सुर्खियां बटोरने के लिए यूपी के महिला आयोग का पैतरा

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ANI

आयोग की इस सिफारिश को अब शासन से मंजूरी मिलने का इंतजार है। आयोग के इस प्रस्ताव में प्रदेश में कानून-व्यवस्था की मौजूदा हालत जिक्र नहीं है। आयोग ने यह भी नहीं बताया कि सिफारिश में किए गए प्रावधान ही क्या महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के लिए जिम्मेदार हैं।

देश के संवैधानिक आयोग नखदंतविहीन हैं। ऐसे में भी आयोग के कर्ताधर्ता नेताओं की तरह व्यवहार करके आयोग की गरिमा को कम करने के साथ ही उपहास का पात्र बनते हैं। उत्तर प्रदेश के राज्य महिला आयोग ने इसी तरह का कृत्य करके अपनी महत्ता को कम करने का काम किया है। आयोग ने योगी सरकार को एक सिफारिश की। इसमें प्रदेश में पुरुष टेलर द्वारा महिलाओं के कपड़ों के माप लेने पर रोक लगाने, कोचिंग सेंटरों में सीसीटीवी कैमरे, जिम में महिला ट्रेनर लगाने का जिक्र किया गया है। महिलाओं की सुरक्षा को देखते हुए आयोग ने यह प्रस्ताव भेजा है। आयोग का यह कृत्य दर्शाता है कि आयोग मूल उद्श्यो से भटक कर राजनीतिक पैतरेबाजी करने में जुटा है। आयोग को उत्तर प्रदेश में महिलाओं के साथ होने वाले अपराध, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति में सुधार करने से कोई सरोकार नहीं है।   

आयोग की इस सिफारिश को अब शासन से मंजूरी मिलने का इंतजार है। आयोग के इस प्रस्ताव में प्रदेश में कानून-व्यवस्था की मौजूदा हालत जिक्र नहीं है। आयोग ने यह भी नहीं बताया कि सिफारिश में किए गए प्रावधान ही क्या महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के लिए जिम्मेदार हैं। आयोग ने अपराधों के बाद पुलिस कार्रवाई के तौर-तरीकों पर एक लाइन भी नहीं कही। बालिकाओं के शैक्षणिक स्थलों के पास छेड़छाड़ की घटनाएं रोकने के लिए महिला पुलिसकर्मियों की स्थायी तैनाती पर आयोग चुप रहा। महिला आयोग ने यह भी नहीं बताया कि प्रदेश में इतनी संख्या में प्रशिक्षित महिलाएं का इंतजाम कैसा होगा। क्या सरकार इसके लिए महिलाओं के प्रशिक्षण का इंतजाम करने में सक्षम है। प्रशिक्षण के बाद स्वरोजगार के लिए महिलाओं को ऋण और स्थान इत्यादि की व्यवस्था कैसे होगी, इस पर आयोग की सिफारिश में कोई जिक्र नहीं है। महिलाओं की सुरक्षा की चिंता करने वाला उत्तर प्रदेश का महिला आयोग यह भूल गया कि प्रदेश की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था चरमराई हुई है। यात्रियों से ठसाठस भरे वाहनों में महिलाओं को बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। महिलाओं के लिए प्रदेश में अलग से परिवहन की व्यवस्था नहीं है। आरक्षित सीटों पर भी महिलाओं को भारी मशक्कत करनी पड़ती है। सार्वजनिक परिवहन में महिलाओं से छेड़छाड़ की बात आम है। महिला हितों की पैरवी करने वाले महिला आयोग की निगाह यहां तक नहीं पहुंची। इसी तरह महिलाओं की बीमारियों से और प्रसूती की हालत से निपटने के लिए पर्याप्त चिकित्सकों और अस्पतालों की व्यवस्था नहीं है।

