रक्षा नीति, विदेश नीति की समझ नहीं रखने वाला ही प्रधानमंत्री से ऐसे सवाल पूछ सकता है

narendra modi

‘प्रधानमंत्री चुप हैं’- जैसे वाक्य देशहित के लिए निरंतर सक्रिय रहने वाले समर्पित व्यक्तित्व की बेदाग छवि को दागदार करने की उसी कुटिल मानसिकता को उजागर करते हैं जिसने कभी उन्हें ‘जहर की खेती करने वाला’ कहकर अपनी मानसिकता का परिचय दिया।

हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा हम सभी का एक गंभीर उत्तरदायित्व है। उसके प्रति जागरूक रहना और उसके संबंध में आवश्यक होने पर उचित रीति से प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करना भी प्रत्येक भारतीय नागरिक का संवैधानिक अधिकार है किंतु यदि इस अधिकार के उपयोग की पृष्ठभूमि में निजी स्वार्थ निहित हों और यह देश के हितों के विपरीत हो तो इसका उपयोग निश्चय ही प्रश्नांकित हो जाता है।

देश की उत्तरी सीमा पर विवादित क्षेत्र में चीनी सैनिकों के घुस आने और भारतीय जवानों द्वारा अपनी सीमा में उन्हें ना आने देने के हर संभव प्रयत्न देश की जागरूकता के साक्षी हैं। देश का वर्तमान नेतृत्व, सैन्य-शक्ति और संचार माध्यम अपने-अपने उत्तरदायित्व के निर्वाह में सतत सचेत और सतर्क हैं। चीनी सैनिकों के विवादित क्षेत्र से पीछे हटने के शुभ समाचार भी इसी तथ्य के साक्ष्य हैं कि हमारे संयुक्त प्रयत्न सफलता की दिशा में अग्रसर हैं। इस स्थिति में प्रमुख विपक्षी दल के एक बड़े नेता का यह बयान कि ‘चीनी सैनिक भारतीय सीमा में घुस आए हैं और देश के प्रधानमंत्री चुप हैं’- गले से नहीं उतरता।

इसे भी पढ़ें: उत्तर प्रदेश में सारा बोझ सरकारी अस्पतालों पर, निजी अस्पताल सहयोग नहीं कर रहे

पिछले दिनों में अनेक टीवी चैनलों ने मानचित्र प्रदर्शित करते हुए यह स्पष्ट किया है कि सीमावर्ती क्षेत्र में कुछ विवादित स्थलों में चीन और भारत दोनों देशों के सैन्य दल पेट्रोलिंग करते रहे हैं और अब चीन के दुराग्रह के कारण उस क्षेत्र में चीनी सैनिक भारतीय सैनिकों को पेट्रोलिंग से रोक रहे हैं। यही विवादित बिंदु है जिस पर दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के मध्य उच्चस्तरीय संवाद जारी है। निकट भविष्य में विवाद सुलझ जाने के शुभसंकेत भी स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं और यदि विवाद बढ़े तो हर स्थिति से निपटने के लिए भी भारत की पूरी तैयारी हर स्तर पर दिखाई दे रही है। ऐसी स्थिति में विपक्ष की यह तथ्य-विरुद्ध बयानबाजी देश-हित में नहीं कही जा सकती।

जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती बालाकोट की एयर स्ट्राइक के संदर्भ में चीनी क्षेत्र में स्ट्राइक ना करने पर तंज कस रही हैं। संभवतः उनकी दृष्टि में दोनों प्रकरण समान हैं। जबकि यह दोनों संघर्ष परस्पर पर्याप्त भिन्न वस्तुस्थितियाँ दर्शाते हैं। विचारणीय यह है कि क्या पाकिस्तान की हिंसक और आतंकवादी, आपराधिक-गतिविधियाँ और चीन द्वारा उक्त विवादित क्षेत्र में घुसपैठ दोनों स्थितियां एक-सी हैं ? क्या चीनी सैनिकों की ओर से कोई ऐसा हिंसक कृत्य किया गया है जिससे हमारे सैनिकों को कोई क्षति पहुंची हों ? क्या वर्तमान विवाद सुलझने की संभावनाएं समाप्त हो चुकी हैं ? यदि नहीं, तो हमें चीन पर अभी सर्जिकल स्ट्राइक करने की क्या आवश्यकता है ? क्या महबूबा मुफ्ती और उन जैसी सोच रखने वालों की ऐसी मानसिकता और भड़काऊ बयानबाजी भारत-चीन के मध्य जारी वार्ता को विफल करने की कुटिल सूझ नहीं लगते ? महबूबा मुफ्ती और उनके सहयोगी आश्वस्त रहें। जनता को पूरा विश्वास है कि यदि आवश्यकता हुई तो वर्तमान भारतीय नेतृत्व ऐसी कार्यवाही करने में भी पीछे नहीं रहेगा।

रोचक तो यह है कि जिन लोगों ने अपने नेतृत्व में देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए कभी ठोस प्रयत्न नहीं किए वे आज सीमाओं की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध नेतृत्व पर उंगली उठा रहे हैं। 1947 से 1962 तक देश की सैन्य स्थिति की ओर कितना ध्यान दिया गया ? 1962 में खोई हुई भूमि वापस प्राप्त करने के क्या प्रयत्न 2014 से पूर्व की सरकारों ने किए ? चीन के साथ मिलती सीमाओं पर लद्दाख और अरुणाचल आदि सीमावर्ती क्षेत्रों में सामरिक महत्व के कितने निर्माण कार्य इनके समय में हुए और पिछले 6 वर्ष में इन कार्यों की क्या प्रगति हुई है ? ये सब तुलनात्मक विवेचना के महत्वपूर्ण विषय हैं। इनके आलोक में ही यह समझा जा सकता है कि पाकिस्तान और चीन के साथ सीमाओं की सुरक्षा को लेकर कौन कितना गंभीर है- वर्तमान नेतृत्व अथवा विपक्ष।

‘प्रधानमंत्री चुप हैं’- जैसे वाक्य देशहित के लिए निरंतर सक्रिय रहने वाले समर्पित व्यक्तित्व की बेदाग छवि को दागदार करने की उसी कुटिल मानसिकता को उजागर करते हैं जिसने कभी उन्हें ‘जहर की खेती करने वाला’ कहकर और कभी ‘चौकीदार चोर है’ जैसे भ्रामक नारे उछाल कर प्रधानमंत्री की छवि खराब करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। यह देश का सौभाग्य ही है कि उसने ऐसे कुचक्रों एवं भ्रामक प्रचारों को अस्वीकृत कर निर्वाचित नेतृत्व को और अधिक सशक्त बनाकर अपनी प्रगति का पथ प्रशस्त किया। जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने, राम जन्मभूमि विवाद सुलझाने जैसे दुष्कर कार्य जनता की इसी सूझबूझ का सुफल हैं।

इसे भी पढ़ें: उत्तर प्रदेश में 'योगी राज' के बावजूद जारी हैं शिक्षक भर्ती घोटाले

आशा है भारत-चीन का वर्तमान सीमा-विवाद ही नहीं, पी.ओ.के. एवं अन्य क्षेत्रों के विवाद भी भारत के पक्ष में सुलझाने में यह नेतृत्व सफल होगा। विपक्षी नेतृत्व भी अपनी सकारात्मक भूमिका का निर्वाह कर देशहित के इन प्रयत्नों में सहभागी बन सकता है। इससे उसकी अपनी भी छवि सुधरेगी और सत्ता में उसकी वापसी की संभावनाएं पुनर्जीवित हो सकेंगी। अन्यथा औरों की छवि बिगाड़ने की नकारात्मक कोशिशें तो उसकी अपनी छवि ही खराब करेंगी।

-डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र

विभागाध्यक्ष-हिन्दी

शासकीय नर्मदा स्नातकोत्तर महाविद्यालय

होशंगाबाद म.प्र.

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़