अखिलेश से नहीं संभल पा रही समाजवादी पार्टी, ऐसे में खुद कमान संभाल सकते हैं मुलायम
समाजवादी पार्टी के लिए चिंता की बात यह है कि दोनों ही नेताओं शिवपाल सिंह यादव और आजम खान का अच्छा प्रभाव उस ‘मुस्लिम-यादव’ वोट बैंक पर माना जाता है, जो ‘एमवाई’ फैक्टर साइकिल का सबसे बड़ा सहारा है।
‘नया नेतृत्व, नई समाजवादी पार्टी’ के जुमले पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव की लगातार जारी नाकामयाबी के चलते ग्रहण लगता नजर आ रहा है। जबसे अखिलेश ने मुलामय सिंह यादव की जगह सपा की कमान संभाली है तब से वह दो लोकसभा और दो विधान सभा चुनाव हार चुके हैं। नगर निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में भी समाजवादी पार्टी बैकफुट पर ही नजर आई। रही-सही कसर विधान परिषद चुनाव में सूपड़ा-साफ होने से पूरी हो गई। विधान परिषद (एमएलसी) चुनाव में सपा का सूपड़ा साफ होने से ज्यादा पार्टी के लिए चिंता का विषय उसे अपने गढ़ में मिली पराजय है। एमएलसी के इस चुनाव में सत्तारुढ़ दल का दबदबा देखने को मिला और बीजेपी ने विधान परिषद में ऐतिहासिक जीत हासिल की। मुख्य विपक्षी दल के रूप में समाजवादी पार्टी का शून्य पर सिमटना बड़ी बात है। पार्टी में अंदरूनी कलह का ही नतीजा है कि सपा अपने गढ़ इटावा में भी हारी। यहां पार्टी की हार के कारणों में शिवपाल की नाराजगी भी मानी जा रही है। इटावा-फर्रूखाबाद सीट पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को भाजपा की तुलना में काफी कम वोट मिले। डूबते जहाज के समान बनी सपा के सामने अब आए दिन नई-नई चुनौतियां आ रही हैं। पहले चाचा शिवपाल नाराज हुए और अब पूर्व मंत्री व रामपुर के विधायक मो. आजम खान नाराज बताए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि आजम के करीबी नेता शिवपाल के संपर्क में हैं और आने वाले समय में दोनों नेता एक खेमे में आ सकते हैं। वहीं सपा में निष्प्रयोज्य ही साबित कर दिए गए शिवपाल सिंह यादव के बेहतर प्रयोग पर विरोधी दल के रणनीतिकारों की नजर है। इस बीच आजम खान खेमे से उठे नाराजगी के स्वर चुगली कर रहे हैं कि अखिलेश अपनों के ही ‘क्लेश’ में घिरते जा रहे हैं।
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समाजवादी पार्टी के लिए चिंता की बात यह है कि दोनों ही नेताओं शिवपाल सिंह यादव और आजम खान का अच्छा प्रभाव उस ‘मुस्लिम-यादव’ वोट बैंक पर माना जाता है, जो ‘एमवाई’ फैक्टर साइकिल का सबसे बड़ा सहारा है। यदि मस्लिम और यादव वोट ही समाजवादी पार्टी से छिटक जाएंगे, तो आने वाले लोकभा चुनाव में सपा को भारी नुकसान हो सकता है। एक तरफ चुनावों में मिली हार, दूसरी ओर पार्टी में रार से सपा बिखरती जा रही है। उस पर पुराने समाजवादियों की अनदेखी के चलते पार्टी की और दुर्दशा हो रही है। अनदेखी से नाराज कई पुराने नेताओं ने या तो पार्टी से किनारा कर लिया है अथवा अपने को घरों में कैद कर लिया है। अखिलेश की कार्यशैली से आजम खान, शफीर्कुरहमान बर्क जैसे नेता ही नाराज नहीं हैं बल्कि परिवार में भी फूट पैदा हो चुकी है। चाचा शिवपाल यादव, बहू अपर्णा यादव के सपा से किनारा करने से अखिलेश की सबसे अधिक किरकिरी हो रही है।