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आयोग ने पुलिस थानों में महिलाओं की पर्याप्त संख्या और महिला पुलिस थानों की जरूरत पर जोर नहीं दिया। महिलाओं के लिए आज भी पुलिस थानों में जाकर शिकायत दर्ज कराना आसान नहीं है। पुलिसकर्मी पीडि़त महिलाओं से किस तरह का व्यवहार करते हैं, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने माफिया और गैंगस्टरों को धूल चटाने में कसर बाकी नहीं रखी। प्रदेश से लगभग सभी बड़े माफिया और गैंगस्टर या तो मारे जा चुके हैं या फिर जेलों में बंद हैं। इसके बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि आम लोगों के लिए पुलिस की कार्यप्रणाली में सुधार हुआ है। पुलिस में भ्रष्टाचार और भेदभाव की घटनाएं आम हैं।   

आयोग ने इन तमाम मुद्दों को नजरंदाज कर दिया। आश्चर्य की बात यह है कि व्यवसायिक प्रतिष्ठानों और दुकानों में महिलाओं की नियुक्ति की पैरवी करने वाला आयोग राज्य में महिलाओं के साथ हुए अपराधों पर सक्रिय कार्रवाई नहीं कर सका। हाथरस और उन्नाव कांड इसका उदाहरण है। ऐसे अपराधों को रोकने के लिए आयोग ने कोई भूमिका नहीं निभाई। 14 सितंबर, 2020 को हाथरस में एक दलित युवती के साथ चार पुरुषों ने सामूहिक बलात्कार किया। इसी तरह 4 जून, 2017 को उन्नाव में 17 साल की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ। इसमें लड़की की मौत हो गई। ऐसे मुद्दों पर आयोग कोई ठोस सुझाव राज्य सरकार को नहीं दे सका। भारत में बाल मजदूरों का सबसे ज्यादा संख्या 5 राज्यों में है। सबसे ज्यादा बाल मजदूर उत्तर प्रदेश और बिहार से हैं। उत्तर प्रदेश में 21.5 फीसदी यानी 21.80 लाख और बिहार में 10.7 फीसदी यानी 10.9 लाख बाल मजदूर हैं। उत्तर प्रदेश में बाल मज़दूरों की संख्या 21.7 लाख है। यह यूपी की कुल आबादी का 21 फ़ीसदी है। हालांकि यह मुद्दा सीधा महिला आयोग के तहत नहीं आता, फिर कोई महिला अपने कलेजे के टुकड़े से मजदूरी कैसे करवा सकती है। महिला आयोग ने कभी इस पर विचार नहीं किया।   

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों (जैसे बलात्कार, हत्या, अपहरण, बलात्कार के बाद हत्या और सामूहिक बलात्कार) की कुल संख्या में उत्तर प्रदेश देश में सबसे ऊपर रहा। इसमें 65,743 ऐसे मामले दर्ज किए गए। महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर 2017 में जब योगी आदित्यनाथ ने राज्य की बागडोर संभाली थी, तो उन्होंने महिलाओं के सार्वजनिक उत्पीडऩ को रोकने के लिए "एंटी-रोमियो स्क्वॉड" का गठन किया था। बाद में उनकी सरकार ने महिलाओं को सशक्त बनाने और उनकी सुरक्षा के नाम पर गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 बनाया, जिसे लव-जेहाद विरोधी कानून के रूप में जाना जाता है।   

अपराध के आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि इन कानूनों के बन जाने के बाद भी महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में ज्यादा सुधार नहीं हुआ। इसकी राज्य महिला आयोग ने कभी समीक्षा नहीं की। गौरतलब है आयोग को सिर्फ नोटिस देकर बुलाने का अधिकार है, कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है। अपने इस अधिकार के लिए भी आयोग ने कभी आवाज बुलंद नहीं की। इससे साफ जाहिर है कि आयोग का महिलाओं की सुरक्षा की सिफारिश का दावा खोखला है। धरातल की हालत से दूर ऐसी सिफारिश सिर्फ सुर्खियां बटोरने से ज्यादा कुछ नहीं है।

- योगेन्द्र योगी

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