिसका प्रयोग सीएए के खिलाफ हुए विरोध-प्रदर्शनों में किया गया था|

ख़ुफ़िया सूत्रों की मानें तो वक्फ विरोध प्रदर्शनों में एक समान टूलकिट है। टेलीग्राम, सिग्नल और व्हाट्सएप जैसे मैसेजिंग ऐप का इस्तेमाल विरोध प्रदर्शन आयोजित करने, जिम्‍मेदारी बांटने और रियल टाइम निर्देश शेयर करने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इन प्लेटफ़ॉर्म पर एन्क्रिप्टेड समूहों का इस्तेमाल पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में पुलिस स्टेशनों पर कोऑर्डिनेटेड अटैक्‍स को अंजाम देने के लिए किया गया था। नाकाबंदी, रेलवे के बुनियादी ढांचे पर हमले और सांप्रदायिक नारे सीएए (CAA) जैसे विरोध प्रदर्शनों की पहचान थे। जबकि अब वक्‍फ संशोधन कानून के विरोध के दौरान भी यही स्थिति है। प्रदर्शनकारी पत्थर, पेट्रोल बम, टायर और बांस के डंडे आदि का इस्‍तेमाल कर रहे हैं।

याद दिला दें कि सीएए विरोध प्रदर्शन के दौरान हावड़ा में रेलवे पटरियों के पास पत्थरों का जखीरा छिपाया गया था। वक्‍फ का विरोध करने के दौरान अब एक बार फिर से वैसी ही तस्‍वीर दिख रही है| प्रदर्शनकारी हिंदुओं की दुकानों, पुलिस स्टेशनों और रेलवे के बुनियादी ढांचे को निशाना बना रहे हैं| ये सब सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने और मीडिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए किया जा रहा है। पुलिस की बर्बरता के पुराने क्लिप के साथ छेड़छाड़ किए गए वीडियो को मौजूदा अत्याचार के रूप में फिर से पेश किया जा रहा है, ताकि गुस्सा भड़काया जा सके। 2024 के एक वीडियो क्लिप का गलत तरीके से इस्तेमाल कर दावा किया जा रहा है कि पुलिस ने नमाज़ में शामिल लोगों पर गोलियां चलाईं| यह क्लिप वायरल हो गया, जिससे मालदा में दंगे भड़क गए।

ख़ुफ़िया सूत्रों ने इस मामले में भी विदेशी हस्तक्षेप से इनकार नहीं किया है। उसने कहा है कि जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) और हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी (हूजी) जैसे समूह बांग्लादेश बॉर्डर से लगते इलाकों और सुंदरबन डेल्टा में हथियारों की आपूर्ति कर रहे हैं। ये आतंकी संगठन ट्रेनिंग देने के साथ ही प्रोपेगेंडा भी फैला रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय संगठन अशांति को बढ़ाने के लिए वैश्विक मीडिया का उपयोग कर रहे हैं। वे दहशत फैलाने के लिए अफ़वाह फैलाने में मदद कर रहे हैं। यह उसी तरह है जैसे सीएए विरोध प्रदर्शनों के दौरान एनआरसी को मुसलमानों की नागरिकता छीनने के रूप में प्रचारित किया गया था| विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिरासत में लिए गए या गिरफ्तार किए गए लोगों को भी नायक के रूप में महिमामंडित किया जा रहा है|

यही वजह है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दंगाइयों को दो टूक चेतावनी दी है और साफ कहा है कि चाहे कोई भी हों, कानून अपने हाथ में न लें| इससे राज्य के लोगों को राहत मिली है| चूँकि पश्चिम बंगाल में वक्फ कानून के विरोध में जारी हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। इसलिए अब प्रतीत होता है कि सीएम ममता बनर्जी का सब्र भी जवाब दे रहा है। तभी तो उन्होंने दंगाइयों को चेतावनी दी है कि आप ए, बी, सी, डी, ई, एफ कोई भी, लेकिन कानून को अपने हाथ में न लें। मैं आप सभी से कहूंगी कि सभी को शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक आंदोलन करने का अधिकार है, लेकिन कानून की रक्षा के लिए हमलोग उसके रक्षक हैं, इसलिए हमें कानून के भक्षक नहीं चाहिए।' उन्होंने कहा, 'शांति से रहो। बंगाल की धरती शांति की धरती है। इसकी मिट्टी सोने की तरह शुद्ध है।' उन्होंने लोगों से शांति और कानून व्यवस्था बनाए रखने की भी अपील की और कहा कि हम उपेक्षितों और पीड़ितों के साथ खड़े हैं।

बता दें कि दक्षिण कोलकाता के कालीघाट स्थित प्रसिद्ध काली मंदिर के निकट स्काईवॉक का उद्घाटन करते हुए एक कार्यक्रम में ममता बनर्जी ने कहा कि 'धर्म के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। धर्म का मतलब है भक्ति, स्नेह, मानवता, शांति, सौहार्द, संस्कृति, सद्भाव और एकता है। इंसानों से प्यार करना किसी भी धर्म की सर्वोच्च अभिव्यक्तियों में से एक है। हम अकेले पैदा होते हैं और अकेले मरते हैं, तो लड़ाई क्यों? दंगे, युद्ध या अशांति क्यों? याद रखें, अगर हम लोगों से प्यार करते हैं तो हम सब कुछ जीत सकते हैं। लेकिन अगर हम खुद को अलग-थलग कर लेंगे, तो हम किसी को भी नहीं जीत पाएंगे। अगर किसी पर हमला होता है, चाहे वह उपेक्षित हो, उत्पीड़ित हो, वंचित हो, हाशिए पर हो या किसी भी धर्म से हो- हम सभी के साथ खड़े हैं।'

उल्लेखनीय है कि गत सोमवार को भी दक्षिण 24 परगना जिले में इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) के समर्थक पुलिस से भिड़ गए। इस दौरान जमकर बवाल हुआ। हिंसा में कई लोग घायल हुए और कई पुलिस वाहनों को आग लगा दी गई। यह झड़प तब हुई, जब पुलिस ने आईएसएफ समर्थकों को पार्टी के नेता और भांगर विधायक नौशाद सिद्दीकी की कोलकाता में हुई रैली में जाने से रोकने की कोशिश की। पुलिस का कहना है कि इस रैली के लिए पुलिस की अनुमति नहीं थी।

- कमलेश पाण्डेय

वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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