इस बीच समाजवादी पार्टी के अंदरखाने से खबर आ रही है कि पार्टी की गिरावट को कैसे रोका जाए, इसका पता लगाने के लिए सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव स्वयं मोर्चा संभाल सकते हैं। सपा के अंदर सबसे अधिक बेचैनी पार्टी के संस्थापक शिवपाल सिंह यादव की पार्टी विरोधी सक्रियता को लेकर है। इसी वजह से सपा अपने पार्टी संरक्षक मुलायम सिंह यादव के जरिए नए सिरे से गोलबंदी शुरू कर सकती है। पुराने नेताओं व जनता तक मुलायम सिंह का संदेश पहुंचाने की रणनीति भी अपनाई जा रही है। दो दिन पहले मुलायम सिंह यादव का पार्टी कार्यालय में संबोधन इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। इस रणनीति से पार्टी आगामी जुलाई माह में संभावित नगर निगम चुनावों में धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराने का भी सपना पाले हुए है। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव को लेकर अभी दो खेमे बने हुए थे। ज्यादातर नेता अखिलेश यादव के साथ थे तो तमाम ऐसे भी थे जो खुद को मुलायमवादी बताते हुए शिवपाल सिंह के खेमे में खड़े थे। मुलायम भी गाहे-बगाहे शिवपाल की तारीफ करते हुए रहस्य बरकरार रखे थे, लेकिन अब यह सब बातें खत्म हो गई हैं।
गौरतलब है कि इससे पूर्व तक शिवपाल को मुलायम का बायां हाथ माना जाता था। इसीलिए शिवपाल यादव ने जब परिवर्तन रथयात्रा स्थगित की तो यही कहा गया कि उन्होंने खुद को नेताजी (मुलायम सिंह यादव) के हवाले कर दिया है। मुलायम का हवाला देकर ही विधानसभा चुनाव में वे सपा खेमे में उतरे। अपने सहयोगियों को एक भी टिकट नहीं देने के बाद भी वह सपा के टिकट पर विधायक बने। लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद उपजे हालात ने इस तस्वीर को साफ कर दिया। शिवपाल सिंह ने आजम खां के बहाने मुलायम सिंह पर हमला बोला तो सपा शिवपाल के इस बयान को मुलायम सिंह विरोधी बता कर भुनाने में लग गई। अखिलेश ने मुलायम सिंह को पूरी तरह से अपने पाले में कर लिया।
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उधर, शिवपाल ने पार्टी के पुनर्गठन का ऐलान किया और फ्रंटल संगठनों की घोषणा की तो उसी दिन मुलायम सिंह यादव पार्टी कार्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करने पहुंच गए। उन्होंने प्रदेश में सिर्फ दो पार्टी भाजपा और सपा होने का बयान दिया। सपा सूत्रों का कहना है कि यह घटनाक्रम संयोग मात्र नहीं है बल्कि सपा की सियासी रणनीति का हिस्सा है। अब पार्टी मुलायम सिंह यादव के संदेश को आम लोगों तक पहुंचाने में जुटी हुई है, मगर सवाल यही है कि मुलामय सिंह के कंधों पर चढ़कर सपा का कितना भला होगा या फिर नेताजी सपा को कितनी नई ऊर्जा प्रदान कर पाएंगे। क्योंकि मुलायम सिंह इस समय स्वास्थ्य समस्याओं से काफी घिरे हुए हैं। वैसे अखिलेश यादव ने अपने वाराणसी के दौरे के दौरान यह कह कर विरोधियों को पट करने की कोशिश की कोशिश जरूर की कि जेल से बाहर आते ही आजम खान हमारे साथ होंगे।
दूसरी तरफ अखिलेश यादव भी अब पार्टी के नाराज नेताओं की चिंता छोड़कर योगी सरकार के खिलाफ हमलावर हो गए हैं। वह कानून व्यवस्था, चंदौली, बेरोजगारी, मंहगाई, बिजली कटौती आदि मुद्दों पर सरकार को घेरने में लगे हैं। अखिलेश मीडिया को बता रहे हैं कि उनकी (मीडिया) आवाज को भी दबाया जा रहा है। पत्रकारों पर फर्जी मुकदमें दर्ज हो रहे हैं।
-अजय कुमार
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